थापर जी यदि आपकी दृष्टि में अशोक इसलिए महान नहीं है क्योंकि उसके द्वारा लडे गए कलिंग युद्ध में एक लाख सैनिक हताहत हुए थे, तो क्या अकबर ने जो दसियों युद्ध लड़े उसमें सैनिकों से गलबहियां डाली गई थीं या उनमें कुश्ती से फैसला हुआ था ! उसमें मरे सैनिकों की मौत क्या आपके लिए कोई मायने नहीं रखती ? आपकी कसौटी के अनुसार तो फिर उसे भी महान नहीं होना चाहिए क्योंकि उसके द्वारा लडे गए युद्धों में मरने वाले सैनिकों की संख्या कहीं ज्यादा थी .............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
जब सफलता, सम्मान और प्रतिष्ठा कुछ लोगों के सर पर पालथी मार कर जम जाते हैं, तब उन्हें संभालना सब के बस की बात नहीं रह जाती ! ऐसे में उन्हें हर इंसान गौण नजर आने लगता है। अपनी अक्ल और ज्ञान के गुमान के सामने उन्हें दूसरों की हर बात गलत लगने लगती है। इनके विचार, इनके ख्याल, इनकी मान्यताएं इनकी अपनी श्रेष्ठता की भावना के साथ घुल-मिल कर इनके दिलो-दिमाग पर बुरी तरह काबिज हो इन्हें विवेकहीन बना डालती हैं। इन्हें अच्छे-बुरे, सही-गलत का भान ही नहीं हो पाता। या कहा जाए तो दूसरों की बात काट कर ऐसे लोग अपने आप को बेहतर साबित कर आत्मसुख की अनुभूति करने लगते हैं। ऐसा इंसान यदि पत्रकार हो तो वह करेले के स्वाद सरीखा हो जाता है और यदि खुदा ना खास्ता संपन्न पृष्ठभूमि से हो तब तो ''वह'' कहावत भी चरितार्थ हो जाती है ! आजकल ऐसे बहुतेरे अखबारनवीस बोलने की आजादी की आड़ का गलत फ़ायदा उठा, किसी पर भी कुछ भी छींटाकसी कर अपनी दूकान चलाने में मशगूल हैं।
स्वतंत्रता के बाद भी देश में एक जमात ऐसी बची रह गई, जो कभी भी अंग्रेजियत के मोह से उबर नहीं पाई ! इनमें से ज्यादातर की तालीम कॉन्वेंटों में उस भाषा हुई, जो दुनिया के सिर्फ चार-या पांच देशों की भाषा है या फिर हमारे और पाकिस्तान जैसे कुछ गुलाम मानसिकता वाले देशों की ! जहां वही पढ़ाया-सिखाया जाता था जिसमें अंग्रेजों की सहूलियत और मर्जी होती थी ! इतिहास भी उनके अनुसार ही चलता चला आ रहा है, जो विदेशियों द्वारा अपने आकाओं की स्तुति में लिखा गया ! जिसमें आक्रांताओं को नायक बनाया गया, देश के वीरों को बदनामी सौंपी गई ! दशकों तक ऐसी ही विचारधारा देश के सिंहासन पर भी काबिज रही ! आज जब सच्चाई पर से सैंकड़ों सालों से जमा धूल को हटाए जाने की कोशिश हो रही है, तो उस विचारधारा द्वारा पोषित कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी, जो अब तक अपना एक गुट बना चुके हैं और जिनका एकमात्र एजेंडा सिर्फ विरोध का है, उन्हें यह सब नागवार गुजरने लगा !
अभी पिछले दिनों उत्तर-प्रदेश के मुख्य मंत्री श्री आदित्यनाथ योगी जी ने बताया कि आगरा में निर्माणाधीन मुगल म्यूजियम, छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर स्थापित होगा। उन्होंने कहा कि गुलामी की मानसिकता के प्रतीक चिन्हों को छोड़, राष्ट्र के प्रति गौरवबोध कराने वाले विषयों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। हमारे नायक मुगल नहीं हो सकते ! शिवाजी महाराज हमारे नायक हैं, इसलिए यह म्यूजियम छत्रपति शिवाजी के नाम पर होगा।
इस बात पर कुछ लोगों का भड़कना लाजिमी था। ऐसा ही एक नाम है करन थापर का। जो मुख्य मंत्री को उनका काम समझाने में आ जुटे। उनके अनुसार मुख्य मंत्री के पास हमें शासित करने का अधिकार हो सकता है लेकिन हमारे मूल्यों को निर्धारित करने और हमारे आदर्शों को आकार देने का नहीं। यह उनकी ओर से अहंकार है कि हमें यह बताएं कि किसको देखना है और हमारे अतीत के शासकों को महान मानना है। उनका काम सिर्फ गवर्नमेंट चलाना है, हमारे मूल्यों और हमारे आदर्शों के बारे में दखलंदाजी का नहीं ! ये महाशय आगे कहते हैं कि हालाँकि मैं योगी को नहीं जानता (?) फिर भी मैं एक कदम आगे जाऊँगा। मुझे संदेह है कि उनके सवाल से या तो पूर्वाग्रह या अज्ञानता का पता चलता है, संभवतः दोनों। अगर मैं सही हूं, तो यह न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है और एक मुख्यमंत्री के रूप में असंतुलित है।
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मुझे या मुझ जैसों को कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका विचार क्या है या आपका चहेता कौन है ! आप जैसों की पसंद-नापसंद से भी हमें कोई लेना-देना नहीं है ! ना हीं हम जैसों को आप लोगों के अकबर, हुमायूं या औरंगजेब जैसों को नायक मानने से कोई दिक्कत है ! क्योंकि इस देश में हर इंसान को, बोलने की आजादी के दुष्परिणाम देखते हुए भी, अपनी बात कहने-मानने का पूरा हक़ दिया गया है ! परन्तु यदि पूर्वाग्रहों से ग्रसित और कुंठित हो अपनी ही बात का औचित्य ठहराते रहेंगे, तब दिक्कत आएगी और फिर जवाब तो देना ही पडेगा !
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इसके बाद थापर जी अपनी पसंद बताते हुए अकबर का नाम लेते हैं जो उनके अनुसार देश का और उनका सर्वकालीन महान शासक था और रहेगा ! फिर योगी जी की अकबर के बारे में जानकारी बढ़ाने हेतु अपने जैसी एक लेखिका इरा मुखोटी का उद्धहरण देते हुए अकबर की दसियों खूबियां भी गिनाते हैं। पर कहीं ना कहीं उनको दाढ़ी में तिनके का आभास जरूर होता है जिसकी वजह से उनको सम्राट अशोक का नाम लेना पड़ जाता है पर तुरंत उस नाम को इसलिए नापसंद कर खारिज भी कर देते हैं क्योंकि उसने कलिंग के युद्ध में एक लाख के ऊपर सैनिकों की ह्त्या की थी !
ऐसे लोग एक ऐसे वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं जो सिर्फ सवाल पूछना पसंद करता है ! कोई इनसे पलट कर कुछ पूछ ले तो इन सब की भृकुटियां तन जाती हैं ! इन्होंने योगी जी से अनेकों सवाल पूछे ! पर क्या ये कुछ सवालों का जवाब देंगे ! इन्होंने जिस विस्तार से अकबर की बात की है क्या उतनी गहराई से अशोक को पढ़ा है ? अकबर तो भारत तक में ही सिमित रहा, उस पर भी पूरा राज नहीं कर पाया ! जबकि अशोक ने ईरान की सीमा के साथ-साथ अफगानिस्तान के हिन्दूकश में भी मौर्य सम्राज्य का सिक्का चलवाया। विदेशों तक में बौद्ध धर्म की अहिंसा का ज्ञान फैलाया ! अशोक तो फिर भी कलिंग के युद्ध के बाद शांतिप्रिय हो गया था पर अकबर को युद्धों में लिप्त रहना ही पड़ा था ! अशोक ने अपने पुत्रों को दूसरे देशों में अहिंसा और ज्ञान के प्रसार के लिए भेजा, जबकि अकबर के बेटे-पोते आपस में ही लड़ने मरने में लगे रहे। थापर जी यदि आपकी दृष्टि में अशोक इसलिए महान नहीं है क्योंकि उसके द्वारा लडे गए कलिंग युद्ध में एक लाख सैनिक हताहत हुए थे, तो क्या अकबर ने जो दसियों युद्ध किए उसमें सैनिकों से गलबहियां डाली गई थीं या उनमें कुश्ती से फैसला था ? उसमें मरे सैनिकों की मौत क्या आपके लिए कोई मायने नहीं रखती ? आपकी कसौटी के अनुसार तो फिर उसे भी महान नहीं होना चाहिए क्योंकि उसके द्वारा लडे गए युद्धों में मरने वाले सैनिकों की संख्या कहीं ज्यादा होगी !
मुझे या मुझ जैसों को कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका विचार क्या है या आपका चहेता कौन है ! आप जैसों की पसंद-नापसंद से भी हमें कोई लेना-देना नहीं है ! ना हीं हम जैसों को आप लोगों के अकबर, हुमायूं या औरंगजेब जैसों को नायक मानने से कोई दिक्कत है ! क्योंकि इस देश में हर इंसान को, बोलने की आजादी के दुष्परिणाम देखते हुए भी, अपनी बात कहने-मानने का पूरा हक़ दिया गया है ! परन्तु यदि पूर्वाग्रहों से ग्रसित और कुंठित हो अपनी ही बात का औचित्य ठहराते रहेंगे, तब दिक्कत आएगी और फिर जवाब तो देना ही पडेगा !
18 टिप्पणियां:
सुन्दर सटीक
हार्दिक आभार, सुशील जी
कुछ लोगों को अपनी टांग अड़ाने में बड़ा मजा आता है। ऐसे लोग अपना ज्ञान बघारने में कभी भी पीछे नहीं रहते भले ही उनकी जग हंसाई क्यों न हो
कविता जी
आभार! सपरिवार स्वस्थ रहें
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (23-09-2020) को "निर्दोष से प्रसून भी, डरे हुए हैं आज" (चर्चा अंक-3833) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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शास्त्री जी
सम्मिलित कर मान देने हेतु हार्दिक आभार
ऐसे लोगों का सच दुनिया के सामने आना ही चाहिए ! साधुवाद
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 22 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
कदम जी
हर गलत बात का पुरजोर विरोध होना ही चाहिए
यशोदा जी
मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
सटीक व सार्थक लेखन हेतु बधाई आपको
कुछेक को आईना दिखाना जरूरी होता है
"ऐसे लोग एक ऐसे वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं जो सिर्फ सवाल पूछना पसंद करता है ! कोई इनसे पलट कर कुछ पूछ ले तो इन सब की भृकुटियां तन जाती हैं"
बिलकुल सही कहा आपने,ऐसे लोग सिर्फ कुतर्क देकर अपनी बातों की पुष्टि करना जानते है,अगर पूरा ज्ञान होता तो कुतर्क करते ही नहीं। यथार्थ और सटीक लेखन,सादर नमन आपको
विभा जी
''कुछ अलग सा'' पर आपका सदा स्वागत है
चेतन जी
हौसला अफजाई हेतु अनेकानेक धन्यवाद
कामिनी जी
बहुत-बहुत आभार
आदरणीय गगन शर्मा जी, नमस्ते👏!आपने अपनी लेखनी से ऐसे अधकचरे अज्ञानियों पर बहुत सटीक टिप्पणी की है। आपकी लेखनी को नमन!--ब्रजेन्द्रनाथ
ब्रजेंन्द्रनाथ जी
यूंही स्नेह बना रहे, नमस्कार
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