इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
बुधवार, 8 अगस्त 2012
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रणछोड़भाई रबारी, One Man Army at the Desert Front
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4 टिप्पणियां:
सब के सब मजेदार..
ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की ओर से काकोरी कांड की ८७ वी वर्षगांठ के इस पावन अवसर पर सभी जांबाज क्रांतिकारियों को शत शत नमन | इस अवसर पर तैयार की गयी ब्लॉग बुलेटिन, काकोरी कांड की ८७ वी वर्षगांठ - ब्लॉग बुलेटिन, के लिए, आप की पोस्ट को भी लिया गया है ... पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
आपके द्वारा दिखाया पहला बोर्ड बेकार होने जा रहा है.... घर का पता बताने वाले गरीब और घर तक पहुँचाने वाले गरीबों के लिये खुश खबरी "सरकार फ्री मोबाइल देने जा रही है."
पहले आओ और पहले पाओ के आधार पर मिलेगा मोबाइल ... इसलिये जहाँ भी कोई गरीब दिखे उसे निम्न बातें जरूर बतायें----
— जगह-जगह गरीबों को इकट्ठा किया जायेगा और उनसे कहा जाये 'माल कम है जो पहले हाथ बढ़ाएगा उसे ही मिलेगा'. तब जो भागमभाग मचेगी] मुफ्त की ख़त्म होती चीज़ पर जैसे लोग टूटेंगे... उससे बहुत से गरीब ओटोमेटिक कम हो जायेंगे... लेकिन वो सावधानी बरतें.
— गरीबरथ में सफ़र करने वाले गरीबों को ही मोबाइल दिया जायेगा.... इसलिये सभी जमापूंजी लगाकर 'रायबरेली या अमेठी रूट से' स्कीम के समय जरूर सफ़र करें.
— गरीबों के पास पहुँचे मोबाइल जब तक चार्ज रहेंगे... उन्हें तब तक ही सरकार की योजनाओं की जानकारी दी जायेगी. जिसका मोबाइल जैसे ही डिस्चार्ज हो जायेगा उसे गरीब नहीं माना जायेगा.
सचमुच, गवर्मेंट ऐसा ही कुछ करने जा रही है.... गरीबों में भी जो बिलकुल फटेहाल होंगे उन्हें मेसेज भेज-भेज कर इतना परेशान किया जायेगा कि वे खुदखुशी कर लेंगे.
प्रतुल जी,
कौन गरीब? यह गरीब होता क्या है? इसकी पहचान कौन करेगा? क्या वह सिर्फ जिसकी पगडी को सजने संवरने और बंधने में 100-150 या ज्यादा ही रोज का खर्च आ जाता है, या वह जिसको अपने दफ्तर कमरा तो छोडें उसका एक खंभा पसंद ना आने पर 6-7 बार यूंही तोड दिया जाता है, या वह जो सत्ता में आते ही 20-20 लाख गाडियों पर लुटाने की सोचता है, या वह जिसे खुद कैसा भी हो पर अपनी ही मुर्तियां पसंद नहीं आतीं, या वह जिसे आलू-प्याज की कीमत भी 'अपने घर वालों' के बताने पर पता चलती है, या वह? या वह? या वह? पता नहीं कौन-कौन कहां-कहां जा बैठा है "मैरियों" के राज में और रोटी नहीं केक खाने की सलाह दे रहा है।
ये तो "वे" हैं। जनता ही कौन सी कम है, इधर रायपुर में 'स्पेन' की तर्ज पर 30-40 रुपये की दर से बिकने वाले मनों टमाटरों से एक होटल में होली खेली गयी, क्या "इनको" पता है गरीब और गरीबी क्या होती है।
क्या सोच है, अधनंगे, अधभूखे पेटों को मोबाइल का झुनझुना पकडाया जा रहा है !!!
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