क्रूज, जो कि एक बड़ा द्वितलीय बजरा ही था, में लंबे मोल-भाव के बाद सवारी साध ली गई। अंधेरा घिरने लगा था, इतने में बोट वाले ने गाने लगा दिए, कुछ देर तो सबने गीत-संगीत व सागर का आनंद लिया पर उसके बाद ''बुजुर्ग युवाओं'' का जोश नृत्य में बदल गया जिसमें उन्होंने अपने ग्रुप के अलावा अन्य सहयात्रियों को भी सम्मिलित कर लिया। घंटा-डेढ़ कब बीत गया पता ही नहीं चला.............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
जनकपुरी के #Retired_&_Senior_Citizens_Brotherhood (RSCB) के सौजन्य से 29 फरवरी से सात मार्च तक की केरल यात्रा का अंतिम चरण आ गया था। आज सुबह मुन्नार से चल कर कोचीन पहुंचना था, जहां से कल सात तारीख को सुबह साढ़े नौ बजे विस्तारा का विमान हमें वापस दिल्ली पहुंचाने वाला था। रोज की तरह सब निपटा कर अपनी बस ''रानी" में सवार हो, प्रभु का ध्यान कर हल्के-फुल्के माहौल में सब कोचीन की ओर रवाना हो गए ! माहौल मस्ती भरा जरूर था पर सभी के मन में कहीं ना कहीं इस खुशगवार, आनंदमयी, रोचक सफर के समापन का मलाल भी था ! पर जो भी चीज शुरू होती है उसका कभी ना कभी अंत भी होता ही है !
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एशिया का सबसे बड़ा मॉल, लु लु |
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कोचीन एयरपोर्ट |
इस बार यह तय पाया गया था कि होटल में ''चेक इन'' करने से पहले कोचीन दर्शन किया जाएगा ! यह शायद हमारे ट्रिप आयोजक #Riya_Travel की चूक थी कि उनको इस बात का ध्यान नहीं रहा कि शुक्रवार होने की वजह से सारे मुख्य चर्च और सिनागॉग बंद थे ! मायूसी होना लाजिमी था, कुछ गर्माहट भी आई इस लापरवाही पर, परंतु जल्दी ही सब नॉर्मल हो गया और कोचीन तट पर पुराने समय से प्रयोग में चले आ रहे मछलियां पकड़ने वाले जालों को देखने अग्रसर हो गए !
चाइनीज फिशिंग नेट - चीन से आई, मछली पकड़ने की यह तकनीक अपने आप में एक अजूबा सा ही है। जो चीन के अलावा सिर्फ कोचीन में ही प्रचलित है। इसे लिफ्ट नेट या कैंटीलिवर नेट के नाम से भी जाना जाता है ! ऐसा मानना है कि 1350 में कुबलाई खान के समय के सौदागरों के साथ यह विधि भारत आई थी। कुछ विद्वानों के अनुसार चीन के खोजकर्ता झेंग-हे ने इसे भारतवासियों से परिचित करवाया था ! चीन से जुड़े होने के कारण ही इसे मलयालम भाषा में चीनीवाला कहते हैं। विशाल झूले की तरह टंगे गोलाकार थैलेनुमा जाल को पानी में कुछ देर डुबो कर फिर ऊपर ले आते हैं, तब तक इसमें सैंकड़ों मछलियां फंस चुकी होती हैं। कोच्चि-फोर्ट के सागर तट पर लगे ऐसे अनेकों जाल आजकल पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन चुके हैं। इसीलिए वहां के मछुआरे अपने जाल की कार्यप्रणाली दिखाने के पैसे वसूलने लग गए हैं।
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कोच्चि डॉक यार्ड |
उस दिन गर्मी बहुत थी सो कुछ देर ठहर कर हम सब होटल आ गए। कुछ अपनी शॉपिंग का अंतिम डोज पूरा करने निकल गए और कुछ हम जैसे जिन्होंने अभी तक बैक वॉटर या झील में ही जलविहार किया था, वे पहुंच गए कोचीन सागर तट ! क्रूज, जो कि बड़ा द्वितलीय बजरानुमा ही था, में लंबा मोल-भाव कर सवारी साध ली गई। अंधेरा घिरने लगा था, इतने में बोट वाले ने गाने लगा दिए, कुछ देर तो सबने गीत-संगीत व सागर का आनंद लिया पर उसके बाद ''बुजुर्ग युवाओं'' का जोश नृत्य में बदल गया जिसमें उन्होंने अपने ग्रुप के अलावा अन्य सहयात्रियों को भी सम्मिलित कर लिया। घंटा-डेढ़ कब बीत गया पता ही नहीं चला। निश्चित जगह सब मिल कर होटल लौट आए ! दूसरे दिन दोपहर एयर पोर्ट पर मिलते रहने का वादा कर,सुखद यादों और भरे मन से सब अपने-अपने घरौंदों को हो लिए।
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क्रूज पर |
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क्रूज से |
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मिसेज वालिया |
इस सफर में एक से एक उम्दा, नेक, खुशदिल, हिम्मती और उम्र के इस पड़ाव पर भी बुलंद हौसले वाले इंसानों से मिलने का सुयोग प्राप्त हुआ ! पर सबसे ज्यादा किसी ने मुझे ही नहीं, सबको प्रभावित किया वह हैं वालिया ! बैंक से अवकाश प्राप्त इस महिला की जीजीविषा अनुकरणीय है ! हालांकि उनका जिस्म उनको पूरी आजादी नहीं देता खुल कर चलने की फिर भी पूरी यात्रा में उनका जोश, उनकी जिज्ञासा, उनका कौतुहल किसी से भी किसी मायने में कम नहीं ! नाहीं उनकी वजह से यात्रा की निर्धारित रूप-रेखा में कोई व्यवधान आया ! इस मिलनसार, हंसमुख, जिंदादिल महिला के लिए हैट्स ऑफ ! वे सदा ऐसी ही स्वस्थ और प्रसन्न रहें ! उनके साथ ही सभी हमसफ़रों को भी शुभकामनाएं ! सभी स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें ! सबसे जल्द मिलना हो इसी कामना के साथ समय आ गया है विदा लेने का, गुड़बाय कहने का........सायोनारा, सी यू अगेन !
6 टिप्पणियां:
अच्छे समय पर यह सुखद यादगार यात्रा पूरी हो गई ¡ सुगबुगाहट तो शुरू हो गई थी पर कोरोना का आतंक फैला नहीं था ¡
रवीन्द्र जी
साझा करने का हार्दिक आभार
वाह बहुत खूब 🌹 लॉक डाउन के समय में यूं लगा कि हम खुद भी यात्रा पर हैं। बहुत बढ़िया रोचक यात्रा वृत्तांत रहा।
बहुत सुन्दर
सुनीता जी
"कुछ अलग सा" पर आपका सदा स्वागत है
ओंकार जी
हार्दिक आभार
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