नन्ही - नन्हीं बूँदों के अलौकिक संगीत के बीच सतरंगी पुष्पों से श्रृंगार किए, धानी चुनरी ओढ़े, दूब के मखमली गलीचे पर जब प्रकृति, इंद्रधनुषी किरणों के साथ हौले से पग धरती है तो नभ के अमृत - रस से सराबोर हुए पृथ्वी के कण - कण का मन - मयूर नाचने - गाने को बाध्य सा हो जाता है। बसंत यदि ऋतु-राज है तो वर्षा ऋतु-साम्राज्ञी है ! उसी महारानी का अद्भुत श्रृंगार 'मानसून' कहलाता है ! इसके क्रियान्वयन के लिए उन ख़ास हवाओं जरुरत पड़ती है, जो हिंद व अरब महासागर से उठ, हमारे देश को दक्षिण-पश्चिम दिशा से घेर, जमीन की तरफ पानी लेकर आती हैं ! उन्हीं हवाओं को "मानसून" के नाम से जाना जाता है। ऐसा न हो कि प्रकृति का यह अनुपम, अनमोल तोहफा, राग पावस और बूँदों की सरगम की मधुर ध्वनि किसी कंप्यूटर की डिस्क में ही सिमट कर रह जाए...............!!
#हिन्दी_ब्लागिंग
इस बार देश में भले ही पिछले सालों जैसी झुलसा देने वाली उतनी लंबी गर्मी न पडी हो, देश के अधिकांश भागों में मानसून ने भी कुछ पहले ही दस्तक दे दी थी। पर दिल्ली समेत कुछ इलाकों में गर्मी ने विदा होने के पहले जून के अंतिम सप्ताह में अपना असली रूप कुछ न कुछ दिखाया जरूर है। हालांकि उसका रौद्र रूप अपने चरम पर नहीं रहा, नाही उतनी पानी की किल्लत हुई पर एक बार तो उसने अपनी उपस्थिति जाहिर कर ही दी। समयानुसार प्रकृति ने फिर करवट बदली है ! कुछ देर से ही सही सकून देने वाली पावस ऋतु के कदमों में बंधी पायल की सुमधुर रिम-झिम ध्वनि सुनाई पड़ने लगी है। धीरे-धीरे सारा देश इस मधुर ध्वनि के आगोश में खो जाने वाला है। इस बार कुछ देर से ही सही पर आकाश से बरसने वाली इस अमृत रूपी बरसात से जल्द ही सिर्फ हमारा देश ही नहीं, पाकिस्तान और बांग्ला देश भी तृप्त और खुशहाल होने वाले हैं। जून से सितंबर तक होने वाली इस बरसात को जो हवाएं, हिंद और अरब महासागर से उठ, अपने देश को दक्षिण-पश्चिम दिशा से घेर, जमीन की तरफ पानी लेकर आती हैं उन्हीं हवाओं को "मानसून" के नाम से जाना जाता है। मानसून नाम अरबी भाषा के ''मावसिम'' शब्द से आया है।
24 टिप्पणियां:
मीना जी
सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
"बसंत यदि ऋतु-राज है तो वर्षा ऋतु-साम्राज्ञी है।"
बिलकुल सही कहा आपने,यदि ऐसी सुचना है तो शायद प्रकृति हम पर थोड़ी मेहरबान हो रही है, सादर नमन आपको
कामिनी जी
सदा स्वागत है आपका
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ जून २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
श्वेता जी
सम्मिलित करने हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद
सही कहा
ओंकार जी
हार्दिक आभार
जानकारी परक लेख । सवाल सच में हम पर ही खड़े होने चाहिएँ , पर्यावरण का जो नुकसान हम लोगों ने किया है खामियाज़ा तो भुगतना ही पड़ेगा । सार्थक लेख ।
"Global Warming" के लिए सारे आधुनिक भौतिकवादी और विध्वंसकारक उपकरणों को विश्व के हम सभी विभत्स प्राणियों को त्यागना होगा, जो दूर-दूर तक हम दो पैर वाले प्राणियों के लिए असम्भव दिख रहा है .. शायद ...
बहुत सुंदर सृजन ।
संगीता जी
बहुत-बहुत धन्यवाद
सुबोध जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है आपका
हर्ष जी
हौसलाअफजाई हेतु अनेकानेक धन्यवाद
बहुत सी सुंदर सारगर्भित आलेख, बहुत बहुत आभार आपका।
बहुत ही सारगर्भित एवं चिन्तनपरक लेख।
मौसम की विसंगतियों एवं ग्ली वार्मिंग जैसी समस्या के लिए हम स्वयं ही जिम्मेदार हैं।
कृपया ग्लोबल वार्मिंग पढें।
जिज्ञासा जी
अनेकानेक धन्यवाद
सुधा जी
सब जानने-बूझने के बावजूद भी हम लापरवाह बने हुए हैं
जानकारी परक लेख। आपने सही कहा अगर हम न सम्भले तो शायद हमें इसका तगड़ा खामियाजा भुगतना पड़े।
विकास जी
कायनात पूरे गुस्से में है पर हम अभी भी सबक लेने को तैयार नहीं हैं
मानसून पर रोचकता पूर्ण जानकारी
Bahut hi rochak w sundar wiwran
अनीता जी
बहुत-बहुत धन्यवाद
कदम जी
अनेकानेक धन्यवाद
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