एक बार जार्ज बर्नार्ड शा ने एक चित्रकार को अपना चित्र बनाने को कहा और वायदा
किया कि पसंद आने पर पारिश्रमिक के रूप में एक सौ पौंड देंगे। चित्रकार ने बडी
मेहनत और लगन से उनका बहुत ही सुंदर चित्र बनाया। शा को वह चित्र बहुत पसंद आया और
उन्होंने वायदे के अनुसार चित्रकार को बीस-बीस पौंड के पांच चेक एक प्रशंसा पत्र
के साथ भेज दिए। चेक तथा पत्र पाने पर चित्रकार को समझ नहीं आया कि शा ने एक चेक
की जगह पांच-पांच चेक क्यों भेजे। अपनी उत्सुकता शांत करने के लिए वह शा से मिला
और पूछा, "सर
पांच-पांच चेक काटने की क्या जरूरत थी, सौ पौंड का एक ही चेक काफी होता।"
शा ने पूछा, ''क्या तुमने चेक भुना लिए हैं?''
''नहीं,'' चित्रकार ने जवाब दिया।
शा बोले, "अच्छा किया। तुम चेक भुनाना भी मत। इससे तुम्हें भी फायदा होगा और मुझे भी।"
चित्रकार बोला, "मैं कुछ समझा नहीं सर"
शा मुस्कुराए और बोले, "मैं अपने प्रशंसकों से अपने एक हस्ताक्षर के तीस पौंड लेता
हूं। तुम पांचों चेक मेरे प्रशंसकों को बेच दो। इससे तुम्हें एक सौ के बदले डेढ सौ
पौंड मिल जाएंगे। इस तरह तुम पचास पौंड ज्यादा कमा लोगे।"
"मेरा फायदा तो समझ में आया पर इससे आप को कैसे फायदा होगा?" चित्रकार ने पूछा।
"ऐसा है कि मेरे प्रशंसक मेरे हस्ताक्षरों को बेचते नहीं हैं। वे उन्हें फ्रेम
में मढवा कर अपने पास संजोए रखते हैं। इस
तरह मेरे भी एक सौ पौंड बच जाएंगे।'' शा ने हंसते हुए जवाब दिया।
4 टिप्पणियां:
वाह..
सही!!
Dimaagdaaar
बहुत सुन्दर. कहाँ से संजोया आपने. बढ़िया लगा.
एक टिप्पणी भेजें