यहां के तीन दर्शनीय स्थानों में पहले मंडपम में देवी कन्याकुमारी के पैरों की छाप पत्थर पर उकेरी हुई है ! दूसरा मुख्य भवन जिसके अंदर चार फुट ऊंचे प्लेटफॉर्म पर स्वामी विवेकानंद की बेहद खूबसूरत कांसे की बनी मूर्ति स्थित है, जिसकी ऊंचाई साढ़े आठ फुट है. इसमें स्वामी जी का व्यक्तित्व एकदम सजीव नजर आता है तथा तीसरा ध्यान कक्ष जिसकी दिवार पर ''ॐ'' की आकृति बनी हुई है और शांत नीम अँधेरे में लगातार ''ओउम'' की ध्वनि उच्चारित होती रहती है..........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
कन्याकुमारी, भारत के सुदूर दक्षिणी छोर पर स्थित तमिलनाडु प्रांत का एक शहर, जो हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के अनोखे त्रिवेणी संगम स्थल पर स्थित है, तथा जिसके सैंकड़ों मील के संतरण के बाद जाकर ही दक्षिणी ध्रुव का स्थल मिल पाता है। भारत के पर्यटक स्थल के रूप में भी इस स्थान का अपना ही महत्च है। दूर-दूर फैले समुद्र की विशाल लहरों के बीच यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा एक अलौकिक दृश्य प्रदान करता है।
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देश का अंतिम छोर |
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झरोखे से |
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स्टीमर का इंतजार, जेटी पर बने कक्ष में |
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स्टीमर में चढने के पहले, समूहचित्र
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स्वंय ! पीछे दूर कन्याकुमारी तट |
त्रिवेंद्रम से कन्याकुमारी की करीब सौ की.मी. की दूरी पार करने में करीब साढ़े तीन-चार घंटे लग ही जाते हैं। इसलिए अपनी यात्रा के दूसरे दिन सुबह नाश्ता वगैरह निपटा आठ बजे ग्रुप के सभी 31(29+2) सदस्यों ने बस में अपनी-अपनी सीट संभाल ली। दस्तूरानुसार हमारे ''सबसे युवा कप्तान 78 वर्षीय नरूला जी'' ने गायत्री मंत्र का पाठ कर यात्रा का शुभारंभ किया। समय अफरात था पर गाने, अंतराक्षरी तथा चुटकुलों में कब बीत गया पता ही नहीं चला ! यह भी एक अविस्मरणीय समय था।
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साज-संभार |
कन्याकुमारी से करीब 500 मीटर की दूरी पर स्थित विवेकानंद स्मारक से कुछ ही दूरी पर एक दूसरी चट्टान पर तमिल भाषा के विख्यात संत कवि और दार्शनिक तिरुवल्लुवर की 133 फुट ऊँची प्रतिमा भी बनी हुई है, जो उनकी विख्यात कृति तिरुक्कुरल के 133 अध्यायों को ध्यान में रख बनाई गयी है। उस दिन कन्याकुमारी से विवेकानंद स्मारक तक 50/- में जाने-आने के किराए साथ दो स्टीमर ही कार्यरत थे, ऊपर से रविवार का दिन, तो भीड़ कुछ ज्यादा ही थी। फिर भी पौने घंटे में नंबर आ ही गया। लाइफ जैकेट पहने सागर की उत्ताल लहरों पर डोलते सभी की निगाहें शनैः - शनैः पास आती शिला पर टिकी हुई थीं।
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अंतरजाल के सौजन्य से |
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ध्यानकक्ष |
स्मारक दर्शन की फीस 20/- अदा कर वहां देखने के तीन स्थान हैं, पहला मंडपम जिसमें देवी कन्याकुमारी के पैरों की छाप पत्थर पर उकेरी हुई है ! दूसरा मुख्य भवन जिसके अंदर चार फुट ऊंचे प्लेटफॉर्म पर स्वामी विवेकानंद की बेहद खूबसूरत कांसे की बनी मूर्ति स्थित है, जिसकी ऊंचाई साढ़े आठ फुट है. इसमें स्वामी जी का व्यक्तित्व एकदम सजीव नजर आता है तथा तीसरा ध्यान कक्ष जिसकी दिवार पर हरे रंग के प्रकाशमान ''ॐ'' की आकृति बनी हुई है और जहां शांत, नीम अंधेरे में लगातार ''ओउम'' की ध्वनि उच्चारित होती रहती है। यहां बैठने पर असीम शांति की एक दिव्य अनुभूति का एहसास होता है, जिसका शब्दों में वर्णन करना असंभव है। इसके अलावा स्वामी जी से संबंधित साहित्य, शिला के बारे में परिचय देने के लिए एक कक्ष, वर्षा जल को संग्रहित करने के लिए बने कुंड तथा प्रसाधन गृह तो हैं ही पर पूरी शिला से प्रकृति का जो अवर्चनीय, अलौकिक सौंदर्य दिख पड़ता है वह तो वर्णनातीत है।
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वर्षा जल का संग्रहण |
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वार्तालाप |
यहां से वापस जाने की तनिक भी इच्छा ना होने पर भी जाना तो था ही ! लौटते समय ''हाई टाइड'' का समय हो गया था, इस वजह से समुंद्र की बेचैनी भी बढ़ गयी थी। स्टीमर को लौटने में भारी मशक्कत का सामना करना पड़ रहा था। लहरें उछाल मारती हुईं स्टीमर के अंदर तक आ रहीं थीं। ऐसी ही एक लहार ने किनारे बैठीं श्रीमती जी को आपादमस्तक भिगो डाला। किनारे पहुंच कर वहां से कुछ ही दूर उस स्थानपर गए जो हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का अनोखा और प्राकृतिक मिलन स्थल है !
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विश्राम |
इस पवित्र व अनूठे स्थान को ''त्रिवेणी संगम'' के नाम से जाना जाता है। पर इसकी हालत और बिखरी गंदगी को देख मन कुछ उचाट सा हो गया। पता नहीं कब हम अपनी धार्मिक, ऐतिहासिक, प्राकृतिक धरोहरों, विरासतों, स्थानों की अहमियत व खासियत समझेंगें। कब व्यवसायिक दोहन के दुष्परिणामों को समझ पाएंगे ! कब !!
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त्रिवेणी संगम |
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रात की चादर ओढ़े कोवलम बीच |
समय की कमी को देखते हुए वापस त्रिवेंद्रम जाना ही तय पाया गया, जहां रुकते-चलते पहुंचते-पहुंचते साढ़े सात बज ही गए थे। फिर भी एक बार अंधेरे में ही सही ''कोवलम बीच'' के भी दर्शन कर करीब साढ़े आठ के लगभग वापस होटल पहुंच लिए।
@तीसरे दिन - अलैप्पी का पिछला पानी, बैक वॉटर
14 टिप्पणियां:
बेहद खूबसूरत संस्मरण सर | कोई भी यात्रा यदि दोस्तों के साथ समूह में की जाए तो उसका आनंद दूना हो जाता है | बहुत प्यारे चित्रों से सजी हुई बेहतरीन यात्रा वृत्तांत पोस्ट सर | यूं ही घुमाते रहिये हमें अपने साथ
अजय जी,
बहुत-बहुत धन्यवाद !
यह जो जाना हुआ था वह बिलकुल अनजान लोगों के साथ था, पर पहले दिन से ही ऐसा लगने लगा जैसे वर्षों से एक दूसरे को जानते हों। पर जो भी था बहुत अच्छा अनुभव रहा
कन्याकुमारी का सुन्दर-सुखद संस्मरण
शास्त्री जी,
जीवन के कुछ अनमोल पलों में यह समय भी शुमार रहेगा
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में रविवार 15 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (16-03-2020) को 'दंभ के आगे कुछ नहीं दंभ के पीछे कुछ नहीं' (चर्चा अंक 3642) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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रवीन्द्र सिंह यादव
यशोदा जी
बहुत-बहुत आभार
रवीन्द्र जी
हार्दिक आभार
बहुत बढिया संस्मरण।
ज्योति जी
ब्लॉगों के इस संक्रमण काल में इस तरह की हौसला अफजाई ही लेखन को प्रेरित करती है
अनेकानेक धन्यवाद
बहुत ही सुंदर संस्मरण ,आपने तो घर बैठे कन्याकुमारी के दर्शन करा दिए ,सादर नमन आपको
बढ़िया संस्मरण
कामिनी जी
बहुत ही सुंदर भौगोलिक स्थिति है पर रख - रखाव की कमी महसूस होती है
ओंकार जी
अनेकानेक धन्यवाद
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