मणिकर्ण, हिमाचल मे पार्वती नदी की घाटी मे बसा एक पवित्र तीर्थ-स्थल है। हिन्दु तथा सिक्ख समुदाय का पावन तीर्थ, जो कुल्लू से 35 कीमी दूर समुंद्र तट से 1650 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां आराम से बस या टैक्सी से जाया जा सकता है। पौराणिक कथा है कि अपने विवाह के पश्चात एक बार शिवजी तथा माता पार्वती घूमते-घूमते इस जगह आ पहुंचे। उन्हें यह जगह इतनी अच्छी लगी कि वे यहां ग्यारह हजार वर्ष तक निवास करते रहे। इस जगह के लगाव के कारण ही जब शिवजी ने काशी नगरी की स्थापना की, तो वहां भी नदी के घाट का नाम मणिकर्णिका घाट ही रक्खा।
इस क्षेत्र को अर्द्धनारीश्वर क्षेत्र भी कहते हैं यह समस्त सिद्धीयों का देने वाला स्थान है, ऐसी मान्यता है यहां के लोगों मे। कहते हैं कि यहां प्रवास के दौरान एक बार स्नान करते हुए माँ पार्वती के कान की मणि पानी मे गिर तीव् धार के साथ पाताल पहुंच गयी। मणि ना मिलने से परेशान माँ ने शिवजी से कहा। शिवजी को नैना देवी से पता चला कि मणि नागलोक के देवता शेषनाग के पास है। उसके मणि ना लौटाने के दुस्साहस से शिवजी क्रोधित हो गये. तब उनके क्रोध से भयभीत हो शेषनाग ने जोर की फुंकार मार कर मणियों को माँ के पास भिजवा दिया। इन मणियों के कारण ही इस जगह का नाम मणिकर्ण पडा। शेषनाग की फुंकार इतनी तीव्र थी कि उससे यहां गर्म पानी का स्रोत उत्पन्न हो गया। यह एक अजूबा ही है कि कुछ फ़िट की दूरी पर दो अलग-अलग तासीरों के जल की उपस्थिति है। एक इतना गर्म है कि यहां मंदिर - गुरुद्वारे के लंगरों का चावल कुछ ही मिनटों मे पका कर धर देता है तो दूसरी ओर इतना ठंडा की हाथ डालो तो हाथ सुन्न हो जाता है।
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थोडी सी हिम्मत, जरा सा जज्बा, नयी जगह देखने-जानने की ललक हो तो एक बार यहां जरूर जाएं।
2 टिप्पणियां:
मणिकर्ण के बारे में अच्छी जानकारी दी है आपने ..
समग्र गत्यात्मक ज्योतिष
बड़ा ही रोचक विवरण...
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