मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

माँ के लिए उसने अमरत्व ठुकराया

प्राणी के जन्म लेते ही उसकी मृत्यु भी निश्चित हो जाती है पर उसके साथ ही उसके मन में अमर होने की कामना भी जन्म ले लेती है। पर इस असार संसार में ऐसा कोई नहीं हुआ जिसका अंत न हुआ हो। हमारे वेद-पुराणों के किस्से-कहानियों में जरूर ऐसे चरित्रों का उल्लेख मिल जाता है जिन्होंने अपने कर्मों से अमरत्व हासिल कर लिया हो। कोई बिरला ही होगा जो इस सुयोग से अपने को वंछित करना चाहता हो।  पर महाभारत में एक प्रसंग है जहां अपनी माँ की खातिर एक बेटे ने अमृत को भी ठुकरा दिया। 

कथानुसार कश्यप ऋषि की दो पत्नियों कद्रू जिनके हजार नाग पुत्र थे तथा विनता जिनका अति तेजस्वी पुत्र गरुड़ था। हालांकि कद्रू और विनता दोनों बहनें थीं पर उनकी आपस में बनती नहीं थी। कद्रू सदा विनता को नीचा दिखाने की ताक में रहती थी। ऐसे ही एक दिन दोनों में बहस हो गयी कि समुद्र मंथन से निकले घोड़े का रंग क्या है ?  विनता का कहना था कि वह पूर्ण रूप से शुभ्र है पर कद्रू उसे जान बूझ कर आंशिक रूप से काला बता रही थी. शर्त बद गयी और कद्रू के पुत्रों ने उस पूर्णरूपेण सफेद घोड़े उच्चैश्रवा की पूंछ पर लिपट उसे आंशिक काला बना दिया। शर्त के अनुसार विनता को कद्रू की दासी बना देख गरूड़ को अत्यंत कष्ट होता था। उन्होंने अपनी माँ की दासता से छुटकारे का हल अपने सौतेले भाईयों से पूछा तो उन्होंने कहा कि हमें स्वर्ग से अमृत ला दो तो तुम्हारी माँ को छुटकारा मिल जाएगा। अमृत कलश कड़ी सुरक्षा के बीच देव राज इंद्र के कब्जे में था। पर अपनी जान की चिंता किए बगैर गरुड़ ने भीषण युद्ध कर उसे प्राप्त किया और तीव्र गति से स्वर्ग से निकल आए। विष्णू जी ने जब देखा कि महापराक्रमी गरुड़ ने अमृत पाने के बाद भी उसे खुद पान नहीं किया तो उन्होंने गरुड़ को दर्शन दे इसका कारण जानना चाहा तो गरुड़ ने सारी बात बताई और यह भी कहा कि शर्त के अनुसार उन्हें इसे ले जाकर नागों को देना है पर वे इसे किसी को पीने नहीं देंगे। माँ के दासता मुक्त होते ही इसे वहाँ से इंद्र तुरंत वापस ला सकते हैं। 
विष्णू जी गरुड़ के पराक्रम, चातुर्य, निश्छलता, मातृ-प्रेम तथा न्याय शीलता से अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें अमरत्व का वर दे अपने वाहन का भार भी सौंप दिया। 

आज किसी से पूछा जाए कि किन-किन देवताओं ने अमृत पान किया तो शायद ही कोई उन सारों के नाम बता पाए पर जिसने अमृत उपलब्ध होने पर भी अपने आप को अमर होने के लोभ से परे रखा, आज उसे सारा संसार जानता है।   

3 टिप्‍पणियां:

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति को आज की बसन्त पंचमी, विश्व कैंसर दिवस, फेसबुक के 10 साल और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

त्याग की पराकाष्ठा, प्रेरक कहानी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ऐसे लोग बिना अमृत-पान किए ही अमर हो जाते हैं

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