शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

रानी लक्ष्मी बाई की सखी झलकारी, इतिहास मौन है जिसके बारे में

"झलकारी", महारानी लक्ष्मीबाई का दाहिना हाथ, समर्पण और वफादारी का दूसरा नाम। अपने देश और सहेली के लिए जिसने अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की। पर इतिहास ने उसे उतनी तवज्जो नहीं दी जितने की वह हकदार थी............!

#हिन्दी_ब्लागिंग 
झांसी की रानी की सेना के एक सिपहसालार पूरन कोली की पत्नी थी झलकारी। शादी के बाद जब दोनों अपनी रानी का आशिर्वाद लेने महल में गये तभी उसे देख वहां उपस्थित सारे लोग दंग रह गये थे। एकदम लक्ष्मी बाई का प्रतिरूप थी वह। वैसे ही नैन-नक्श, वैसा ही कद , वैसी ही रंगत, वैसी ही कद-काठी। रानी भी उसे देख हैरान हो गयी थी। उसी दिन से उसे रानी ने अपनी सहेली बना लिया था। तब ही से शुरु हो गया था झलकारी का प्रशिक्षण। उसे घुड़सवारी, सैन्य संचालन, अस्त्र-शस्त्र चलाने की विधिवत शिक्षा रानी ने अपनी देख-रेख में दिलवानी आरम्भ करवा दी थी। दोनों जब साथ-साथ निकलती थीं तो पहचानना मुश्किल हो जाता था कि कौन, कौन है?

वैसे भी झलकारी बचपन से ही निड़र और बहादुर थी। एक बार किशोरावस्था में ही उसने अपनी सहेलियों की रक्षा एक दुर्दांत बाघ को सिर्फ कुल्हाड़ी से मार कर की थी। पूरन कोली ने भी उसकी ख्याति सुन और उसकी बहादुरी से प्रभावित हो कर उससे शादी की थी।

सन सत्तावन का युद्ध शुरु हो चुका था। झलकारी रानी के कंधे से कंधा मिला कर युद्ध में भाग ले रही थी। एक दिन रणभूमि में रानी अंग्रेजों से बुरी तरह घिर गयीं। वह अपने दोनों हाथों में तलवार लिए अंग्रेज सैनिकों को गाजर मूली की तरह काटे जा रही थीं। पीठ पर दतक पुत्र दामोदर बंधा हुआ था। उनकी तलवार जिधर घूम जाती उधर ही नर मुंड़ भूलुंठित हो जाते थे। पर अंग्रेजों का घेरा धीरे-धीरे कसता जा रहा था। इतने में झलकारी की नजर मुसीबत में घिरी अपनी सखी पर पड़ी। तुरंत उसने उधर का रूख कर घेरा तोड़ा और रानी के पास जा पहुंची। भयंकर मार-काट मच गयी पर धीरे-धीरे संकट गहराने लगा था। मौके की नजाकत को देख झलकारी ने रानी को निकल जाने के लिए कहा। पर रानी कहां मानने वाली थीं। पर सारे ऊंच-नीच समझा कर, दामोदर की दुहाई दे कर किसी तरह उन्हें मना लिया गया। रानी ने अपना चेहरा कपड़े से ढक लिया और झलकारी ने अपना चेहरा उघाड़ लिया। अंग्रेजों को धोखा दे रानी अपने कुछ चुने हुए सैनिकों के साथ रणभूमि से निकल गयीं, फिर तैयारी कर अंग्रजों से लोहा लेने के लिए। इधर झलकारी ने साक्षात रणचंडी का रूप धारण कर लिया। पर अंग्रेज भी ऐसा मौका चूकना नहीं चाहते थे, रानी को जीवित गिरफ्तार करने का। आखिरकार झलकारी बंदी बना ली गयी। अंग्रेज अपनी इस सफलता पर फूले नहीं समा रहे थे। उसे सेनाध्यक्ष रोज के सामने ले जाया गया। पर कुछ हिंदोस्तानी सैनिकों ने झलकारी को पहचान कर असलियत बता दी। पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पहले तो झलकारी को मृत्यु दंड़ दिया गया पर बाद में उसे आजीवन कैद की सजा सुनाई गयी। जहां जेल में अमानुषिक यातनाओं से उसकी इहलीला समाप्त हो गयी।

हालांकि झलकारी अंग्रेजों की दुश्मन थी, फिर भी अंग्रेज अधिकारी उसकी वीरता, साहस, रणकुशलता और शौर्य की प्रशंसा किए बगैर नहीं रह सके। अपने उच्चाधिकारियों को भेजी गयी सूचना में उसकी खुल कर प्रशंसा की गयी थी।

पर अपना इतिहास पता नहीं क्यों मौन साधे है उस विरांगना के प्रति ?

9 टिप्‍पणियां:

P.N. Subramanian ने कहा…

आज एक नयी बात मालूम पड़ी. आभार.

डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

इस देश का इतिहास भी एक इतिहास है

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

वाकई बहुत ही नई ऐतिहासिक जानकारी मिली.

रामराम.

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत ही नयी जानकारी दी आप ने धन्यवाद

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

बुन्देलखण्ड में इस तथ्य को लेकर दो भाग हैं एक तो वे हैं जो झलकारी को कपोल कल्पित मानते हैं क्योंकि किसी भी गजेटियर में झलकारी के बारे में कुछ भी नहीं मिलता है. एक वे लोग हैं विशेष रूप से कोरी समुदाय के लोग जो झलकारी के अस्तित्व को स्वीकारते हैं. इसके बाद भी वे लोग उसके होने का कोई सबूत नहीं दे पाते हैं. झाँसी में भी किसी तरह का कोई स्थान नहीं मिलता जो झलकारी को सिद्ध करता हो.
बावजूद इसके इस बात को हवा आज की राजनीति देने लगी है, जिसके लिए सब कुछ जाति हो गई है. ऐसे लोगों का कहना है कि झलकारी का अस्तित्व सवर्णों ने इस कारण दबा दिया क्यों कि वो कोरी जाति की थी.
अब सत्य क्या है ये तो रानी लक्ष्मी बाई ही जाने या फिर झलकारी.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…


उम्दा पोस्ट-सार्थक लेखन के लिए आभार

प्रिय तेरी याद आई
आपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता पर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सेंगर जी,
हो सकता है कि यह पात्र भी "अनारकली" की तरह ही का हो।

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

आज दिनांक 7 सितम्‍बर 2010 के दैनिक जनसत्‍ता में संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्‍तंभ में आपकी यह पोस्‍ट रानी की सखी शीर्षक से प्रकाशित हुई है, बधाई। स्‍कैनबिम्‍ब देखने के लिए जनसत्‍ता पर क्लिक कर सकते हैं। कोई कठिनाई आने पर मुझसे संपर्क कर लें।

Ashok Suryavedi ने कहा…

झलकारी बाबु ब्रन्दावन लाल वर्मा के दिमाग की उपज हैं झाँसी की रानी उपन्यास में ही इस किरदार का वर्णन है इसीलिए झलकारी बाई साहित्य की देन हैं न की इतिहास की .राजनीती की तो बात ही निराली है कोरी समुदाय की बड़ी संख्या को देखकर झाँसी में महारानी लक्ष्मी बाई से भी बड़े बड़े स्मारक झलकारी बाई के बन गए हैं ...................

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