अंधकार ! जिसकी बात होते आते या दिखते ही एक नकारात्मक भावना दिलों में छा जाती है ! पर सच्चाई तो यही है कि अँधेरा चाहे कितना भी घना हो, उसके पीछे, उसी परिवेश में, उसी के संरक्षण में सृजन, सृष्टि व विकास का क्रम लगातार, अनवरत रूप से सतत चलता ही रहता है ! तभी तो जीवन का प्रादुर्भाव हुआ ! प्रकाश की उत्पत्ति हुई ! प्रकाश हुआ तभी ज्ञान का भी विकास हो पाया ! ज्ञान बढ़ा तभी समाज, देश, दुनिया की तरक्की हो पायी। इतना सब होने और देने के बावजूद, अकारण ही हम अँधेरे को अमंगल मान बैठे हैं। ये तो हमारा ही संकुचित दृष्टिकोण और अज्ञान हुआ ! कायनात की इस विशाल, रहस्यमयी, चिलमन के पीछे, क्या छिपा है, प्रकृति क्या बुन रही है, प्रभु की कौन सी लीला अवतरित होने वाली है: कौन जानता है........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
उजाला और अँधेरा, जैसे एक ही सिक्के के दो पहलु ! पर उजास को जहां ज्ञान, जीवन, उत्साह, शुचिता और जीवंतता का प्रतीक माना जाता है, वहीं अंधकार को निराशा, हताशा, अज्ञान या अमंगल का पर्याय मान लिया गया है। पर एक सच्चाई यह भी है कि आज भी ब्रह्मांड में इसका अस्तित्व उजाले से कहीं ज्यादा है, चाहे उसका विस्तार अनंत अंतरिक्ष में हो, चाहे सागर की अतल गहराइयों में ! चाहे इंसान के अबूझ मस्तिष्क की बात हो चाहे अगम मन की, सब जगह अंधकार अपने स्थूल रूप में विद्यमान नजर आता है। भले ही इस बात से मुंह फेर लिया जाए पर अंधकार के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। चाहे पौराणिक कथाएं हों, कथा-कहानियां हों या वैज्ञानिक तथ्य सबमें अंधकार की उपस्थिति अनिवार्यत: दिखलाई पड़ती है।
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उजाला और अँधेरा, जैसे एक ही सिक्के के दो पहलु ! पर उजास को जहां ज्ञान, जीवन, उत्साह, शुचिता और जीवंतता का प्रतीक माना जाता है, वहीं अंधकार को निराशा, हताशा, अज्ञान या अमंगल का पर्याय मान लिया गया है। पर एक सच्चाई यह भी है कि आज भी ब्रह्मांड में इसका अस्तित्व उजाले से कहीं ज्यादा है, चाहे उसका विस्तार अनंत अंतरिक्ष में हो, चाहे सागर की अतल गहराइयों में ! चाहे इंसान के अबूझ मस्तिष्क की बात हो चाहे अगम मन की, सब जगह अंधकार अपने स्थूल रूप में विद्यमान नजर आता है। भले ही इस बात से मुंह फेर लिया जाए पर अंधकार के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। चाहे पौराणिक कथाएं हों, कथा-कहानियां हों या वैज्ञानिक तथ्य सबमें अंधकार की उपस्थिति अनिवार्यत: दिखलाई पड़ती है।
यहां अंधेरे के गुणगान का प्रयास नहीं हो रहा पर कुछ तो होगा इसके रहस्यमय वातावरण में जिसके कारण विष्णु जी को सागर की अतल गहराइयां मुनासिब बैठतीं होंगी ! क्यों ऋषि-मुनि पहाड़ों की अँधेरी गुफाओं में जा कर ही तप करते होंगे ! क्यों प्रकृति ने अंतरिक्ष और सागर की गहराइयों में प्रकाश की व्यवस्था नहीं की ! क्यों आँखें बंद कर अँधेरे की शरण में जा कर ही प्रभु का ध्यान लग पाता है ! क्यों आदमी को अपने जीवन का करीब एक तिहाई नींद के अँधेरे में गुजारना पड़ता है ! कैसे आँखों में रौशनी ना होने, जगत के प्रकाश की चकाचौंध से अनजान रहने के बावजूद भी सूरदास, मिल्टन, के सी डे, हेलेन केलर, जैसे सैंकड़ों लोग अंधेपन के अंधेरे के सानिध्य रह कर भी अपने आप को जगत्प्रसिद्ध कर पाए !
ज्ञान की बात करें तो प्रकाश की उपयोगिता को तो किसी भी तरह नकारा नहीं जा सकता। अंधकार से निकलने के पश्चात ही ज्ञान-विज्ञान की प्राप्ति हुयी। दुनिया ने तरक्की की। एक-दूसरे को जाना-पहचाना। तरह-तरह की ईजादें हुईं। ज्ञान-विज्ञान से इंसान और यह संसार नई-नई ऊंचाइयों तक पहुंचे। लोगों के जीवन में खुशहाली आई। पर जब सृजन की बात आती है, नव निर्माण की बात आती है, सृष्टि की बात आती है तो अंधकार की भूमिका अहम हो जाती है। जीवन की बात करें तो सारे जीव-जंतु, पशु-पक्षी, जानवर-इंसान सभी तो माँ के गर्भ के अंदर अंधकार में पल कर ही जीवन पाते हैं। यहां तक कि पेड़-पौधे, वृक्ष-लताएं इन सभी को सूरज का प्रकाश देखने के पहले धरा की अंधेरी कोख में ही रह कर अपनी जड़ें मजबूत करनी पड़ती हैं। जितनी कीमती और दुर्लभ धातुएं हैं उनका काया पलट धरती की गहराइयों की अंधेरी कोख में ही संभव है ! जीवनदाई जल अपने निर्मल रूप में धरा की अंधेरी गोद से ही निकल चराचर की प्यास शांत कर पाता है। सूर्यास्त के पश्चात, आसमान में कालिमा छाने के बाद ही कायनात की अद्भुत कारीगिरी, चाँद और सितारों के रूप में सामने आ पाती है ! जन्म लेने के बाद भी जीवन की ऊंचाइयों के सपने देखने के लिए इंसान अपनी आँखों की डिबिया बंद करने के पश्चात ही उस अँधेरी दुनिया के तिलिस्म में प्रवेश कर पाता है ! प्रकृति का सबसे बड़ा अजूबा हमारा शरीर हमें चलायमान रखने के लिए अपने सारे क्रिया-कलाप शरीर के अंदर के अँधेरे में ही पूरा करता है ! घने जंगलों के अंधकार में, धरती की गहरी-अंधी-घुप्प गुफाओं में, सागर की अगम्य-घनी-रौशनी विहीन गहराइयों में भी असंख्य जीव अपना जीवन चक्र बिना किसी बाधा या परेशानी के पूरा करते हैं ! सोचिए यदि कजरारे बादल नभ में छा, सुरमई अंधेरा फैला कर मधु-रस की वर्षा ना करते तो क्या धरा पर जीवन की कल्पना संभव हो पाती ! और तो और आज दुनिया का सबसे बड़ा, लोकप्रिय और सर्वव्यापी मनोरंजन का साधन सिनेमा, हॉल में अंधेरा किए बिना देख पाना कहां संभव है, भले ही इसमें उजाले का भी कुछ हाथ हो !
ज्ञान की बात करें तो प्रकाश की उपयोगिता को तो किसी भी तरह नकारा नहीं जा सकता। अंधकार से निकलने के पश्चात ही ज्ञान-विज्ञान की प्राप्ति हुयी। दुनिया ने तरक्की की। एक-दूसरे को जाना-पहचाना। तरह-तरह की ईजादें हुईं। ज्ञान-विज्ञान से इंसान और यह संसार नई-नई ऊंचाइयों तक पहुंचे। लोगों के जीवन में खुशहाली आई। पर जब सृजन की बात आती है, नव निर्माण की बात आती है, सृष्टि की बात आती है तो अंधकार की भूमिका अहम हो जाती है। जीवन की बात करें तो सारे जीव-जंतु, पशु-पक्षी, जानवर-इंसान सभी तो माँ के गर्भ के अंदर अंधकार में पल कर ही जीवन पाते हैं। यहां तक कि पेड़-पौधे, वृक्ष-लताएं इन सभी को सूरज का प्रकाश देखने के पहले धरा की अंधेरी कोख में ही रह कर अपनी जड़ें मजबूत करनी पड़ती हैं। जितनी कीमती और दुर्लभ धातुएं हैं उनका काया पलट धरती की गहराइयों की अंधेरी कोख में ही संभव है ! जीवनदाई जल अपने निर्मल रूप में धरा की अंधेरी गोद से ही निकल चराचर की प्यास शांत कर पाता है। सूर्यास्त के पश्चात, आसमान में कालिमा छाने के बाद ही कायनात की अद्भुत कारीगिरी, चाँद और सितारों के रूप में सामने आ पाती है ! जन्म लेने के बाद भी जीवन की ऊंचाइयों के सपने देखने के लिए इंसान अपनी आँखों की डिबिया बंद करने के पश्चात ही उस अँधेरी दुनिया के तिलिस्म में प्रवेश कर पाता है ! प्रकृति का सबसे बड़ा अजूबा हमारा शरीर हमें चलायमान रखने के लिए अपने सारे क्रिया-कलाप शरीर के अंदर के अँधेरे में ही पूरा करता है ! घने जंगलों के अंधकार में, धरती की गहरी-अंधी-घुप्प गुफाओं में, सागर की अगम्य-घनी-रौशनी विहीन गहराइयों में भी असंख्य जीव अपना जीवन चक्र बिना किसी बाधा या परेशानी के पूरा करते हैं ! सोचिए यदि कजरारे बादल नभ में छा, सुरमई अंधेरा फैला कर मधु-रस की वर्षा ना करते तो क्या धरा पर जीवन की कल्पना संभव हो पाती ! और तो और आज दुनिया का सबसे बड़ा, लोकप्रिय और सर्वव्यापी मनोरंजन का साधन सिनेमा, हॉल में अंधेरा किए बिना देख पाना कहां संभव है, भले ही इसमें उजाले का भी कुछ हाथ हो !
* ऋग्वेद - सृष्टि से पहले सत नहीं था, असत भी नहीं, अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था। छिपा था क्या कहां, किसने देखा था उस पल तो अगम, अटल जल भी कहां था। था तो हिरण्य गर्भसृष्टि से पहले विद्यमान, वही तो सारे भूत जाति का स्वामी महान।............ यानी तम का साम्राज्य !
* शिव पुराण - सृष्टि के पहले ब्रह्मा और विष्णु जी में कौन बड़ा और पूजनीय की बात को ले छिड़े विवाद के हल स्वरुप शिव जी उन दोनों के बीच एक विशाल अग्नि स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए। घोर अंधकार और भयानक विस्फोट के साथ उपजे उस प्रकाश स्तंभ के ओर-छोर का पता करने हेतु हंस रूप धारण कर ब्रह्मा ऊपर तथा वराह रूपी विष्णु जी नीचे की ओर चल पड़े।........... यानी चहूँ ओर अंधेरा !
* जिस समय सृष्टि में अंधकार था। न जल, न अग्नि और न वायु था तब वही तत्सदब्रह्म ही था जिसे श्रुति में सत् कहा गया है। सत् अर्थात अविनाशी परमात्मा।.........सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा !
* वैज्ञानिकों में एक अवधारणा यह भी हैं कि शुरुआत में ब्रह्मांड की सारी आकाश गंगाएं, आकाशीय पिंड, सभी कण और सभी पदार्थ एक ही साथ, एक ही जगह, एक ही बिंदु पर स्थित थे ! यह बिंदु अत्यंत छोटा होते हुए भी अत्यधिक घनत्व और अत्यंत गर्म था। यह विवरण ''ब्लैक हॉल'' की याद दिलाता है जिससे प्रकाश भी बाहर नहीं आ पाता।................यानी गहन अंधकार !
* ब्रह्मांड विज्ञान के वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि ब्रह्मांड का जन्म एक महाविस्फोट (Big Bang) से हुआ है और उसके पश्चात उसका लगातार विस्तार हो रहा है। उसके पहले क्या था ! कैसा था ! इसका तो अभी सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा रहा है।............ यहां भी अभी अन्धकार की थ्योरी ही काम कर रही है !
इन सारे तथ्यों से एक बात निकल कर सामने आती है कि पहले जो कुछ भी था वह निपट तम का ही एक हिस्सा था ! फिर एक भयंकर उथल-पुथल के फलस्वरूप हुए महाविस्फ़ोटों के कारण ब्रह्मांड का निर्माण हुआ, जिसके फलस्वरूप अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न हुई और उससे इलेक्ट्रान, प्रोटान, न्युट्रान तथा फोटॉन जैसे कण अस्तित्व में आए। इन्हीं में से का एक कण फोटॉन प्रकाश और रौशनी का कारक है। फोटान वो कण हैं जिनसे रौशनी बनती है; यानी ब्रह्मांड निर्माण के पहले सिर्फ अंधकार का ही साम्राज्य था ! अभी भी कायनात की इस विशाल, रहस्यमयी चिलमन के पीछे क्या छिपा है, प्रकृति क्या बुन रही है, प्रभु की कौन सी लीला अवतरित होने वाली है: कौन जानता है !
इन सब से एक बात तो साफ़ हो जाती है कि अंधकार चाहे कितना भी घना हो, उसके पीछे, उसी परिवेश में, उसी के संरक्षण में सृजन, सृष्टि व विकास का क्रम तो लगातार, अनवरत रूप से सतत चलता ही रहता है ! तभी तो जीवन का प्रादुर्भाव हुआ ! प्रकाश की उत्पत्ति हुई ! प्रकाश हुआ तभी ज्ञान का भी विकास हो पाया ! ज्ञान बढ़ा तभी समाज, देश, दुनिया की तरक्की हो पायी। इतना सब होने और देने के बावजूद अकारण ही हम इसे अमंगल मान बैठे हैं। ये तो हमारा ही संकुचित दृष्टिकोण और अज्ञान हुआ !
13 टिप्पणियां:
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (13 -07-2019) को "बहते चिनाब " (चर्चा अंक- 3395) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
अनिता जी, आपका और चर्चा मंच का हार्दिक आभार
दिग्विजय जी, आभारी हूं, मुखरित मौन परिवार में सम्मिलित करने हेतु ¡
एक नई विषय-वस्तु को उजागर करती हुई यह लेख अच्छी और रोचक लगी। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ व बधाई।
पुरुषोत्तम जी, आपका सदा स्वागत है
बढ़िया पोस्ट
मुकेश जी, हार्दिक धन्यवाद
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस - पुरुषोत्तम दास टंडन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
सार्थक ज्ञानवर्धक।
सर्वप्रथम आपको प्रणाम ,
जीवन का नया आयाम ,प्रथम ज्ञान तो अंधकार मे ही उत्तपन्न हुआ । दिल से शुभकामनाये
हर्ष जी,
कोशिश कीजिए कि बुलेटिन फिर से शुरू हो !
कुसुम जी,
हार्दिक आभार
सुशील जी,
सदा स्वागत है ब्लॉग पर
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