प्राणी के जन्म लेते ही उसकी मृत्यु भी निश्चित हो जाती है पर उसके साथ ही उसके मन में अमर होने की कामना भी जन्म ले लेती है। पर इस असार संसार में ऐसा कोई नहीं हुआ जिसका अंत न हुआ हो। हमारे वेद-पुराणों के किस्से-कहानियों में जरूर ऐसे चरित्रों का उल्लेख मिल जाता है जिन्होंने अपने कर्मों से अमरत्व हासिल कर लिया हो। कोई बिरला ही होगा जो इस सुयोग से अपने को वंछित करना चाहता हो। पर महाभारत में एक प्रसंग है जहां अपनी माँ की खातिर एक बेटे ने अमृत को भी ठुकरा दिया।
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विष्णू जी गरुड़ के पराक्रम, चातुर्य, निश्छलता, मातृ-प्रेम तथा न्याय शीलता से अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें अमरत्व का वर दे अपने वाहन का भार भी सौंप दिया।
आज किसी से पूछा जाए कि किन-किन देवताओं ने अमृत पान किया तो शायद ही कोई उन सारों के नाम बता पाए पर जिसने अमृत उपलब्ध होने पर भी अपने आप को अमर होने के लोभ से परे रखा, आज उसे सारा संसार जानता है।
3 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रस्तुति को आज की बसन्त पंचमी, विश्व कैंसर दिवस, फेसबुक के 10 साल और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
त्याग की पराकाष्ठा, प्रेरक कहानी
ऐसे लोग बिना अमृत-पान किए ही अमर हो जाते हैं
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