सोमवार, 21 अक्टूबर 2019

परवा जरूर हो, पर अतिरेक नहीं

पौधों को नई जगह की आबो-हवा, धूप-झांव, मिटटी-पानी के साथ ताल-मेल बैठाने, परिस्थियों के अनुसार खुद को ढालने, आस-पास के माहौल में खुद को रमाने में कुछ तो समय लगना ही था ! हाथी इस बात को बखूबी समझते थे ! वे पौधों इत्यादि का समुचित ध्यान रख, समयानुसार उनका पोषण करते थे। पर इधर वानरों को अपने लता-गुल्म की कुछ अनावश्यक ही चिंता थी ! वे हर दूसरे-तीसरे दिन अपने लगाए पौधों को उखाड़ कर देखते थे कि उनकी जड़ें विकसित हुए कि नहीं ..............!

#हिन्दी_ब्लागिंग   
आनंदवन को जीवों के लिए सुगम, सुंदर और व्यवस्थित करने के लिए सिंहराज के नेतृत्व में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित हुआ, जिसके तहत वन के सघन, दुर्गमनीय इलाके के पेड़-पौधों को हटा कर दूसरी विरल जगह रोपित कर दिया जाए जिससे दोनों जगहों का समुचित विकास हो सके। समाज हितकारी इस परियोजना की जिम्मेदारी बुद्धिमान हाथी और चपल बंदरों को सौंपी गयी, जिससे कार्य सुचारु और तीव्र गति से हो सके। कुछ ही दिनों में बीहड़ के पेड़-पौधों का पूरी साज-संभार के साथ नई जगहों पर ला प्रेम और सावधानी के साथ रोपण कर दिया गया ! 

अब पौधों को नई जगह की आबो-हवा, धूप-छांव, मिटटी-पानी के साथ ताल-मेल बैठाने, परिस्थियों के अनुसार खुद को ढालने, आस-पास के माहौल में खुद को रमाने में कुछ तो समय लगना ही था ! हाथी इस बात को बखूबी समझते थे ! वे पौधों इत्यादि का समुचित ध्यान रखते थे, समयानुसार उनका पोषण करते थे। पर इधर वानरों को अपने लता-गुल्म की कुछ अनावश्यक ही चिंता थी ! वे हर दूसरे-तीसरे दिन अपने लगाए पौधों को उखाड़ कर देखते थे कि उनकी जड़ें विकसित हुए कि नहीं ! कभी अनावश्यक रूप से उनकी झाड़-पौंछ कर देते ! कभी पानी देने में अतिरेक ! उनकी खैर-खबर लेने की इन गलतियों से ना तो पौधे अपनी जड़ जमा पाए, नाहीं उनका अपने नए वातावरण से ताल-मेल बैठ पाया और ना ही वे पनप पाए ! नतीजतन जहां हाथियों द्वारा रक्षित पेड़-पौधे कुछ ही दिनों में विकसित हो पनप गए और लहलहाने लगे ! वहीं वानरों की अदूरदर्शिता ने, भले ही यह उनका अपने पौधों के प्रति अतरिक्त केयर, लगाव या चिंता थी, उनके पौधों को अविकसित, निर्जीव सा कर उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा ! 

ऐसी ही कुछ प्रवृत्ति हम में से कुछ मानवों में भी पाई जाती है जिनकी भावनाओं का, लगाव का, अनावश्यक चिंता का, नकारात्मक सोच का, अविश्वास का अतिरेक उन्हें तो परेशानी में डालता ही है, संबंधित माहौल को भी आविष्ट व तनावग्रस्त बना डालता है !

6 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-10-2019) को     " सभ्यता के  प्रतीक मिट्टी के दीप"   (चर्चा अंक- 3496)   पर भी होगी। 
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

कविता रावत ने कहा…

वानर प्रवृत्ति कमोवेश कतिपय इंसानों में भी पाई जाती है
बहुत अच्छी प्रेरक प्रस्तुति

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी, शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कविता जी, आशय वही था ¡
आज परिवारों में कटुता का प्रमुख कारण अनावश्यक हस्तक्षेप होना ही है

Meena sharma ने कहा…

भावनाओं का, लगाव का, अनावश्यक चिंता का, नकारात्मक सोच का, अविश्वास का अतिरेक उन्हें तो परेशानी में डालता ही है, संबंधित माहौल को भी आविष्ट व तनावग्रस्त बना डालता है !
बहुत ही सारगर्भित बात कही है।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

बहुत-बहुत धन्यवाद, मीना जी

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