शुक्रवार, 18 नवंबर 2022

हताश-निराश युवाओं को लिंकन की जीवनी जरूर पढनी चाहिए

आज के युवा जो किसी कारणवश अपने लक्ष्य से दूर रह हताश हो बैठ जाते हैं, ज़रा सी असफलता मिलते ही तनावग्रस्त हो अपनी जान तक देने पर उतारू हो जाते है, जो समझ नहीं पाते कि एक हार से जिंदगी ख़त्म नहीं हो जाती, उन्हें एक बार अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति की जीवनी जरूर पढनी चाहिए जो एक पूर्ण कर्मयोगी थे। पर क्या हर इंसान इतना मजबूत बन सकता है ? शायद हां ! इसी  "हां " को समझाने के लिए भगवान ने इस धरा पर गीता का संदेश दिया था  …… !

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अब्राहम लिंकन ने गीता तो शायद नहीं पढी होगी, पर उनका जीवन पूरी तरह एक कर्म-योगी का ही रहा। वर्षों-वर्ष असफलताओं के थपेड़े खाने के बावजूद वह इंसान अपने कर्म-पथ से नहीं हटा, इतनी हताशा, इतनी निराशा, इतनी असफलताऐं तो ऋषि-मुनियों का भी मनोबल तोड़ के रख दें ! पर धन्य था वह इंसान, जिसने दुनिया के सामने एक मिसाल कायम की ! अंत में तकदीर को ही झुकना पड़ा उसके सामने।

अब्राहम लगातार 28-30 सालों तक असफल होते रहे, जिस काम में हाथ ड़ाला वहीं असफलता हाथ आई। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। लोगों के लिए मिसाल पेश की और असफलता को कभी भी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। लगे रहे अपने कर्म को पूरा करने में, जिसका फल भी मिला, दुनिया के सर्वोच्च पद के रूप में।

अब्राहम लिंकन का जन्म 12 फरवरी 1809 को इंग्लैण्ड से आकर केंटुकी के हार्डिन काउंटी में बसे एक अश्वेत गरीब परिवार में हुआ था। उन के पिता का नाम थॉमस लिंकन तथा माता का नाम नैंसी लिंकन था। उनके पिता ने कठिन मेहनत कर अपने परिवार को संभाला था ! 

अब्राहम लिंकन अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति थे। इनका कार्यकाल 1861 से 1865 तक रहा। वे रिपब्लिकन पार्टी के सदस्य थे ! वे प्रथम रिपब्लिकन थे जो अमेरिका के राष्ट्रपति बने। उन्होने अमेरिका को उसके सबसे बड़े संकट गृहयुद्ध से उबारा था ! अमेरिका में दास प्रथा के अंत का श्रेय  भी लिंकन को ही जाता है। पर उनको इस पद तक पहुंचने के पहले इतनी असफलताओं का सामना करना पड़ा कि हैरानी होती है कि कैसे उन्होंने तनाव तथा अवसाद को अपने पर हावी नहीं होने दिया होगा ! 

घर की आर्थिक स्थिति संभालने के लिए 20-22 साल की आयु में उन्होंने व्यापार करने की सोची, पर कुछ ही समय में घाटे के कारण सब कुछ बंद करना पड़ा। कुछ दिन इधर-उधर हाथ-पैर मारने के बाद फिर एक बार अपना कारोबार शुरु किया पर फिर असफलता हाथ आयी। 26 साल की उम्र में जिसे चाहते थे और विवाह करने जा रहे थे, उसी लड़की की मौत हो गयी। इससे उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया ! पर फिर उन्होंने अपने आप को संभाला और स्पीकर के पद के लिए चुनाव लड़ा पर वहां भी हार का सामना करना पड़ा ! 31 साल की उम्र में फिर चुनाव में हार ने पीछा नहीं छोड़ा ! 34 साल में कांग्रेस से चुनाव जीतने पर खुशी की एक झलक मिली पर वह भी अगले चुनाव में हार की गमी में बदल गयी ! पर 46 वर्षीय जीवट से भरे इस इंसान ने तो हार नहीं मानी पर हार भी कहां उनका पीछा छोड़ रही थी ! फिर सिनेट के चुनाव में पराजय ने अपनी माला उनके गले में डाल दी ! अगले साल उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए खड़े हुए पर हार का भूत पीछे लगा ही रहा ! अगले दो सालों में फिर सिनेट पद की जोर आजमाईश में सफलता दूर ही खड़ी मुस्कुराती रही ! 

पर कब तक भगवान परीक्षा लेता रहता, कब तक असफलता मुंह चिढाती रहती, कब तक जीत आंख-मिचौनी खेलती रहती ! दृढ प्रतिज्ञ लिंकन के भाग्य ने पलटा खाया और 51 वर्ष की उम्र में उन्हें राष्ट्रपति के पद के लिए चुन लिया गया। ऐसा नहीं था कि वह वहां चैन की सांस ले पाते हों वहां भी लोग उनकी बुराईयां करते रहते थे ! वहां भी उनकी आलोचना होती रहती थी ! पर लिंकन ने तनाव-मुक्त रहना सीख लिया था। उन्होंने कहा था कि कोई भी व्यक्ति इतना अच्छा नहीं होता कि वह राष्ट्रपति बने, परंतु किसी ना किसी को तो राष्ट्रपति बनना ही होता है। 

तो यह तो लिंकन थे जो इतनी असफलताओं का भार उठा सके ! पर क्या हर इंसान इतना मजबूत बन सकता है ? शायद हां ! इसी 'हां' को समझाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण जी ने इस धरा पर गीता का संदेश दिया था। क्योंकि वे जानते थे कि इस ''हां'' से आम-जन को परिचित करवाने के लिए, उसकी क्षमता को सामने लाने के लिए उसे मार्गदर्शन की जरूरत पड़ेगी।

6 टिप्‍पणियां:

मन की वीणा ने कहा…

लिंकन के माध्यम से चुनौती स्वीकार ने का पाठ पढ़ाता लेख।
सार्थक।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कुसुम जी
हार्दिक आभार🙏

Bharti Das ने कहा…

सुंदर प्रेरणादायक आलेख

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

भारती जी
"कुछ अलग सा" पर आप का सदा स्वागत है

Jyoti Dehliwal ने कहा…

प्रेरणास्पद आलेख, गगन भाई।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ज्योति जी
बहुत-बहुत धन्यवाद व आभार 🙏

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