यह तो सर्व ज्ञात है कि अपने अंतिम समय में स्वर्ग यात्रा के दौरान पर्वतारोहण के समय, युधिष्ठिर को छोड़ एक-एक कर सभी पांडव भाइयों की मृत्यु होती चली गयी थी। लेकिन महाभारत की उपकथाओं में इस महाकाव्य के प्रमुख पात्र अर्जुन की इसके पहले भी एक बार हुई मृत्यु का एक बहुत अल्पज्ञात जिक्र मिलता है ! आज करवा चौथ के अवसर पर एक पत्नी का अपने पति को बचाने के उपक्रम का विवरण........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
हमारी पौराणिक कथाओं में ''अष्टवसु'' का जिक्र आता है। इन आठों देवभाइयों को इन्द्र और विष्णु का रक्षक देव माना जाता है। एक बार इनमें सबसे छोटे वसु द्वारा वशिष्ठ ऋषि की गाय नंदिनी को लालचवश चुरा लेने के फलस्वरूप आठों वसुओं को मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप मिला पर इनके द्वारा क्षमा मांगने पर वशिष्ट ने सात वसुओं के शाप की अवधि एक वर्ष कर दी पर सबसे छोटे वसु को जिसने यह कृत्य किया था, उसे महान विद्वान, वीर, ख्यात और दृढ़प्रतिज्ञ होने के साथ-साथ दीर्घकाल तक मनुष्य योनि में रहने, संतान उत्पन्न न करने तथा स्त्री परित्यागी होने का दंड भी मिला। इसी शाप के अनुसार महाभारत काल में उसका जन्म भीष्म के रूप में हुआ था।
हमारी पौराणिक कथाओं में ''अष्टवसु'' का जिक्र आता है। इन आठों देवभाइयों को इन्द्र और विष्णु का रक्षक देव माना जाता है। एक बार इनमें सबसे छोटे वसु द्वारा वशिष्ठ ऋषि की गाय नंदिनी को लालचवश चुरा लेने के फलस्वरूप आठों वसुओं को मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप मिला पर इनके द्वारा क्षमा मांगने पर वशिष्ट ने सात वसुओं के शाप की अवधि एक वर्ष कर दी पर सबसे छोटे वसु को जिसने यह कृत्य किया था, उसे महान विद्वान, वीर, ख्यात और दृढ़प्रतिज्ञ होने के साथ-साथ दीर्घकाल तक मनुष्य योनि में रहने, संतान उत्पन्न न करने तथा स्त्री परित्यागी होने का दंड भी मिला। इसी शाप के अनुसार महाभारत काल में उसका जन्म भीष्म के रूप में हुआ था।
भीष्म पितामह |
महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था। युधिष्ठिर राज-पाठ संभाल रहे थे। तभी एक दिन महर्षि वेदव्यास और श्रीकृष्ण ने पांडव भाइयों को अश्वमेध यज्ञ करने की सलाह दी, जिससे शासन व्यवस्था और मजबूत हो सके। इसी के तहत, शुभ मुहूर्त देखकर यज्ञ का शुभारंभ कर घोड़ा छोड़ दिया गया, जिसकी रक्षा का भार अर्जुन को सौंपा गया था। जहां कहीं घोड़े को रोका गया वहां के राजाओं को अर्जुन ने परास्त कर अपने राज्य का विस्तार किया। इसी दौरान यह कारवां मणिपुर जा पहुंचा। एक बार पहले नियम भंग करने के प्रायश्चित स्वरुप, घूमते हुए अर्जुन के यहां आने पर यहां की राजकुमारी चित्रांगदा से उनका विवाह संपन्न हुआ था, जिसके फलस्वरूप उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी जो की अब वहां का राजा था, बभ्रुवाहन !
बभ्रुवाहन |
उलूपी व संजीवनी मणि |
@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से
7 टिप्पणियां:
रोचक जानकारी.
शास्त्री जी, चयन के लिए हार्दिक आभार
राजीव जी, "कुछ अलग सा" पर आपका सदा स्वागत है
आपके ब्लॉग पर आकर सदा ही कुछ नया पढ़ने को मिलता है । यह लेख भी बहुत बढ़िया लगा ।
मीना जी, हार्दिक धन्यवाद । कुछ अलग सा पर आपका सदा स्वागत है
जय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
20/10/2019 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
कुलदीप जी, चयन के लिए हार्दिक आभार
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