बुधवार, 19 सितंबर 2018

एक मंत्र, जिसके सिद्ध होने पर हनुमान जी आज भी दर्शन देते हैं

हनुमान जी के चिरंजीवी होने के रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिए पिदुरु के आदिवासियों की हनु पुस्तिका आजकल " सेतु एशिया" नामक आध्यात्मिक संगठन के पास है। सेतु के संत पिदुरु पर्वत की तलहटी में स्थित अपने आश्रम में इस पुस्तिका को समझकर इसका आधुनिक भाषाओं में अनुवाद करने की चेष्टा में जुटे हुए हैं। लेकिन इन आदिवासियों की भाषा की कलिष्टता और हनुमान जी की रहस्य्मयी लीलाएं इतनी पेचीदा हैं कि उसको समझने में ही काफी समय लग रहा है। पिछले 6 महीने में केवल 3 अध्यायों का ही अनुवाद हो पाया है........!

#हिन्दी_ब्लागिंग   
हनुमान जी ! देश के, सबसे लोकप्रिय, प्रसिद्ध, पूजनीय पांच देवताओं में से एक। अकेले ऐसे पात्र, जिनकी मौजूदगी रामायण और महाभारत दोनों ग्रंथों में पाई जाती है। जिनके बारे में यह मान्यता है कि वे अजर-अमर
और चिरंजीवी हैं और अपने भक्तों की रक्षा के लिए आज भी धरती पर विचरण करते हैं। उनका निवास हिमालय में माना जाता है, जहां से वे अपने भक्तों की पुकार पर उनकी सहायता करने मानव समाज में आते हैं लेकिन किसी को आँखों से दिखाई नहीं देते। लेकिन उन्हीं का दिया हुआ एक ऐसा मंत्र भी है जिसके जाप से हनुमान जी अपने सच्चे भक्त के सामने साक्षात प्रकट हो जाते हैं। इसके पीछे एक लोक मान्यता है 

रामायण में अभिन्न रूप से जुडी लंका की एक आदिवासी जनजाति का यह दावा है कि हनुमान जी की उन पर असीम कृपा है। उनके अनुसार जब प्रभु राम जी ने अपना मानव जीवन पूरा कर समाधि ले गो-लोक प्रस्थान किया तो हनुमान जी ने भी व्यथित हो अयोध्या यह सोच कर छोड़ दी कि जब मेरे प्रभू ही यहां नहीं हैं तो मेरा क्या काम ! उन्होंने जंगलों को अपना आवास बना लिया था। पर मन जब अपने इष्ट के बिना ज्यादा
व्यथित हो जाता था तो वह देशाटन के लिए निकल जाते थे। ऐसे ही एक बार वे भ्रमण करते हुए लंका के जंगलों में भी चले गए थे जहाँ उस समय विभीषण का राज्य था। वहां उन्होंने प्रभु राम के स्मरण में पिदुरु (पिदुरुथालागाला) जो श्री लंका का सबसे ऊँचा पर्वत है, वहां बहुत दिन गुजारे थे। उसी दौरान वहां रहने वाले मातंग आदिवासियों, जो कि लंका की पुरानी जन-जाति वेद्दाह की एक उप-जाति है, ने उनकी खूब सेवा की थी। हनुमान जी भी उनसे बहुत घुल-मिल गए थे। जब वे वहां से लौटने लगे तब वहां के लोग बहुत दुखी हो गए, बोले प्रभू हमें अब कौन राह दिखाएगा ! कौन हमें उबारेगा ! इन लोगों ने हनुमान जी को रोकने की बहुत कोशिश की ! पर रमता जोगी बहता पानी कब एक जगह ठहरता है ! पर उनका प्रेम देख भक्तवत्सल हनुमान जी ने यह मंत्र उनको देते हुए कहा, मैं आपकी सेवा, प्रेम और समर्पण से अति प्रसन्न हूँ। जब भी आप लोगों को मेरी जरुरत हो, इस मंत्र का जाप करना, मै प्रकाश की गति से आपके पास आ जाऊँगा। यह कह कर उन्होंने वह अमोघ मंत्र उनके मुखिया को सौंप दिया। जो इस प्रकार था -

                     "कालतंतु कारेचरन्ति एनर मरिष्णु , निर्मुक्तेर कालेत्वम अमरिष्णु"

मंत्र देने के साथ ही हनुमान जी ने इस मंत्र को सिद्ध करने की दो शर्तें भी रखी थीं। पहली कि जाप करने वाले को अपनी आत्मा का मेरे साथ संबंध होने का बोध होना चाहिए, ऐसा ना होने पर यह मंत्र काम नहीं करेगा। 
दूसरी जब इस मंत्र का जाप किया जाए तो 980 मीटर की दूरी तक कोई ऐसा इंसान नहीं होना चाहिए जो पहली शर्त पूरी न कर पा रहा हो। यानी इस मंत्र का जाप या तो बिल्कुल अकेले में हो या फिर वहां सिर्फ वही लोग हों जिनकी आत्मा को मेरे साथ संबंध होने का बोध हो।  

मंत्र तो मिल गया पर मुखिया के मन में उसे पाने के बाद एक चिंता उठी, जिसके निवारण हेतु उसने प्रभू से पूछा, हे प्रभु; हम इस मंत्र को तो यथाशक्ति गुप्त रखेंगे; लेकिन फिर भी अगर किसी को इस मंत्र का पता चल गया और वह इस मंत्र का दुरुपयोग करने लगा ! तो क्या होगा ? हनुमान जी ने उसकी दुविधा दूर करते हुए कहा, आप उसकी चिंता न करें ! अगर कोई ऐसा व्यक्ति इस मंत्र का जाप करेगा, जिसको अपनी आत्मा के मेरे साथ संबंध का बोध नहीं होगा तो यह मंत्र काम नहीं करेगा। 
पर मुखिया की दुविधा अभी भी जारी थी, उसने फिर पूछा, भगवन ! आपने हमें तो आत्मा का ज्ञान दे दिया है जिससे हम तो अपनी आत्मा के आपके साथ संबंध से परिचित हैं। लेकिन हमारे बच्चों और आने वाली पीढ़ियों का क्या होगा ? उनके पास तो ना तो आत्मा का ज्ञान होगा नहीं उन्हें अपनी आत्मा के आपके साथ संबंध का बोध होगा ! तब उनका उद्धार कैसे होगा ? तब हनुमान जी ने उन्हें यह वचन दिया कि मै आपके कुटुंब के साथ समय बिताने हर 41 साल बाद यहां आता रहूँगा और आकर आपकी आने वाली पीढ़ियों को भी आत्म ज्ञान देता रहूंगा; जिससे समय के अंत तक आपके कुनबे के लोग यह मंत्र जाप करके कभी भी मेरे साक्षात दर्शन कर सकेंगे।

उस आदिवसी जन-जाति के वंशज अभी भी श्री लंका के जंगलों में रहते हैं। उन्होंने अपने आप को सभ्य जगत से दूर ही रखा हुआ है। किसी को भी कुछ महीनों पहले तक उन पर की हनुमान कृपा का जरा सा भी आभास नहीं था, जब तक कि कुछ अन्वेषकों ने उनकी अनोखी और कुछ असामान्य गतिविधियों को देख नहीं लिया। खोज-खबर लेने के पश्चात पता चला कि यह कर्म-काण्ड वह "चरण पूजा" है जिसे हर 41 साल बाद प्रभू हनुमान की अगवानी के लिए किया जाता है। उन्होंने बताया कि 2014 में हनुमान जी उनके साथ थे, जिन्हें सिर्फ वही लोग देख सकते थे। उनके साथ कुछ दिन रहने और नई पीढ़ी को "आत्म-ज्ञान" देने के पश्चात 27 मई 2014 को भगवान वापस  चले गए। अब उनका आगमन 41 वर्षों के पश्चात 2055 में होगा। पर यदि     बहुत ही आवश्यक हुआ तो उस दैवी मंत्र के जाप से उनका आह्वान बीच में भी किया जा सकता है। इसी के साथ बिरादरी के मुखिया, बाबा मातंग, ने यह भी बताया कि हनुमान जी के आगमन, उनके यहां निवास, उनके प्रवचन, उनके कहे गए हरेक शब्द, उनके द्वारा किए गए कार्यों का, एक-एक मिनट का पूरा ब्यौरा, हम अपनी हनु पुस्तिका (पंजी या लॉग बुक) में दर्ज करते हैं।  2014 के प्रवास के दौरान हनुमान जी द्वारा जंगल वासियों के साथ की गई सभी लीलाओं का विवरण भी इसी पुस्तिका में नोट किया गया है।

आजकल यह पंजी, लॉग बुक, सेतु एशिया नामक आध्यात्मिक संगठन के पास है। सेतु के संत पिदुरु पर्वत
की तलहटी में स्थित अपने आश्रम में इस पुस्तिका को समझकर इसका आधुनिक भाषाओं में अनुवाद करने की चेष्टा में जुटे हुए हैं, ताकि हनुमान जी के चिरंजीवी होने के रहस्य का पर्दा उठ सके। लेकिन इन आदिवासियों की भाषा की कलिष्टता और हनुमान जी की रहस्य्मयी लीलाएं इतनी पेचीदा हैं कि उसको समझने में ही काफी समय लग रहा है। पिछले 6 महीने में केवल 3 अध्यायों का ही अनुवाद हो पाया है। जब भी इस पुस्तिका में का कोई नया अध्याय अनुवादित होता है तो सेतु संगठन का कोलम्बो ऑफिस उसका औपचारीक घोषणा करता है। अभी तक जिन अध्यायों के विवरण प्राप्त हुए हैं वे इस प्रकार हैं -
अध्याय 1 : चिरंजीवी हनुमान जी का आगमन : इस अध्याय में इस घटना का विवरण है कि पिछले साल एक रात हनुमान जी कैसे पिदुरु पर्वत के शिखर पर इन जंगल वासियों को दिखाई दिए। हनुमान जी ने उसके बाद एक बच्चे के पिछले जन्म की कहानी सुनाई, जो दो माताओं के गर्भ से पैदा हुआ था। 
अध्याय 2 : हनुमान जी के साथ शहद की खोज : इस अध्याय में इस बात का विवरण है कि अगले दिन हनुमान जी जंगल वासियों के साथ शहद खोजने निकले और वहां पर क्या घटनाएं घटित हुईं। 
अध्याय 3 : काल के जाल में चिरंजीवी हनुमान : यह सबसे रोचक अध्याय है। हनुमान जी द्वारा दिए गए  ऊपर दिए गए मंत्र का अर्थ इसी अध्याय में समाहित है। उदाहरण के तौर पर जब हम मनुष्य समय के बारे में सोचते हैं तो हमारे मन में घडी का विचार आता है; लेकिन जब भगवान समय के बारे में सोचते हैं तो उन्हें समय के धागों (तंतुओं ) का विचार आता है। इस मंत्र में “काल तंतु कारे” का अर्थ समय के धागों का जाल है।

आज विश्व भर के हनुमान भक्तों को बेसब्री से नए अध्याय की जानकारी का इंतजा रहता है, क्योंकि हर

ऐसी जानकारी उन्हें इस मंत्र की पहली शर्त पूरी करने के करीब ले जाती है; जिसे पूरी करने के बाद कोई भी भक्त इस दैवी मंत्र के जाप से हनुमान जी को अपने पास पा उनके वास्तविक रूप के दर्शन कर उनकी असीम कृपा का भागी बन सकता है। पर क्या खुद को इस लायक बना पाना इतना आसान है ? मार्ग तो सैंकड़ों वर्ष पहले तुलसीदास जी भी बता गए थे -
संकट ते हनुमान छुड़ावै, मन-क्रम-बचन ध्यान जो लावै।
यानी संकट पड़ने पर जिस वीर हनुमान के नाम का लोग मन, कर्म और वचन से जाप करते हैं, ध्यान लगाते हैं , उन्हें  हर संकट से मुक्ति मिल जाती है। पर कितने लोग मन-कर्म और वचन से निष्ठावान हो पाए। फिर भी यदि उपरोक्त सारी खोज फलीभूत हो जाती है तो यह हम सब के लिए गौरव का विषय तो होगा ही हमारी पौराणिकता की सच्चाई इसको कोरी कल्पना कहने-मानने वालों के लिए एक सबक होगी। 

*संदर्भ -  SPEAKINGTREE

6 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

आगे की जानकारी के लिए मन उत्सुकता से भर उठा है
बहुत अच्छी प्रस्तुति
जय सियराम

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कविता जी, अपने इतिहास की सच्चाई सामने लाने के लिए कितने साक्ष्य जुटाने पडेंगे हम सब को 😞

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन कुंवर नारायण और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हर्ष जी, आप बुलाऐं और हम ना आऐं, ऐसा कैसे हो सकता है । आभार

Book River Press ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

Thanks for visit, but please be known to all !

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