गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

जहां भी जाएं वहाँ की व्यवस्था को पूरी तौर से अंगीकार करें।


साल में दूसरी बार नार्वे में एक और  भारतीय दंपति अपनी ही संतान को लेकर वहां की सरकार का कोपभाजन बन गयी है। बच्चों का ठीक से पालन-पोषण नहीं करने के आरोप में पिछली बार एक दंपति को उनके बच्चों से अलग कर दिया गया था, तो इस बार अपने बेटे को डांटने-फटकारने के जुर्म में पिता, चंद्रशेखर को 18 माह और मां अनुपमा को 15 माह के लिए जेल भेज दिया गया है। हांलाकि इस परिवार ने उच्च न्यायालय में अपील करने की बात कही है। वैसे देखें तो ये घटनाएं व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप की तरह लग सकती हैं, पर यह एक सबक है दूसरे देश में जाने वाले हमारे लोगों के लिए। 

आज हर देश के नागरिक बेहतर भविष्य के लिए दूसरे देशों का रुख करते ही हैं इसमें कोई बुराई भी नहीं है। पर कायदा यही कहता है कि हम जहां भी जाएं वहां के नियम-कानून को पूरा सम्मान दें और उसका पालन करें। 

अपने देश में बच्चों का पालन-पोषण करने का तरीका अलग है, सोच अलग है, हम बच्चों को भरपूर प्यार देते हैं तो उनकी गलती या उद्दंडता पर जरा प्रताडित भी करना ठीक समझते हैं। पर बाहर खासकर योरोप के देशों में बच्चे पर किसी भी तरह की जरा सी भी कठोरता जुर्म के रूप में देखी जाती है। वहां पारिवारिक डांट-डपट और पिटाई को अपराध माना जाता है। उनके अनुसार ऐसा करने से बच्चे का सही विकास नहीं हो पाता।  

दोनों जगहों के अपने-अपने तर्क अपनी-अपनी जगह ठीक हो सकते हैं। उस पर बहस अलग विषय है। यहां मुद्दा यह है कि यदि आप अपना कर्म-क्षेत्र किसी दूसरे देश में बनाते हैं तो वहां के कानून, वहां के नियम, वहां की व्यवस्था को पूरे तौर से अंगीकार करें। यह नहीं कि अपनी सहूलियत के अनुसार आधे-अधूरे रुप में अपने मतलब की चीज तो स्वीकारें और जो अच्छा ना लगे या अपने अनुकूल ना हो उसे दबे-छिपे तरीके से नकार दें। ऐसा करना कभी भी भारी पड सकता है। 

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जाने के पहले एक बार अवश्य सोच लें पर जाने के बाद वहाँ के रंग में ढल जायें।

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