बुधवार, 19 जून 2019

जब भजन मंडली ने दो-दो कंबल ओढ़वाए

वह गायन लय-ताल के साथ अपने में शिक्षा, उपदेश, भजन सब कुछ समेटे था। तक़रीबन सारे यात्रियों का ध्यान उस ओर खिंच कर रह गया था। एक दो घंटे के बाद भोजनोपरांत, सोने के पहले, आधेक घंटे के लिए वही माहौल फिर बना। गीत-भजनों का सार था, सर्वजन हिताय ! सर्व जन सुखाये ! हर जीव में भगवान है ! खुद कष्ट सह कर भी दूसरों का उपकार करो ! सब पर दया करो ! सब एक ही परमात्मा की संतानें हैं इत्यादि, इत्यादि ! पर कुछ देर बाद ही इस दिखावे की पोल खुल गयी ! जब गर्मी से बचाव के लिए ज्यादा पैसे खर्च कर खरीदी गयी ठंड से निजात पाने के लिए मजबूरन दो-दो कंबल ओढ़ने पड़े......!  

#हिन्दी_ब्लागिंग   
अभी पिछले हफ्ते मुंबई से दिल्ली आना हो रहा था। सहयात्रियों में एक 24-25 जनों की टोली भी थी। जिसमें युवा से अधेड़ उम्र के पढ़े-लिखे, सभ्रांत, शांत, सौम्य दिखते लोग शामिल थे, जो शायद देवस्थलों के भ्रमण के लिए निकले थे। गाडी चलने के बाद चाय-नाश्ता निपटने के उपरांत दो महिलाओं के गायन की स्वर लहरी सुनाई पड़ी जो कुछ ही देर बाद मंद, कर्णप्रिय समूह गान में परिवर्तित हो गयी। बीस-पच्चीस मिनट का वह गायन लय-ताल के साथ अपने में शिक्षा, उपदेश, भजन सब कुछ समेटे था। सारे यात्रियों का ध्यान उसी ओर था। एक दो घंटे के बाद भोजनोपरांत, सोने के पहले, आधेक घंटे के लिए वही माहौल फिर बना, गीत-भजनों का सार था, सर्व जन हिताय ! सर्व जन सुखाये ! हर जीव में भगवान है ! खुद कष्ट सह कर भी दूसरों का उपकार करो ! सब पर दया करो ! सब एक ही परमात्मा की संतानें हैं इत्यादि, इत्यादि !  
   
कुछ ही देर बाद जब हरेक यात्री सोने का उपक्रम कर रहा था तभी ऐसा लगा कि कोच का तापमान अचानक कम हो गया है। सबको कुछ ज्यादा ही ठंड महसूस होने लगी ! अटेंडेंट को बुला कर तापमान बढ़ाने को कहा तो उसने बताया कि कुछ लोगों ने जबरन ऐसा करवाया है। फिर भी उसने नॉर्मल करने की बात कही।  कुछ देर तो ठीक रहा उसके बाद फिर ठंड बढ़ गयी तो मैंने सम्बंधित कर्मचारी को फिर कहा, तो उसने फिर वही बात दोहराई और बताया कि उस मंडली के दो-तीन लोग लड़ने पर उतारू हो तापमान नीचे करवा रहे हैं ! उसने बताया कि, उन्हें दूसरे यात्रियों की परेशानियों का हवाला भी दिया, यह भी कहा कि बुजुर्ग यात्रियों को तकलीफ हो रही है ! पर वे नहीं माने ! वे सिर्फ अपनी बेआरामी की बात कर रहे हैं ! फिर उसने सुझाव दिया कि, सर, आप लोग एक-एक कंबल और ले लीजिए, बेकार इतनी रात को बात बढ़ाने से कोई फायदा तो है नहीं ! खैर बात वहीँ ख़त्म कर दी गयी ! हालांकि एक-दो लोग कक्ष के बाहर जा कर बैठे भी दिखे ! अजीब विडंबना थी ! पहले गर्मी से बचाव के लिए ज्यादा पैसे खर्च कर ठंड का इंतजाम करो; और फिर उसी खरीदी गयी ठंड से निजात पाने के लिए कंबल ओढो ! 

मैं कभी भी यात्रा के दौरान उपलब्ध कंबलों का इस्तेमाल नहीं करता पर उस दिन मजबूरी में चादर के ऊपर पैरों तक ओढ़ यही सोचता रहा कि मुंह से गाये या दिए गए उपदेश लोग कब अपने दिलों में भी उतारेंगे ! कब दूसरों की तकलीफों, उनकी परेशानियों को भी समझेंगे ! कब सिर्फ दिखावे, रूटीन या दूसरों को उपदेश देने, सुनाने के बजाय खुद भी उनका अनुसरण करेंगे ! कब ! 

6 टिप्‍पणियां:

शिवम् मिश्रा ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 19/06/2019 की बुलेटिन, " तजुर्बा - ए - ज़िन्दगी - ब्लॉग बुलेटिन“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शिवम जी, आपका और ब्लॉग बुलेटिन का हार्दिक आभार

वाणी गीत ने कहा…

आपके इस सवाल में भी उसी सवाल का जवाब है कि जब पूजा या प्रार्थना स्थलों पर इतनी भीड़ है तो वे लोग कौन हैं जो अपराधी हैं ...

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

वाणी जी, स्वागत है आपका

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

ये तो हर वक्त देखने को मिलता है। अक्सर भक्ति के लिए यात्रा करते लोगों को दादागिरी करते हुए और गुंडई करते हुए मैंने देखा है। उस वक्त मैं यही सोचता हूँ कि कौन से भगवान के पास ये ऐसे करके जाना चाहते हैं और कौन सा भगवान है जो इन्हे अपने पास ऐसा आते देखकर खुश होगा? लेकिन जवाब कभी नहीं मिलता है।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

विकास जी, ऐसे लोगों से ही शायद ढोंगी बाबाओं का प्रादुर्भाव होता है

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