गुरुवार, 16 जून 2022

मैं ही क्यों..!

इंसान की फितरत है कि उसे कभी संतोष नहीं होता ! किसी ना किसी चीज की चाह हमेशा बनी ही रहती है ! पर एक सच्चाई यह भी है कि हम अपनी जिंदगी से भले ही खुश ना हों पर हजारों ऐसे लोग भी हैं, जो हमारी जैसी जिंदगी जीना चाहते हैं, वैसे जीवन की कामना करते हैं ! इसलिए जो है, उसी में संतुष्ट हो ऊपर वाले को धन्यवाद देना चाहिए.....!  

#हिन्दी_ब्लागिंग 

समय के साथ-साथ मनुष्य के जीवन में तरह-तरह के उतार-चढ़ाव आते रहते हैं ! कभी ख़ुशी कभी गम, कभी ज्यादा कभी कम, कुछ ना कुछ घटता ही रहता है ! इंसान को सदा यही लगता है कि जो कुछ वह कर रहा है वह सही है ! अपने अनुचित कार्यों को भी सही ठहराने का तर्क वह खोज लेता है ! कभी-कभार अंतरात्मा के चेताने पर अपनी तसल्ली या अपराधबोध से उबरने के लिए, दान-पुण्य के नाम पर कुछ खर्च वगैरह भी करता है ! धर्मस्थलों का पर्यटन या दर्शन तो आम बात है ही ! पर यह सब सतही तौर पर ही होता है ! असल में वह कभी भी खुद को प्रभु के चरणों में पूरी तरह समर्पित नहीं करता ! उसके मन में एक अविश्वास, एक संदेह बना ही रहता है !  

ऐसे में यदि उस पर कोई विपत्ति आन पड़ती है या किसी बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ता है तो वह शिकायत स्वरूप अपने इष्ट की ओर मुखातिब हो यही पूछता है कि ऐसा मेरे साथ ही क्यों ? क्योंकि उसे तो लगता है कि वह सदा नेक काम करता रहा है ! भगवान की पूजा-अर्चना, उनके दर्शन, दान-पुण्य-दक्षिणा भी भरपूर देता रहा है, फिर उसे दुःख-तकलीफ कैसे साल सकते हैं ? वो तो सदा सुख पाने का अधिकारी है !  

इसी संबंध में वर्षों पहले की एक बात फिर प्रासंगिक हो उठती है ! टेनिस के खेल के एक बहुत बड़े ख्यातनाम खिलाड़ी रहे है आर्थर ऐश ! 10, जुलाई, 1943 को अमेरिका मे जन्मे ऐश, अंतर्राष्ट्रीय टेनिस में सर्वोच्च स्तर पर खेलने वाले प्रथम अफ्रीकी अमेरिकन खिलाड़ी थे। उनके नाम 33 उपाधियाँ थीं, जिनमें एक-एक बार विम्बलडन, आस्ट्रेलियाई ओपन, अमेरिकी ओपन के साथ साथ दो बार की फ्रेंच ओपन भी शामिल हैं ! परंतु हृदय की दो बार तथा मस्तिष्क की एक बार शल्य चिकित्सा होने के बाद उन्होंने समय से पहले ही कोर्ट तो छोड़ दिया पर समाज को मानवाधिकार, जन स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़े कार्यों में अपना योगदान देते रहे ! अपने इलाज के दौरान संक्रमित रक्त चढ़ाए जाने के फलस्वरूप वे एचआईवी से संक्रमित हो गए थे ! इसका खुलासा अपने प्रशंसकों को उन्होंने खुद किया था !
बिमारी के दौरान उनके पास उनके चाहने वालों के अनगिनित पत्र आते थे ! ऐसे ही एक पत्र में उनके एक दुखी प्रशंसक ने लिखा था कि इस भयानक बिमारी के लिए भगवान ने आप को ही क्यों चुना ! उसके जवाब में ऐश ने जो लिखा वह उनके प्रति लोगों के आदर-सम्मान को और भी बढ़ा देने वाला था ! ऐश ने जवाब दिया, मेरे साथ ही करीब पांच करोड़ बच्चों ने टेनिस खेलना शुरू किया ! उनमें से करीब पचास लाख इस खेल को सीख पाए ! जिनमें से पांच लाख पेशेवर खिलाड़ी बन सके ! इनमें से पचास हजार इस खेल की प्रतियोगिताओं में नामजद हुए ! पांच हजार ग्रैंड स्लैम में पहुंचे ! 50 खिलाड़ी विम्बलडन में पहुंचे ! उसमें भी चार सेमी-फाइनल में आए ! फिर दो ने खेल के फाइनल में  जगह बनाई और फिर जब मैंने कप को हाथों में उठाया तब मैंने भगवान् से नहीं पूछा कि मैं ही क्यूँ ? तो अब जब मैं इस तकलीफ में हूँ तो मैं उनसे यह कैसे पूछ सकता हूँ कि मैं ही क्यूँ ?  
इस सारी बात का लब्बोलुआब यह है कि जब हम उस ऊपर वाले को अपनी खुशी का जिम्मेदार नहीं मान सारा श्रेय खुद ले लेते हैं तो दुःख में उसे उलाहना क्यों देना ! उसके द्वारा उत्पन्न की गईं तरह-तरह की परिस्थितियां, हालात हमें खुद को परखने, निखरने का मौका देते हैं ! इंसान की फितरत है कि उसे कभी संतोष नहीं होता ! किसी ना किसी चीज की चाह हमेशा बनी ही रहती है ! पर एक सच्चाई यह भी है कि आप अपनी जिंदगी से भले ही खुश ना हों पर हजारों ऐसे लोग भी हैं जो आप जैसी जिंदगी जीना चाहते हैं ! इसलिए जो है उसी में संतुष्ट हो ऊपर वाले को धन्यवाद दीजिए !
यह तो सभी जानते हैं कि यदि धन से ही खुशी मिलती तो हर अमीर सड़कों पर रोज नाच रहा होता ! पर यह खुशी गरीब के बच्चों के हिस्से आई है ! सबसे बड़ा धन संतोष है ! यह है तो सब कुछ है ! सो जो नहीं है उसका गम ना कर, जो है उसका नम्रता पूर्वक शुक्रिया अदा कर हमें खुद खुश रहनेऔर जहां तक हो सके औरों को भी खुश रखने का उपक्रम करना चाहिए ! शैलेन्द्र जी ने क्या खूब जीने की परिभाषा बताई है :-  

"किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार, 

किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार, जीना इसी का नाम है.."

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

शनिवार, 11 जून 2022

लगता है 'फिनिक्स' बन गया हूं

 शिकायत उससे भी नहीं करता ! उसकी यही इच्छा है तो यही सही ! उसी का अंश हूँ ! उसी की कृति हूँ ! इंतजार करता हूं, अगली सुबह का, जो फिर ले कर आएगी एक नया जोश, नया विश्वास मेरे लिए ! लगता है "फीनिक्स' बन गया हूँ ! रोज झोंक देता हूँ, खुद को जिंदगी के अलाव में ! तप कर, जल कर, शायद निखर कर फिर उठ खड़ा होता हूँ, अन्यायों का, आरोपों का, मिथ्या वचनों का, प्रपंचों का सामना करने हेतु ! पर कितने दिन.......नहीं जानता !

#हिन्दी_ब्लागिंग 

रोज सुबह उठता हूं, पिछला सब कुछ भुला, हताशा त्याग, कमर कस, जीवन संग्राम में कुछ कर गुजरने को ! एक नए जोश, दृढ विश्वास, नई चेतना के साथ !

पर जिंदगी भी कहाँ मानती है ! वह भी रोज की तरह मेरे इंतजार में तैनात रहती है, अपनी दसियों दुश्वारियाँ लिए, मुझे हताश-निराश-परास्त करने के लिए !
थक जाता हूंँ ! हो जाता हूँ मायूस ! घेर लेते हैं निराशा के अंधेरे ! भीतर ही भीतर कहीं एक भय डेरा जमाने लगता है ! हो जाता हूं पस्त ! हताश-निराश ! पसर जाता हूं, बिस्तर पर एक घायल सैनिक की तरह ! पर हार नहीं मानता, परास्त नहीं होता ! कोशिश करता हूँ जिजीविषा को बचाए रखने की
फिर शुरू हो जाती है, वही जंग ! वही जद्दोजहद, वही अगम्य कठिनाइयाँ ! वही विपरीत परिस्थितियां ! तुल जाती है, जिंदगी अपने हर दांव-पेंच, तरकश के हर तीर, हर पेंच-ओ-खम को आजमाने ! एक ही उद्देश्य मुझे किसी भी तरह झुकाने का !

थक जाता हूंँ ! हो जाता हूँ मायूस ! घेर लेते हैं निराशा के अंधेरे ! भीतर ही भीतर कहीं एक भय डेरा जमाने लगता है ! हो जाता हूं पस्त ! हताश-निराश ! पसर जाता हूं, बिस्तर पर एक घायल सैनिक की तरह ! पर हार नहीं मानता, परास्त नहीं होता ! कोशिश करता हूँ जिजीविषा को बचाए रखने की !

शिकायत उससे भी नहीं करता ! क्योंकि वह तो अन्तर्यामी है ! सर्वव्यापी है ! सर्वज्ञ है ! उसकी मर्जी के बगैर कहां कुछ भी होना संभव है ! उसकी यही इच्छा है तो यही सही ! उसी का अंश हूँ ! उसी की कृति हूँ !

इसीलिए इंतजार करता हूं फिर अगली सुबह का, जो फिर ले कर आएगी एक नया जोश, नया विश्वास, एक नई आशा मेरे लिए ! स्थावर तो कुछ भी नहीं है...... समय भी नहीं ! लगता है फीनिक्स बन गया हूँ ! रोज झोंक देता हूँ खुद को जिंदगी के अलाव में ! तप कर, जल कर, शायद निखर कर फिर उठ खड़ा होता हूँ, अन्यायों का, आरोपों का, मिथ्या वचनों का, प्रपंचों का सामना करने हेतु ! पर कितने दिन.......नहीं जानता !!!

मंगलवार, 7 जून 2022

थोड़े से सब्र और समय की जरुरत है

चंद दिनों पहले ही ताली ठोक कर लोगों को खामोश करने का आदेश देने वाले आज कहीं किसी का आदेश मानने पर मजबूर हुए बैठे हैं ! सदा हमारी खैरात, हमारे रहमो-करम पर आश्रित रहने वाले तीनों पड़ोसियों ने जरा सी आँख तरेरी थी, आज आँख उठाने की हैसियत नहीं रह गई है उनकी ! कुछ और दूर जाएं तो पहले हमें बात करने लायक ना समझने वाले आज हमसे बात करने का मौका और बहाना खोज रहे हैं ! जो हमें नाकाबिल, खरीदार समझ कुछ भी बेच, थमा जाते थे, आज हमारी बनाई वस्तुओं को ललचाई नजर से देख रहे हैं ! कहते हैं कि जो समय से सबक नहीं लेता उसे समय सबक जरूर सिखाता है....!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

अपने यहां कई कहावतें बहुत ही मशहूर हैं, जैसे ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती ! न्याय में देर है अंधेर नहीं ! ऊपर वाले से कुछ भी छिपा नहीं रहता ! साँच को आंच नहीं ! सच्चे का बोलबाला, झूठे का मुंह काला ! सब कुछ यहीं भुगतना पड़ता है ! यह सब बातें अपने सच होने का प्रमाण भी देती रहती हैं ! तो इधर जो घटनाक्रम चला या निश्चित षड्यंत्र के तहत चलाया गया, तो उपरोक्त अनुभवों के अनुसार उसका परिणाम भी बहुत जल्द सामने आ जाएगा ! थोड़े से सब्र और समय की जरुरत है !

कुछ कुंठाग्रस्त, पूर्वाग्रही, चाटुकारों के लिए देश की मान-मर्यादा से बढ़ कर उनके आका हैं, क्योंकि वे ही उनकी रोजी-रोटी-आमदनी का जरिया हैं ! वैसे ये लोग भी सब कुछ जानते-समझते हैं ! इसीलिए जब किसी को अपने हित पर लात पड़ती दिखती है वह तुरंत दूसरे दरवाजे पर जा अपना हित सहलवाने लगता है ! जिनको अभी तक मौका नहीं मिला या किसी ने चारा नहीं डाला वह यहां-वहाँ अपनी भड़ास निकालने पर मजबूर हैं ! इनके लिए देश-समाज-नैतिकता जैसे शब्द बेमानी हैं ! इनका एक ही मोटो है कि इनकी जेब के मोटेपन पर कोई असर ना पड़े ! देश के सम्मान की कीमत पर चारणाई भी ऐसे लोगों की करते हैं, जो खुद के धुसरिया गए आभामंडल के साथ अपने आगत से आशंकित, डरते-लरजते छुपने के बहाने और ठौर खोजते फिर रहे हैं !

अभी जो घटनाक्रम चला, उससे ऐसे विघ्नसंतोषियों को जरा सी अफीम की खुराक मिल गई ! जिसकी पिनक में इन्हें अपनी लंतरानियां फिर से छेड़ने का मौका मिल गया ! ये भूल गए कि शेर के शिकार में कभी दो कदम पीछे भी हटना पड़ता है, यह शिकारी की कमजोरी नहीं उसकी रणनीति (कूटनीति) होती है ! जो बड़े-बड़े शेरों का शिकार कर चुका होता है उसका जंगल में अपने अभियान के दौरान चूहे, सियार, लोमड़ी, बिच्छु, सांप इत्यादि से भी पाला जरूर पड़ता है, उसके लिए भी आगे-पीछे होना पड़ता है, इसका मतलब यह नहीं कि वह कीड़े-मकौड़ों, सांप-बिच्छुओं से घबरा गया हो ! भरी दोपहरी में दीपक राग गाने वाले या तो सरस्वती जी के घोर दुश्मन हैं या फिर ''नयनसुख'' ! 

इन लोगों के सामने चंद दिनों पहले ही ताली ठोक कर लोगों को खामोश करने का आदेश देने वाले आज कहीं किसी का आदेश मानने पर मजबूर हुए जा बैठे हैं ! देश में तो ऐसे दसियों उदाहरण हैं ! पड़ोस में ही झाँक लीजिए, सदा हमारी खैरात, हमारे रहमो-करम पर आश्रित रहने वाले तीनों पड़ोसियों ने जरा सी आँख तरेरी थी, आज आँख उठाने की हैसियत नहीं रह गई है ! कुछ और दूर जाएं तो पहले हमें बात करने लायक नहीं समझते थे, आज हमसे बात करने का मौका और बहाना खोजते हैं ! जो हमें नाकाबिल, खरीदार समझ कुछ भी बेच, थमा जाते थे, आज हमारी बनाई वस्तुओं को ललचाई नजर से देखते हैं ! कहते हैं कि जो समय से सबक नहीं लेता, समय उसे सबक जरूर सिखाता है ! 

ज्ञातव्य है कि कुछ साल पहले कोई भी सूचना या विवरण इत्यादि अंग्रेजी, हिंदी व उर्दू में दिया जाता था ! जिससे जनता जो भाषा उसे आती है उस में समझ सके ! आज फिर कुछ डिग्रीधारी अनपढ़ों के लिए कहीं-कहीं वैसी व्यवस्था की जरुरत दिख पड़ रही है ! अभी पिछले घटनाक्रम के चलते कुछ मौकापरस्त लोग भारत द्वारा ओ आई सी से तथाकथित माफीनामे की बात को अपने  गढ़, अनपढ़ लोगों के सामने उछाल, अपनी दुकान चलाने की कोशिश कर रहे हैं ! इसीलिए लगता है कि सरकार को विवादास्पद मामलों से संबंधित विज्ञप्तियां अब जनसाधारण की भाषा में भी देनी चाहिए ! जिससे लोग सच से वाकिफ हो सकें ! तत्कालीन घटनाक्रम से जुडी सरकारी विज्ञप्ति को जिसने भी पढ़ा और समझा है वह अच्छी तरह जानता है कि यह कोई माफीनामा नहीं है ! ये जो पढ़े-लिखे अनपढ़, गैर जिम्मेदार लोग बात का बंतगढ़ बना रहे हैं क्या वे बता सकते हैं कि अंग्रेजी में लिखी इस विज्ञप्ति के किस वाक्य से माफी माँगने का अर्थ निकलता है ! उल्टा यह तो विनम्रता से चेतावनी देने जैसा है ! सभी जानते है कि आज भारत सिर्फ चेतावनी देता ही नहीं, स्ट्राइक भी करता है !  

“It is regrettable that OIC Secretariat has yet again chosen to make motivated, misleading and mischievous comments. This only exposes its divisive agenda being pursued at the behest of vested interests,” said Bagchi. He urged the OIC Secretariat to stop pursuing its communal approach and show due respect to all faiths and religions.

जिन देशों का नाम ले कर तेल की कमी का डर दिखाया जा रहा है, देखा जाए तो तेल का अलावा उनके पास और है क्या ! हमें तेल नहीं मिलेगा तो कुछ मुश्किलात सामने आएँगे, पर उनका क्या होगा ! क्या वे उसी तेल को पी कर जिन्दा रहेंगे ! जीवन-यापन की हर जरुरी चीज के लिए दूसरों का मुंह जोहने वाले ऐसी जुर्रत करने की सोच भी नहीं सकते ! इस पर तेल का खेल है कितने दिन ! सारा संसार आज उसके विकल्प की खोज में जुटा हुआ है ! देर-सबेर ऊर्जा का स्रोत मिल ही जाएगा ! फिर.....ना तेल रहेगा नाहीं उस की धार ! 

आशा है भगवान की लाठी, समय का चक्र, दुष्कर्मों का परिणाम अब जल्दी ही सबक सिखाने हेतु किसी ना किसी रूप में अवतरित होंगे, ताकि आगे भी लोग कहावतों पर विश्वास करते रहें !   

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"मोबिकेट" यानी मोबाइल शिष्टाचार

आज मोबाइल शिष्टाचार पर बात करना  करना ठीक ऐसा ही है जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जा रहा हो ! अधिकाँश लोग इन सब ...