मंगलवार, 24 मार्च 2020

केरल का पेरियार, जहां कायनात अपने अछूते रूप के साथ विराजमान है

इलायची, लौंग, दालचीनी, जावित्री, जायफल इत्यादि को पहली बार अपने उद्गम स्थलों पर विभिन्न रूपों में देख आश्चर्य से सबकी आँखें और मुंह कुछ देर के लिए तो मानो खुले के खुले रह गए। उत्पादन केंद्र की दूकान पर मंहगी होने के बावजूद मसालों की खूब खरीदारी हुई...!

#हिन्दी_ब्लागिंग 
दिल्ली के ''RSCB'' के तत्वाधान में 29 फरवरी से सात मार्च तक की केरल यात्रा के दौरान चौथे दिन, अलेप्पी से करीब 140 की.मी. की दुरी पर स्थित थेकाड्डी, जिसे पेरियार के नाम से भी जाना जाता है, जाना तय था। वैसे थेकाड्डी कस्बे का नाम है और पेरियार वह जगह है जहां वन्य जीव अभयारण्य स्थित है। तमिलनाडु की सीमा से लगती, दक्षिणी-पश्चिमी घाट की कार्डामम और पेंडलाम नामक पहाड़ियों, घने वनों और सुंदर झीलों से घिरी यह जगह अपने खूबसूरत वन-विहार के लिए जगत्प्रसिद्ध है। प्रसिद्ध राजनेता इरोड वेंकट नायकर रामासामी, जिन्हें सम्मान के साथ पेरियार यानी सम्मानित व्यक्ति कहा जाता था, के नाम पर इस जगह का नामकरण किया गया है।   
पेरियार झील 
चार मार्च की सुबह नाश्ता-पानी निपटा अपनी बस ''रानी'' में हमनें अपनी सीटें संभाल लीं। प्रत्येक सदस्य पिछले तीन दिनों के ''हेक्टिक शड्यूल'' के बावजूद खुद को बिल्कुल तारो-ताजा महसूस कर रहा था। हो सकता है इसका कारण यहां की साफ़ आबो-हवा और चिंता-तनाव मुक्त वातावरण का भी असर हो ! यात्रा की परंपरा के अनुसार हमारे कप्तान श्री नरूला जी ने तीन बार गायत्री पाठ किया ! फिर माइक प्रेमी खेमानी जी ने जगह संभाली और फिर वही भजनों, गानों, चुटकुलों का वह लंबा दौर शुरू हो गया, जिसमें अन्नू जी, खन्ना जी, श्रीमती और श्री मेहरा जी, श्रीमती और श्री बेदी जी के साथ-साथ कदम जी और मैंने भी पूरे जोशोखरोश के साथ भाग लिया ! पर सबसे ज्यादा समां बांधा नीरू जी ने जिनका गायन, वाद्य संगीत के साथ एक अलग ही अंदाज के साथ सामने आता रहा। कहते हैं ना कि खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदलता है, तो तीन दिन से अलग चुप से रहे सिद्दार्थ और जीनु को भी जोश आ गया और वे भी इस महफ़िल का हिस्सा बनने से अपने को नहीं रोक पाए।


सबसे युवा और कर्मठ सदस्य, नरूला जी 




पेरियार के रास्ते में ही वनौषधि उत्पादन केंद्र पर रुक कर पहली बार उन मसालों, जिनका उपयोग रोज ही हमारी रसोई में होता है, के पौधों, लताओं और वृक्षों को देखने का सुयोग मिला। इलायची, लौंग, दालचीनी, जावित्री, जायफल इत्यादि को पहली बार अपने उद्गम स्थलों पर विभिन्न रूपों में देख आश्चर्य से सबकी आँखें और मुंह कुछ देर के लिए तो मानो खुले के खुले रह गए। उत्पादन केंद्र की दूकान पर मंहगी होने के बावजूद खूब खरीदारी हुई। करीब घंटे-डेढ़ के बाद ही आगे चलना संभव हो पाया।   
इलायची 



लौंग 
काली मिर्च 

चीकू 

वनीला, दुनिया की दूसरी सबसे मंहगी उपज 


दालचीनी 

अच्छे-खासे नियमानुसार चलते प्रोग्राम में एक छोटा सा व्यवधान तब महसूस हुआ जब पेरियार पहुंच कर यह पता चला कि जीप सफारी बंद है और वन-विहार नहीं हो सकेगा ! अब कर भी क्या सकते थे, सो जो उपलब्ध था उसी सरकारी बस में पेरियार झील तक गए। 


पोज़ ऐसे भी दिए जाते हैं 

सब कुछ बंद होने के बावजूद वहां प्रकृति अपने मनोहारी अनुपम रूप साक्षात उपस्थित थी। यादगार के लिए फोटो वगैरह ली गयीं और सर्वसम्मति से वापस होटल आने का प्रस्ताव पास हो गया। पिछली थकान उतारने का एक मौका या कहिए बहाना मिल गया था।
थेकाड्डी में भी एक रात का ही स्टे था। दूसरे दिन मनोहारी मुन्नार हमारा इंतजार कर रहा था ! जिसकी हरी-भरी चाय की वादियों में दो दिन का समय गुजरना था, जो कम तो था पर कार्यक्रम के समय की पाबंदी भी तो थी !  

8 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (25-03-2020) को    "नव संवत्सर-2077 की बधाई हो"   (चर्चा अंक -3651)     पर भी होगी। 
 -- 
मित्रों!
आजकल ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत दस वर्षों से अपने चर्चा धर्म को निभा रहा है।
आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

अजय कुमार झा ने कहा…

हमेशा की तरह बहुत शानदार और यादगार पोस्ट मन फॉण्ट बड़ा छोटा होने के कारण कभीकभी पढ़ने के लिए बड़ा करना पड़ता है , लिखते रहिये

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 24 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी
सुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें, सपरिवार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अजय जी
अपना ख्याल रखिए, स्वस्थ रहिए, सपरिवार ¡ पोस्ट का पता नहीं ज्यादा फोटो होने से कुछ न कुछ बेकाबू हो जाता है। लिखने के फाॅंन्ट भी कुछ बडे कर रखे हैं शायद उससे भी फर्क पडता हो ¡

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

दिग्विजय जी
हार्दिक आभार ¡
सभी सुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें, यही कामना है

Onkar ने कहा…

बहुत सुंदर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ओंकार जी
धन्यवाद ¡
सपरिवार स्वस्थ रहें

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