गुरुवार, 10 अक्टूबर 2019

तो फिर..... ऐसे में रावण का मरना भी असंभव है

आज, भले ही सांकेतिक रूप से ही सही, रावण को मारने, उसका दहन करने का जिम्मा किसको दिया जाता है ? आज पार्कों में, चौराहों पर, कालोनियों में या मैदानों में जो रावण के पुतले फूंके जाते हैं उनको फूंकने में अगुवाई करने वाले अधिकांश तो खुद बुराइयों के पुतले होते हैं ! उनकी तो खुद की अपनी लंकाऐं होती हैं, काम-क्रोध-मद-लोभ जैसी बुराइयों से भरपूर ! तो बुराई ही बुराई पर क्योंकर विजय पाएगी ? आज बुराई पर अच्छाई की विजय निश्चित करने के लिए किसीको उसके गुणों का आकलन कर के नहीं बल्कि उसकी हैसियत देख कर चुना जाता है। आज रावण दहन के लिए उसे ''धनुष'' थमाया जाता है जो अपने क्षेत्र में येन-केन-प्रकारेण अगुआ हो................!

#हिन्दी_ब्लागिंग              
अभी-अभी दशहरा हो कर गया है। शायद ही कोई माध्यम ऐसा होगा जिसमें किसी कवि, लेखक, संत, दार्शनिक, पंडित, कथावाचक, कलाकार या स्वयंभू बुद्धिजीवी ने साल दर साल रावण के पुतले के दहन के बावजूद उसके ना मरने, हर साल आ धमकने की बात कह-कह कर अपनी सलाह दूसरों यानी आम अवाम पर जबरन ना थोपी हो ! वैसे ऐसा कहने वालों में अधिकांश वही हैं जिन्हें हिंदुओं के हर त्यौहार में कोई न कोई खामी नज़र आती है। त्यौहार आते ही इनकी विद्वता भी कुलांचें मारने लगती है दूसरों पर हावी होने के लिए !  

पर ऐसा कहने वाले और दूसरों को सलाह देने वाले कभी यह सोचते हैं कि आज, भले ही सांकेतिक रूप से ही सही रावण को मारने, उसका दहन करने का जिम्मा कौन लेता है या किसको दिया जाता है ? आज पार्कों में, चौराहों पर, कालोनियों में या मैदानों में जो रावण के पुतले फूंके जाते हैं उनको फूंकने में अगुवाई करने वाले अधिकांश तो खुद बुराइयों के पुतले होते हैं ! उनकी तो खुद की अपनी लंकाऐं होती हैं, काम-क्रोध-मद-लोभ जैसी बुराइयों से भरपूर, तो बुराई ही बुराई पर क्योंकर विजय पाएगी ? आज बुराई पर अच्छाई की विजय निश्चित करने के लिए किसीको उसके गुणों का आकलन कर के नहीं बल्कि उसकी हैसियत देख कर चुना जाता है। आज रावण दहन के लिए उसे ''धनुष'' थमाया जाता है जो अपने क्षेत्र में येन-केन-प्रकारेण अगुआ हो ! फिर चाहे वह राजनीतिज्ञ हो, चाहे कलाकार हो, चाहे व्यापारी हो या फिर अपने इलाके का प्रमुख ही हो, जैसे किसी कॉलोनी या हाऊसिंग सोसायटी का प्रेजिडेंट ! अगुआ होना ही उसकी लियाकत है भले ही कर्मों से वह दुर्योधन ही क्यों न हो ! 

रावण अपने आप में ज्ञानी-ध्यानी, सबसे बड़ा शिव भगत, पुरातत्ववेता, ज्योतिष का जानकार, विद्वान तथा युद्ध विशारद, महाबली योद्धा था। उससे बड़ा महा पंडित उस युग में कोई दूसरा नहीं था। ऐसा नहीं होता तो क्या श्री राम उसे अपने यज्ञ का पुरोहित बनाते ! उस पर राम जो सारे जगत के पालनहार हैं, नियोजक हैं, सर्व शक्तिमान हैं, सारे चराचर के स्वामी हैं, उन्हें भी उस रावण पर विजय पाने में ढाई महीने लग गए थे ! तब जा कर कहीं उसका वध हुआ था। रावण को मारने के लिए राम का होना जरुरी है और राम ऐसे ही कोई नहीं बन जाता ! उसके लिए उसमें प्रबल शक्ति का होना तो अवश्यंभावी है ही, साथ ही उसे कर्त्वयनिष्ठ, सत्यनिष्ठ, दृढ़निश्चयी, करुणामय, ज्ञानी, वचन पालक, संयमी, ईर्ष्या मुक्त, विवेकी, निरपेक्ष, शरणागत वत्सल, दयालु, समदर्शी, काम-क्रोध-मोह विहीन होना भी बहुत जरुरी है ! क्या आज एक ही इंसान में इतने गुणों  होना संभव है ? 
नहीं ! 
तो रावण का मरना भी असंभव है !  

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