शनिवार, 28 मार्च 2020

केरल का नंदनकानन, यात्रा मुन्नार की

मुन्नार का अर्थ होता है, तीन नदियों का संगम, केरल के इडुक्‍की जिले में स्थित है। हिमाचल के शिमला की तरह यह भी अंग्रेजों का ग्रीष्म कालीन रेजॉर्ट हुआ करता था। इसकी हरी-भरी वादियां, विस्तृत भू-भाग में फैले चाय के ढलवां बागान, सुहावना मौसम इसे स्वर्ग जैसा रूप प्रदान करते हैं। हमारी इस यात्रा की यह खासियत थी कि इसमें सम्मिलित लोगों को समुंद्र, मैदान और पहाड़, प्रकृति के इन तीन रूपों को देखने का अवसर समय के कुछ ही अंतराल में प्राप्त हो गया था .....!  

#हिन्दी_ब्लागिंग 

देखते-देखते 29 फरवरी को सुबह सात बजे की विस्तारा की फ्लाइट से शुरू हुई आठ दिवसीय केरल की यात्रा का पांचवां दिन कब आ पहुंचा पता ही नहीं चला ! आज हमें पेरियार से 90 की.मी. दूर, सागर तल से करीब 5900 फिट की ऊंचाई पर बसे, दक्षिण के एकमात्र पहाड़ी इलाके के शहर मुन्नार पहुंचना था। सो सुबह सारे जरुरी कार्यों को निपटा, आठ बजते-बजते बस में बैठ, सदा की तरह परंपरानुसार प्रभु का स्मरण कर यात्रा के अगले चरण की ओर बढ़ लिया गया। इस यात्रा की खासियत यह थी कि इसमें सम्मिलित लोगों को समुंद्र, मैदान और पहाड़, प्रकृति के इस तीन रूपों को देखने का सुअवसर समय के कुछ ही अनिराल में प्राप्त हो गया था !              




टाटा चाय संग्रहालय के सामने 
मुन्नार केरल के इडुक्की जिले में स्थित है। हिमाचल के शिमला की तरह यह भी अंग्रेजों का ग्रीष्म कालीन रेजॉर्ट हुआ करता था। इसकी हरी-भरी वादियां, विस्तृत भू-भाग में फैले चाय के मनमोहक ढलवां बागान, सुहावना मौसम इसे स्वर्ग सा रूप प्रदान करते हैं। मुन्नार एक मलयालम शब्द है'; जिसका अर्थ होता है, तीन नदियों का संगम ! जो यहां की तीन नदियों मधुरपुजहा, नल्लाथन्नी और कुंडली के संगम के कारण पड़ा है।   


संग्रहालय 


चाय प्रसंस्करण, पुराने तरीके से  


पुराने उपकरण 




सूर्यास्त 
हालांकि हमें सौ की.मी. से कम दूरी ही तय करनी थी, पर पहाड़ी रास्ते की वजह से काफी समय लग गया। रास्ते में ही टाटा ग्रुप के नलथन्नी टी इस्टेट संग्रहालय को देखने के लिए रुके। इसकी स्थापना चाय उत्पादन के लिए टाटा ग्रुप द्वारा 1880 में की गई थी। आज भी यहां इतिहास को ज़िंदा रखने के लिए पुराने तरीके से ही चाय का प्रसंस्करण किया जाता है। एक छोटे से संग्रहालय में संजो कर रखी गई पुराने समय से जुड़ी निशानियों, उपकरणों तथा तस्वीरों और आधे घंटे के एक सिनेमा शो द्वारा शुरुआत में सामने आई कठिनाइयों, मुश्किल परिस्थियों, दिक्कतों को बताया जाता है। इसके साथ ही उस समय की टी प्रोसेसिंग ईकाई में चाय बनने की पूरी प्रक्रिया को दिखाया और समझाया जाता है। यहीं पर उनके द्वारा चालित टी शॉप में अपनी नॉर्मल टी दस रूपए में, ग्रीन टी बीस और व्हाइट टी पचास रूपए में उपलब्ध थी, हमने 'अपनी' चाय ली और फिर होटल की ओर बढ़ लिए। कुछ देर पहले ही रिम-झिम हो चुकी थी। मौसम खुशहाल था ! होटल का परिवेश भी मनोनुकूल होने और कुछ-कुछ थकान के एहसास के कारण ज्यादातर लोग वहीं सिमट गए। जिनके मनोरंजन के लिए होटल में ही तंबोला का प्रावधान था। पांच-सात लोगों ने बाहर टहलने को तवज्जो दी। 
कुण्डला झील 






झील परिसर 




होटल में 
दूसरे दिन सुबह सदल-बल मुन्नार से 20 की.मी. की दूरी पर स्थित कुण्डला झील पहुंचे। यह झील पर्वत शृंखलाओं के बीच बने बांध के कारण निर्मित, एक कृत्रिम जलाशय है। बस की पार्किंग से परिसर में प्रवेश करने पर करीब पचास फिट की उतराई के बाद जलाशय तक पहुंचना हो पाता है। परिसर बेहद साफ़-सुथरा और अति सुंदर फूलों से आच्छादित होने के कारण मन मोह लेता है। वहीं महिलाओं और बच्चों के वस्त्रों और अन्य सजावटी सामानों को उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाने वाला एक आउटलेट भी है, जहां खरीदारी करना स्वाभाविक हो जाता है। नीचे जलाशय में स्पीड बोट और बड़ी बजरेनुमा नौका द्वारा जलविहार की सुविधा का प्रावधान भी है, जो कि यहां का मुख्य आकर्षण है। अब जब आए ही थे तो उसका अनुभव उठाना तो बनता ही था। सो घूम-फिर, जेब हल्की करवाने के बाद ही ईको प्वाइंट देखने का मुहूर्त बन पाया !  







ईको प्वाइंट 


मुन्नार से पंद्रह की.मी. के फैसले पर नदी के किनारे ढलान पर खड़े हो कर जोर से आवाज लगाने पर सामने घने जंगल से परावर्तित हो लौटती ध्वनि को सुनना, एक अलहदा ही अनुभव प्रदान करता है। हमारे पहुंचने पर हवा की दिशा जंगल से हमारी ओर होने के कारण प्रतिध्वनि उत्पन्न नहीं हो रही थी पर कुछ देर बाद सुनना संभव हो गया था। यहीं प्रोफेशनल लोगों से फोटो भी खिंचवा, नारियल पानी से गला तर करने बाद वापसी हुई। होटल के पहले पड़ते बाजार से स्थानीय मसालों को खरीदने का लोभ संवरण कर पाना, वह भी दुनिया के मसालों के सबसे बड़े केंद्र केरल में, मुश्किल था ! सो कुछ अनिक्षुक लोगों को बस से होटल, जो बाजार के नजदीक ही था, भेज ज्यादातर लोग अपने शॉपिंग के शौक को पूरा करने में जुट गए। रात हंसी-ख़ुशी, मस्ती-मजाक में गुजरी। दूसरे दिन यात्रा का अंतिम पड़ाव था, कोचीन। जहां से एक दिन बाद वापस दिल्ली के लिए लौटने की हवाई यात्रा मुकर्रर थी।

9 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 28 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

यशोदा जी,
सम्मिलित करने का हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कुलदीप जी
पंचामृत में शामिल करने का हार्दिक आभार

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर चित्रों से आच्छादित अच्छा यात्रा संस्मरण।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

बहुत-बहुत आभार, शास्त्री जी

Sudha Devrani ने कहा…

सुन्दर तस्वीरों के साथ मुन्नार का बड़ा सुन्दर यात्रा वृतांत

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुधा जी
अनेकानेक धन्यवाद

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

वाह!! मुन्नार का सुंदर सफर रहा। तस्वीर देखकर ही लगता है कि प्रकृति ने अपनी धरोहर को खुले हाथों से मुन्नार पर लुटाया है। अगली कड़ी का इन्तजार रहेगा।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

विकास जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है आपका

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