सोमवार, 9 जुलाई 2012

रायसीना की कठिन डगर


राजनीति अबूझ खेलों का गढ है। यहां के खिलाडी "जर्सी" किसी की पहनते हैं, मन से किसी और की तरफ होते हैं और "गोल" किसी और के लिए करते हैं।

रायसीना पहाडी पर बने आलीशान महल के नये मेहमान का नाम लगभग तय हो गया है। यदि कोई अनहोनी या चमत्कार ही ना हो जाए तो प्रणव मुखर्जी का वहां जाना तय है। पर उनका यहां तक का सफर इतना सहज और आसान नहीं था वह भी तब जब देश की सबसे ताकतवर महिला और उन्हीं की पार्टी की सुप्रीमो की पसंद मुखर्जी नहीं हामीद अंसारी थे।

राजनीति अबूझ खेलों का गढ है। यहां के खिलाडी "जर्सी" किसी की पहनते हैं, मन से किसी और की तरफ होते हैं और "गोल" किसी और के लिए करते हैं। प्रणव रूपी फांस सोनिया को तबसे सालती रही है जब इंदिरा जी की मृत्यु पर मुखर्जी ने प्रधान मंत्री बनने की दावेदारी पेश की थी। इसी के चलते 2004 में हर तरह से लायक होने के बावजूद प्रधान मंत्री की कुर्सी मनमोहन सिंह को सौंप दी गयी थी। अभी भी राष्ट्रपति पद के लिए प्रणव का नाम उनकी लोकप्रियता के कारण आगे बढाया जरूर गया था पर उसके पीछे आकलन था कि प्रणव-ममता के आपसी तनाव के चलते तृणमूल उनका विरोध करेगी तब हामीद अंसारी को सर्वोच्च पद के लिए मनोनीत कर दिया जाएगा और प्रणव को उपराष्ट्रपति पद सौंप कर एक बडी अडचन को भी दूर कर लिया जाएगा।

हामीद अंसारी सोनिया की पहली पसंद थे। उन्होंने अपनी भक्ति का प्रदर्शन 30 दिसंबर 2011 को लोकपाल बिल की बहस के दौरान कर भी दिया था। सोनिया को विश्वास था कि फख्रुद्दीन अलि अहमद, वी। वी। गिरी, ज्ञानी जैल सिंह और प्रतिभा पाटिल जैसे नामों की वह अगली कडी होंगे। पर प्रणव मे आगत को सूंघ लिया और उन्होंने सोनिया के दाहीने हाथ और विश्वस्त अहमद पटेल और नारायणसामी को बुलवा कर अपना आक्रोश जाहिर कर स्तीफे की धमकी दे डाली। पार्टी में खलबली मचनी स्वाभाविक थी, प्रणव के जाने का सीधा मतलब पार्टी का टूटना था। जिसका सीधा असर राहुल के कार्यकारी अध्यक्ष बनने पर पडना लाजमी था। यहीं आ कर बहुतों के बहुतेरे मंनसूबे धाराशाई हो गये, कहां तो एक तीर से दो निशाने साधने कि योजना थी और कहां तीर कमान में ही फंस कर रह गया और इसके साथ ही प्रणव के लिए रायसीना तक लाल गलीचा बिछने की पूरी संभावना उत्पन्न हो गयी।
हालांकी संगमा जी अपना पूरा जोर लगा रहे हैं, पर प्रणव जी से पार पाना मुश्किल ही है।.   



2 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

जब अन्दर की बात भी, सार्वजनिक हो जाय ।

विश्वस्तों की कमी से, रानी मन अकुलाय ।

रानी मन अकुलाय, पूत तो प्यारा लागे ।

चूक निशाना जाय, देर से दादा जागे ।

रविकर की कामना, राष्ट्रपति पद की गरिमा ।

अक्षुणता बढ़ जाय, बढे भारत की महिमा ।।

P.N. Subramanian ने कहा…

सही आंकलन.

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