जस्टिस सिन्हा ने अपना फैसला सुनाते हुए श्रीमती गाँधी को चुनावों में भ्रष्ट आचरण का दोषी करार देते हुए उनका चुनाव तो रद्द किया ही साथ ही उन्हें अगले छह वर्ष तक किसी भी संवैधानिक पद के लिए भी अयोग्य घोषित कर दिया। कोर्ट के बाहर-अंदर सन्नाटा पसर गया। भरी दोपहरी में भी आधी रात का सा माहौल छा गया सा लगने लगा था। इंदिरा गांधी का चेहरा सफ़ेद पड़ गया, उन्हें पूरी आशा थी कि फैसला उनके ही हक़ में होगा ! हालांकि उन्हें अपील के लिए पंद्रह दिन का समय मिला था पर ऐसे निर्णय की तो उन्होंने तो क्या किसी ने भी कल्पना तक नहीं की थी, इसीलिए उन्होंने आगे अपील के लिए कोई वकील भी नियुक्त नहीं किया था...................!
#हिन्दी_ब्लागिंग
इलाहाबाद हाईकोर्ट परिसर, 12 जून 1975, जैसे सारा शहर ही वहां आ इकठ्ठा हुआ हो ! चहुँ ओर जन-सैलाब ! होता भी क्यों ना ! आज देश की प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के रायबरेली से चुनाव जीतने के नतीजे को सोशलिस्ट नेता राजनारायण द्वारा दी गयी चुन्नौती का फैसला जो आना था। जज थे जगमोहनलाल सिन्हा। अचानक भीड़ में भारी अफरातफरी मच गयी, नारे लगने लगे, भीड़ बेकाबू होने लगी, उसी रेलम-पेल में एक काले रंग की गाडी कोर्ट परिसर में आ कर रुकी और उसमें से उतरीं श्रीमती इंदिरा गाँधी ! देश के तब तक के इतिहास में कोई प्रधान मंत्री पहली बार अपना फैसला सुनने अदालत पहुंचा था। चेहरे पर हल्के से तनाव के बावजूद एक निश्चिंतता भरी मुस्कान लिए उन्होंने अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं का हाथ हिला कर अभिवादन किया। नारों के शोर से सारा माहौल गुंजायमान हो उठा ! श्रीमती गांधी धीरे-धीरे चलते हुए कोर्ट के कक्ष में प्रवेश कर गयीं। अगले पलों में जो होने वाला था उसका किसी को भी लेश मात्रअंदाजा नहीं था !
बात 1971 की है। इंदिरा गांधी ने उत्तर प्रदेश की अपनी परंपरागत रायबरेली सीट पर अपने प्रतिद्वंदी सोशलिस्ट पार्टी के राजनारायण को भारी बहुमतों से परास्त कर जीत हासिल की थी। हारने के बाद राजनारायण ने चुनावी गड़बड़ियों का आरोप लगाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल कर दी थी। जिसे दो आधारों पर स्वीकार कर लिया गया था। पहला था प्रधान मंत्री सचिवालय के ओएसडी राजकुमार कपूर का चुनाव एजेंट की तरह काम करना और दूसरा उनकी चुनाव रैलियों के आयोजन में उत्तर प्रदेश के सरकारी अधिकारीयों का सहयोग।
समयानुसार जस्टिस सिन्हा ने अपना फैसला सुनाते हुए श्रीमती गाँधी को चुनावों में भ्रष्ट आचरण का दोषी करार देते हुए उनका चुनाव तो रद्द किया ही साथ ही उन्हें अगले छह वर्ष तक किसी भी संवैधानिक पद के लिए अयोग्य घोषित भी कर दिया। कोर्ट के बाहर-अंदर सन्नाटा छा गया। एक अजीबोगरीब चुप्पी सारे जन-सैलाब पर छा गयी। भरी दोपहरी में भी आधी रात का सा माहौल पसर गया लगता था। इंदिरा गांधी का चेहरा सफ़ेद पड़ गया, मानो काटो तो खून नहीं ! उन्हें पूरी आशा थी कि फैसला उनके ही हक़ में होगा ! हालांकि उन्हें अपील के लिए पंद्रह दिन का समय मिला था पर ऐसे निर्णय की तो उन्होंने तो क्या किसी ने भी कल्पना तक नहीं की थी, इसीलिए उन्होंने आगे अपील के लिए कोई वकील भी नियुक्त नहीं किया था। उनके साथ के सारे नेता, कार्यकर्त्ता, साथी किंकर्तव्यविमूढ़ से खड़े थे। किसी को कुछ भी नहीं सूझ रहा था। ऐसे में वहीं के एक स्थानीय वकील वी. एन. खेर ने अपनी तरफ से ही एक अर्जी हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर दी। बाद में यही खेर साहब भारत के मुख्य न्यायाधीश भी बने।
उसके बाद जो हुआ वह तो सभी जानते हैं कि कैसे सुप्रीम कोर्ट में अवकाश होने की वजह से इस मामले की सुनवाई अवकाशकालीन जस्टिस कृष्णा अय्यर ने करते हुए 24 जून को श्रीमती गांधी को राहत दे उन्हें प्रधान मंत्री बने रहने की छूट दे दी। जिसके अगले ही दिन 25 जून को इमरजेंसी लगा दी गयी। आगे चल कर हाई कोर्ट का फैसला भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द कर दिया गया।
6 टिप्पणियां:
सही में कुछ अलग सा !!बहुत अच्छी जानकारी ।
इतिहास के पन्नों की दास्ताँ ....
काली या ... पर सच तो यही है ...
शिवम जी, आपका और ब्लॉग बुलेटिन का हार्दिक आभार
शुभा जी, आपका ब्लॉग पर सदा स्वागत है
शास्त्री जी, स्नेह बना रहे !
नासवा जी, आपका स्वागत है, सदैव
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