शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

सरकार और किसान, जरुरी है विश्वास और भरोसा कायम होना

किसान आंदोलन कुछ भी हो, है तो दुखदाई ! कठिन परिस्थितियां  ! गहराती ठंड ! खुला आसमान ! हैं तो वे भी इंसान ही !कुछ लोगों का कहना है कि यह सिर्फ पंजाब के किसानों की बात है ! यदि ऐसा है भी तो वे भी तो हमारे अपने हैं ! उनकी दुःख-तकलीफ को दूर करने की जिम्मेदारी भी तो हमारी ही है ! यदि वहां विपक्ष का शासन है भी तो क्या उन्हें हक़ नहीं कि वे अपनी शंका-डर-गलतफहमी दूर करवा सकें ! यह काम समय रहते ही कर लिया जाता तो न इतना बखेड़ा होता, ना विघ्नसंतोषियों के कोई अवसर हाथ आता, ना ही हताश-निराश कुतर्कियों और तथाकथित बुद्धिजीवियों को वैमनस्य फ़ैलाने का मौका मिल पाता ..........!! 

#हिन्दी_ब्लागिंग 
आम देशवासी की यही चाहत होती है कि सर्वत्र सुख-शांति, अमन-चैन बना रहे ! भले ही उनका एक अच्छा-खासा प्रतिशत राजनीती से दूर ही रहता हो पर वह देश-काल में घटते घटनाक्रमों से बिल्कुल निस्पृह नहीं रह सकता ! ऐसा ही हो रहा है सरकार और किसानों के बीच चल रहे विवादों से ! उठते बवाल, उलझते मसले, खिंचती समस्याएं, मचती अफरा-तफरी, उत्पन्न होते व्यवधान, अवाम के मन में भी सवाल उठाने  लगे हैं कि क्यों नहीं समय रहते इस सब का हल निकाल लिया गया ? क्यों किसानों को लम्बी-लम्बी यात्राएं कर सरकार के कान पर जूँ रेंगवानी पड़ी ? 

सबसे बड़ी बात, यह तो थाली में सजा कर मौका दे दिया गया हाशिए पर सिमटे, लुटे-पिटे-हारे-थके उन विरोधियों को जो ना संसद में लड़ पाते हैं नाहीं चुनावों में ! पर सड़क पर आ झूठ को सच में बदलना खूब आता है। जो माहिर हैं, जनता को बरगलाने में ! जो सिर्फ मौका तलाशते रहते हैं अराजकता फैलाने का ! उन्हें ही फिर अपनी दूकान खोलने का अवसर दे दिया गया ! विघटनकारियों को फिर एक मंच मिल गया !षड्यंत्रकारियों के लिए छींका ही तोड़ डाला गया ! जब जाहिर ही था कि बात कर के ही समस्या सुलझनी है, और यह काम समय रहते ही कर लिया जाता तो न इतना बखेड़ा होता, ना विघ्नसंतोषियों के कोई अवसर हाथ आता, ना ही हताश-निराश कुतर्कियों और तथाकथित बुद्धिजीवियों को वैमनस्य फ़ैलाने का मौका मिलता !  
सरकार भी यही चाहती है कि उगाने वाले को सही मूल्य मिल सके ! उपभोक्ताओं को सही कीमत पर जींस उपलब्ध हो सकें ! बीच के कमाने वालों पर नकेल कसी जा सके !  पर कहीं ना कहीं झोल तो जरूर है, नहीं तो अभी भी तय कीमत से आधी पर से भी कम पर क्यों और कैसे धान बिक रहा है 
सरकार के अनुसार उसके द्वारा लाए गए कानून से किसान का भाग्य बदल जाएगा ! यदि ऐसा है तो किसान ही, क्यों नहीं इस बात को मान रहा ? क्यों नहीं वह उस पर विश्वास कर रहा ? सरकार के अनुसार, क्यों वह विरोधियों के बहकावे में आ रहा है ? जब वे लोग उसे बरगला सकते हैं तो सरकार क्यों नहीं समझा पा रही ? जबकि सरकार में एक से एक उम्दा वक्ता और प्रचार विशेषज्ञ इस काम के लिए सिद्धहस्त हैं ?  यदि वर्षों से बार-बार ठगा गया किसान चाहता है कि ''मंडी व्यवस्था'' और ''एमएसपी'' बनी रहे, जिसका सरकार खुद भी दावा कर रही है, तो उसे अनिवार्य कर देने में संकोच क्यों ? इसके आड़े कुछ ''इफ-बट्स'', बिचौलियों के हथकंडे, माफियाओं के कुचक्र जरूर आ सकते हैं, जिनसे निपटना सरकारी महकमों का काम है। उन्हें काबू में किया जाए ! उनसे डर कर देश के अन्नदाता को क्यों तंग किया जाए ! क्यों उसे किसी भी बात के लिए मजबूर किया जाए ! एक-एक कर अलग होते सहयोगियों के बावजूद लगता है कुछ लोग इसको गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, अभी किसी महानुभाव ने कहा है कि ''जो चाहे संबंध तोड़ ले हमें किसी की गरज नहीं है'' ! सत्ता के मद में कोई अपने अहम के चलते बात का बतंगड़ ना बना दे इस बात का ध्यान रखअपने सदस्यों को सरकार द्वारा ऐसी गर्वोक्तियों से तो निश्चित रूप से दूर रहने की चेतावनी जरूर मिलनी चाहिए ! 

कुछेक को छोड़ दें तो आम किसान सदा से ही हमारे सामाजिक ढाँचे का कोमल, कमजोर तथा उपेक्षित सा हिस्सा रहा है। सदियों से उसका मतलब के लिए ही उपयोग होता आ रहा है ! अभी स्थिति जरूर पहले से बहुत सुधरी है पर अभी भी बहुत सा काम बाकी है। जो इस किसानआंदोलन से साफ़ नजर आ रहा है। कुछ भी हो यह है तो दुखदाई ! कठिन परिस्थितियां ! गहराती ठंड ! खुला आसमान ! हैं तो. वे भी इंसान ही ! कुछ लोगों का कहना है कि यह सिर्फ पंजाब के किसानों की बात है ! यदि ऐसा है भी तो, वे भी तो हमारे अपने हैं ! उनकी दुःख-तकलीफ को दूर करने की जिम्मेदारी भी तो हमारी ही है ! यद्यपि वहां विपक्ष का शासन है, तो क्या सिर्फ इसीलिए उन्हें हक़ नहीं कि वे अपनी शंका-डर-गलतफहमी दूर करवा सकें ? ये तो केंद्र के लिए एक ऐसा सुनहरा मौका था जबकि उन के साथ प्रेम पूर्वक बात कर, उनकी शंका दूर कर, समस्या का हल निकाल उनका मन और विश्वास जीता जा सके।  

कई अति उत्साही लोग जोर-जबरदस्ती और दंड का उपयोग करने की सलाह देने लगे हैं जो कि निहायत ही गैर जिम्मेदाराना मश्विरा है ! ध्यान देने की बात है कि हजारों-हजार की संख्या में पंजाब से दिल्ली पहुँचाने वाले जत्थों द्वारा किसी भी तरह का उत्पात नहीं हुआ ! ना आगजनी की घटनाएं हुईं ना हीं पथराव  इत्यादि की ! तो पूरी तरह शांति और अहिंसक मार्च कर रहे सीधे-सादे लोगों पर क्यों बर्बरता बरती जानी चाहिए ! जबकि सरकार को बदनाम करने की मंशा वाले विरोधियों का ध्येय भी यही होगा ! यह भी तो सच है कि जब भी कोई सरकार विरोधी आंदोलन छिड़ता है तो वह विपक्ष के लिए राजनीती मांजने का मौका बन जाता है। यहां भी यही हो रहा है। तरह-तरह के हथकंडों का उपयोग शुरू हो गया है। पर आज के तकनीकी सक्षम समय में ऐसे लोगों की पहचान कोई बड़ी समस्या नहीं है ! जरुरत है भेड़ की खाल ओढ़े, बवाल मचाने की ताक में लगे भेड़ियों को सामने ला सबक सीखाने की ! 

क्या ही अच्छा होता कि माँ बिन रोए ही बच्चे को दूध उपलब्ध करवा देती ! बगावत के बीज अंकुरित होने के पहले ही उनका उपाय कर लिया जाता ! चिंगारी लपट ना बन जाए इसका ध्यान रखा जाता ! खासकर पंजाब को मद्देनजर रख, जहां बड़ी मुश्किल से अमन-चैन कायम हो पाया है ! अभी भी समय है कि तुरंत बिना किसी पूर्वाग्रह और कुंठा के इस विवाद का हल ढूंढ लिया जाए ! सरकार की नीतियां तुरंत और ढंग से लागू हो सकें ! उगाने वाले को सही मूल्य मिल सके ! उपभोक्ताओं को सही कीमत पर जींस उपलब्ध हो सकें ! बीच के कमाने वालों पर नकेल कसी जा सके ! भले ही सरकार भी यही चाहती है पर कहीं ना कहीं झोल तो जरूर है, नहीं तो अभी भी तय कीमत से आधी पर से भी कम पर क्यों और कैसे धान बिक रहा है ! किसान और सरकार जब दोनों एक दूसरे का विश्वास और भरोसा पा लेंगे तभी देश की खुशहाली संभव हो पाएगी।  

8 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सटीक विश्लेषण

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुशील जी
हार्दिक आभार

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सामयिक और उपयोगी आलेख।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी
अनेकानेक धन्यवाद

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

बिल्कुल सही।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शिवम जी
रोग पता चलते ही इलाज हो जाए तो बेहतर है

सधु चन्द्र ने कहा…

सम्यक विश्लेषण

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सधु जी
अनेकानेक धन्यवाद

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