मेरे मित्र ठाकुर जी ने अपनी पत्नी को कहा कि यदि तुम्हारे पास कुछ 500-1000 के नोट पड़े हैं तो दे दो उन्हें बदलवा लेते हैं। पत्नी भी राजी हो गयीं पर जब उन्होंने अपनी जमा-पूँजी ठाकुर जी के सामने रखी तो वे बेहोश होते-होते बचे, उनके सामने पूरे तीन लाख रुपये पड़े थे, जो उनकी ठकुराइन ने अपने कला-कौशल से इकट्ठा किए थे
मनुष्य के प्रादुर्भाव के बाद समय के साथ-साथ उसके खान-पान, रहन-सहन सबमें बदलाव आता चला गया। जिंदगी में स्थायित्व आया। जिम्मेदारी का एहसास जगा। घर, परिवार बना जिसमे भरण-पोषण-उपार्जन का जिम्मा पुरुष के कंधों पर आया और नारी ने घर की जिम्मेदारी संभाल ली। यही वह समय होगा जब अधिकतम नारियों को पुरुषों का आश्रित होना पड़ा होगा, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए उसका मुंह जोहना पड़ता होगा, अति आवश्यक जरुरत को पैसे के अभाव के कारण पूरा न कर पाने पर जन्मी होगी असुरक्षा और संबल पाने की भावना। ऐसी स्थितियों से पार पाने के लिए महिलाओं ने घर खर्च से बचे या घर खर्च में कुछ कटौती कर, घर वालों की नज़र से बचा कर, कुछ न कुछ संचय करना शुरू कर दिया होगा। पर इसमें भी उसका कोई अपना स्वार्थ या हित नहीं था। यह सब उसका किसी अनचाही और कठिन घडी में परिवार को उबारने के लिए उठाया गया कदम भर था। पर पता नहीं ऐसी तरकीब सारी भारतीय माताओं और पत्नियों को एक साथ कैसे सूझी, जो समय के साथ-साथ उनमें एक आदत में तब्दील होती चली गयी !! अक्सर यह जमा-पूंजी संचयकर्ता की हैसियत को देखते हुए हैरत-अंगेज आंकड़ों में तब्दील होते पाई गयी है।
आज सरकार के एक कठोर निर्णय की वजह से पूरे देश में अफरा-तफरी मची हुई है। सर्वोच्च कीमत वाले नोटों को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाईं जा रही हैं। हर कोई बिना नुक्सान के अपने धन को सुरक्षित करना चाहता है और कर भी रहा है। हमारे हर घर में पुरुषों को "आभास" रहता है कि घर की किसी अनजान जगह में, कहीं न कहीं, कुछ ना कुछ नोटों की शक्ल में जरूर पड़ा हुआ है। इसे कोई अन्यथा लेता भी नहीं है। उसी आभास के तहत सहज भाव से अभी दो दिन पहले मेरे मित्र ठाकुर जी ने अपनी पत्नी को कहा कि यदि तुम्हारे पास कुछ 500-1000 के नोट पड़े हैं तो दे दो उन्हें बदलवा लेते हैं। पत्नी भी राजी हो गयीं पर जब उन्होंने अपनी जमा-पूँजी ठाकुर जी के सामने रखी तो वे बेहोश होते-होते बचे, उनके सामने पूरे तीन लाख रुपये पड़े थे, जो उनकी ठकुराइन ने अपने कला-कौशल से इकट्ठा किए थे।
मनुष्य के प्रादुर्भाव के बाद समय के साथ-साथ उसके खान-पान, रहन-सहन सबमें बदलाव आता चला गया। जिंदगी में स्थायित्व आया। जिम्मेदारी का एहसास जगा। घर, परिवार बना जिसमे भरण-पोषण-उपार्जन का जिम्मा पुरुष के कंधों पर आया और नारी ने घर की जिम्मेदारी संभाल ली। यही वह समय होगा जब अधिकतम नारियों को पुरुषों का आश्रित होना पड़ा होगा, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए उसका मुंह जोहना पड़ता होगा, अति आवश्यक जरुरत को पैसे के अभाव के कारण पूरा न कर पाने पर जन्मी होगी असुरक्षा और संबल पाने की भावना। ऐसी स्थितियों से पार पाने के लिए महिलाओं ने घर खर्च से बचे या घर खर्च में कुछ कटौती कर, घर वालों की नज़र से बचा कर, कुछ न कुछ संचय करना शुरू कर दिया होगा। पर इसमें भी उसका कोई अपना स्वार्थ या हित नहीं था। यह सब उसका किसी अनचाही और कठिन घडी में परिवार को उबारने के लिए उठाया गया कदम भर था। पर पता नहीं ऐसी तरकीब सारी भारतीय माताओं और पत्नियों को एक साथ कैसे सूझी, जो समय के साथ-साथ उनमें एक आदत में तब्दील होती चली गयी !! अक्सर यह जमा-पूंजी संचयकर्ता की हैसियत को देखते हुए हैरत-अंगेज आंकड़ों में तब्दील होते पाई गयी है।
आज सरकार के एक कठोर निर्णय की वजह से पूरे देश में अफरा-तफरी मची हुई है। सर्वोच्च कीमत वाले नोटों को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाईं जा रही हैं। हर कोई बिना नुक्सान के अपने धन को सुरक्षित करना चाहता है और कर भी रहा है। हमारे हर घर में पुरुषों को "आभास" रहता है कि घर की किसी अनजान जगह में, कहीं न कहीं, कुछ ना कुछ नोटों की शक्ल में जरूर पड़ा हुआ है। इसे कोई अन्यथा लेता भी नहीं है। उसी आभास के तहत सहज भाव से अभी दो दिन पहले मेरे मित्र ठाकुर जी ने अपनी पत्नी को कहा कि यदि तुम्हारे पास कुछ 500-1000 के नोट पड़े हैं तो दे दो उन्हें बदलवा लेते हैं। पत्नी भी राजी हो गयीं पर जब उन्होंने अपनी जमा-पूँजी ठाकुर जी के सामने रखी तो वे बेहोश होते-होते बचे, उनके सामने पूरे तीन लाख रुपये पड़े थे, जो उनकी ठकुराइन ने अपने कला-कौशल से इकट्ठा किए थे।
सब जगह हड़कंप तो मचा ही है पर उससे ज्यादा बड़ा झंझावात तो ऐसी गृहणियों के मनों में छाया हुआ है जिन्होंने पता नहीं कितनी किफ़ायत कर-कर के, कितनी बार अपनी इच्छाओं को दबा कर, कितनी बार अपनी जरूरतों को किनारे कर परिवार के भविष्य के लिए कुछ न कुछ जमा-जुगाड़ कर रखा है। आज की परिस्थिति में उनको समझ ही नहीं आ रहा है कि अपने पास की "उस तरह" की जमा राशि को वे कैसे बचाएं ! किस की सलाह लें! यदि वे किसी को नहीं बताती हैं तो सारी पूँजी के सिफर हो जाने का खतरा है और बताने पर पोल खुल जाती है और रहस्य उजागर हो जाता है। अभी तो खैर सारा पैसा बैंक में जमा हो जाएगा पर सब को पता चल जाने की वजह से वह "आम संपत्ति" हो जाएगी, जिसे जो चाहेगा, जब चाहेगा, थोड़ा-थोड़ा ले-मांग कर सिफर तक पहुंचा देगा। क्या करें क्या ना करें उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा और इस बारे में तो उनकी सहायता नाहीं मोदी जी कर पाएंगे नाहीं जेटली जी !!!!
आपके पास कोई राह, कोई उपाय, कोई युक्ति है क्या ?
2 टिप्पणियां:
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति डॉ. सालिम अली और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
Harshvardhan ji,
Aabhar
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