मंगलवार, 29 नवंबर 2022

तराजू वाली प्रतिमा को खुद ही अपनी आँखों पर बंधी पट्टी उतार फेंकनी होगी

शिक्षा, चिकित्सा और न्याय ! आम-जन का विश्वास आक्रोश के मारे इन तीनों सर्वाधिक जनहित के क्षेत्रों से उठने लगा है ! लोग अब भगवान से उतना नहीं डरते जितना इन पेशों से जुड़े लोगों से खौफ खाते हैं ! खास कर कानून से जुड़े लोगों से ! कारण भी तो है ! यह जानते हुए भी कि न्याय में देर होने से उसकी अहमियत खत्म सी हो जाती है, इसी क्षेत्र में सबसे ज्यादा अतिकाल होता है ! इसीलिए कभी-कभी आक्रोशित हो सर्वहारा आपे से बाहर हो कानून अपने हाथ में लेने की भयंकर भूल कर बैठता है ! जैसा कि कुछ लोगों ने जेल वैन पर हमला कर किया ! वह भूल जाता है कि समाज ऐसे नहीं चलता ! शुक्र है कि यह दौरा कुछ पल के लिए ही पड़ता है.........!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

कुछ दिनों पहले संविधान दिवस पर अपने विचार व्यक्त करती हुई आदरणीय राष्ट्राध्यक्ष द्रौपदी मुर्मू जी आज की न्याय व्यवस्था पर कुछ खिन्न नजर आईं ! उन्होंने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि उनके बचपन में उनके गांव के लोग गुरु, डॉक्टर और वकील को भगवान मानते थे ! क्योंकि गुरु ज्ञान देकर, डॉक्टर जीवन देकर और वकील न्याय दिला कर लोगों की रक्षा करते थे ! उन्होंने मर्यादा और मेजबान का ख्याल रखते हुए, आजकल की अवस्था पर चिंता व्यक्त की, खासकर जेलों की हालत पर ! महामहिम की बात बिलकुल ठीक थी।     

हालांकि अभी भी इन तीनों क्षेत्रों में अधिकांश लोग अपने काम में पूरी तरह ईमानदारी से समर्पित हैं ! पर जैसा कि होता है, हर क्षेत्र में पैसे के लिए कुछ भी करने वाले लोग होते ही हैं वैसे ही कुछ मुट्ठी भर लोगों की वजह से आम जन का विश्वास इन तीनों सर्वाधिक जनहित के क्षेत्रों से उठने लगा है ! अब वे भगवान से उतना नहीं डरते जितना इन पेशों से जुड़े लोगों से भय खाते हैं ! खास कर कानून से जुड़े लोगों से ! कारण भी तो है ! यह जानते हुए भी कि न्याय में देर होने से उसकी अहमियत खत्म सी हो जाती है, इसी क्षेत्र में सबसे ज्यादा अतिकाल होता है ! इसी से गुनाह करने वाले भी कुछ हद तक बेखौफ हो अपने कुकर्मों को अंजाम देने में नहीं हिचकते ! उनको पता रहता है कि कोई ना कोई आएगा और उन्हें कानून की किसी ना किसी संकरी गली से साफ बचा ले जाएगा ! क्योंकि वहाँ के बारे में एक कहावत है कि "वहाँ यह देखा जाता है कि कौन बोल रहा है ना कि क्या बोला जा रहा है !" होता भी तो ऐसा ही आया है, जनता ने देखा भी है, दसियों ऐसे उदाहरण हैं जब भारी-भरकम लोग अपनी बात मनवा कर चल देते हैं ! अब तो तराजू वाली प्रतिमा को खुद ही अपनी आँखों पर बंधी पट्टी उतार फेंकनी होगी ! इधर आम-जन की यादाश्त मछली की तरह होती है वह बहुत जल्द पिछली बातों को भूल जाता है ! उसे चारे के रूप में नई चटपटी ख़बरें परोस भ्रमित कर दिया जाता है ! पर विगत में घटी किसी घटना की पुनरावृत्ति फिर सब कुछ ताजा कर उसके आक्रोश का वायस बन जाती है !

शायद यही कारण था कि वीभत्स हत्याकांड के आरोपी को ले जाती जेल वैन पर कुछ लोग हथियारों के साथ हमला कर देते हैं ! हो सकता है कि यह एक सस्ता प्रचार पाने और मीडिया में दिखने का प्रयास भर हो पर इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि लचर न्याय व्यवस्था से परेशान आम-जन की सहानुभूति इनके साथ हो जाए ! क्योंकि आज साधारण नागरिक को कुछ ऐसा एहसास हो गया है कि ऐसे दुष्कर्मियों के पीछे कोई ना कोई हाथ ही नहीं पूरा का पूरा रसूखदार शरीर होता है ! जिसको बिके हुए मिडिया का भी पूरा साथ मिलता है ! वह देखता है कि आए दिन अखबारों में कुछ ऐसी बातें छपवाई जाती हैं जिससे लोगों को भ्रमित कर अपराधी के प्रति सहानुभूति जगाई जा सके ! 

अभी वीभत्स हत्याकांड के आरोपी के बारे में भी ऐसा होना शुरू हो गया है ! उसके पछतावे के नाटक को हवा देने के लिए कभी खबर आती है कि वह मृतक का सर गोदी में ले घंटों बैठा रहता था या फिर रातों को रोता रहता था ! जबकि उन्हीं रातों में उसके अन्य लड़कियों से संबंध भी सामने आ चुके हैं ! इधर पुलिस को अलग समय लग रहा है, सबूत जुटाने में ! इसके अलावा उसे संकरी गलियों के उस्तादों की सहायता भी मिलनी शुरू हो चुकी है जो उसे कभी बीमार कभी मानसिक अस्वस्थ या कभी कोई और कारण बता दिन पर दिन निकलवाते जा रहे हैं ! उद्देश्य एक ही है, ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत कर मामले को हल्का बना, सजा में कटौती करवाना !

सवाल उठने भी लगे हैं कि यदि सारे सबूत मिल भी जाएंगे तो क्या आरोपी को फांसी होगी ? या फिर कोई कोर्ट और किसी कोर्ट के फैसले को पलटते हुए उसे दोष मुक्त कर देगा ? निर्भया काण्ड में ऐसा ही तो हुआ था ! तीनों आरोपी संदेह और अनियमितता का लाभ ले रिहा हो गए थे ! एक पति ने अपनी पत्नी की अरबों की संपत्ति हथियाने के लिए उसकी ह्त्या कर दी पर न्याय ने उसे फांसी नहीं आजीवन कारावास दिया, जब उसने सोलह हत्याओं के दोषियों को रिहाई मिलने की बात सुनी तो उसने भी अपनी रिहाई की अर्जी लगवा दी, जैसे न्याय न हो नौटंकी हो ! कई उदाहरण हैं ऐसे जब हाथी अपनी पूँछ सहित सूई के छेद से निकलवा दिया गया हो !    

नृशंस, संगीन, हैवानियत भरे आपराधिक कांडों पर हुए कुछ फैसलों से जब पुलिस तक हतोत्साहित हो जाती है तो आम नागरिक का क्या हाल होता होगा ? जब वह देखता है कि देश की संपत्ति हड़प जाने वाले, करोड़ों-अरबों का घोटाला करने वाले, नागरिकों को बेवकूफ बना अपना घर भरने वाले, गैर कानूनी हरकतें करने वाले, अपने लाभ के लिए हत्या तक कर देने वाले कभी पैरोल पर, कभी सबूत ना मिलने पर, कभी झूठी दलीलों के सहारे छाती तान बाहर घूमते हैं तो आक्रोश के मारे उसका हरेक व्यवस्था से विश्वास उठने लगता है ! वह आपे से बाहर हो कानून अपने हाथ में लेने की भयंकर भूल कर बैठता है ! जैसा कि कुछ लोगों ने जेल वैन पर हमला कर किया ! वह भूल जाता है कि समाज ऐसे नहीं चलता ! ऐसे तो अराजकता फैल जाएगी ! कुछ भी हो उसे व्यवस्था पर विश्वास तो रखना ही होगा उसे बनाए रखने का सबसे ज्यादा दायित्व भी तो उसी का है ! उधर उसी व्यवस्था के कर्णधारों को भी समय रहते हवा का रुख पहचान लेना चाहिए इसके पहले कि वह हवा तूफान का रूप ले ले ! क्योंकि हर चीज की एक हद तो होती ही है.............!

6 टिप्‍पणियां:

रेणु ने कहा…

जी गगन जी , माननीया राष्ट्रपति जी का ये वीडियो मैंने भी आज सुबह ही देखा | उनकी पीढ़ी और उनके बाद की कई पीढ़ियों ने सम्मान का वो सुनहरा दौर देखा है जहां शिक्षक , चिकित्सक और वकीलों को भगवान् तुल्य ही समझा जाताथा पर आज माना बहुत लोग ईमानदारी से इन क्षेत्रों में कार्य कर रहे पर फिर भी इनमें भ्रष्ट लोगों की भी कमी नहीं जिन्होंने इन पवित्र पेशों की गरिमा को बहुत ठेस पहुँचाई है |और न्यायपालिका की न्याय की अति मंदगति ने आमलोगों को बहुत मायूस किया है तभी लोग आदिम न्याय प्रणाली की ओर लौटने को आतुर हैं जो कि सभ्य समाज के लिए बहुत चिंता का विषय है | सच में न्याय की देवी को अब अपना वो स्वरूप बदलना होगा जहां न्याय के लिए आँखों को खुला रखने की जरूरत है |नहीं तो भीड़ का कोई चेहरा नाग हिन् होता | ना जाने भीड़ आक्रामकता के प्रचंड प्रवाह में क्या कर दे कोई कह नहीं सकता |

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

रेणु जी
पूर्णतया सहमत!इसके पहले कि आम आदमी का दमित आक्रोश विस्फोटक बन कुछ अप्रिय कर जाए, उसकी दस्तक पर ही आंख-कान चैतन्य हो जाने चाहिएं....

अनीता सैनी ने कहा…



जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार(०१-१२-२०२२ ) को 'पुराना अलबम - -'(चर्चा अंक -४६२३ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

मन की वीणा ने कहा…

बहुत ही विचारणीय लेख
एक तरफ पेशे के प्रति ईमानदारी खत्म हो रही है दूसरी ओर आम लोगों का धैर्य तो स्थिति बहुत ही विकट सी दिखती है, सचमुच कहीं अराजकता का वातावरण न बन जाए कानुन व्यवस्था की खोखली प्रतिक्रिया।
विचारोत्तेजक लेख।
सही चिंता ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनीता जी
बहुत-बहुत शुक्रिया, मान दे सम्मिलित करने हेतु 🙏

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कुसुम जी
संविधान, विधि-विधान पर फिर गौर करने की जरुरत है ! अंदर ही अंदर बहुत कुछ बाहर आने को आतुर हो रहा है 🙏

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