विवेक जी ने बीडी पीने के लिये ब्रेक भी लिया और उसकी बुराईयां भी गिना दीं। पर उन दद्दाजी के दुखडे को भी जान लें जिन्होंने वर्षों पहले धूंआ पीना छोड़ दिया था। अपनी धर्म पत्नि के कहने पर।
एक दिन अचानक एक वृद्ध दंपति के जीवन का फुलस्टाप एक ही दिन एक ही समय आ गया। दोनो जने धर्मपरायण, सीधे-सच्चे, ईश्वर भक्त थे सो उन्हें सीधे स्वर्ग मे स्थान मिल गया। अब वहां मौजां ही मौजां। ना खाने-पीने की चिंता, ना हारी बिमारी का डर। चारों ओर शांति ही शांति, एक सा मनभावन मौसम। सकून भरी आराम दायक दिनचर्या।
पर दूसरे ही दिन वह भला आदमी, जिसने जीते-जी कभी अपनी पत्नि से एक शब्द भी जोर से नहीं कहा था, लड़ने लग गया। तुम्हारे कारण मेरी खुशियां छिन गयीं। तुम्हारी बेवकूफी से मैं आनंद से महरूम रहा, इत्यादि-इत्यादि।
बेचारी उसकी धर्मपत्नि भी हैरान-परेशान कि मैंने ऐसा क्या कर दिया। आसपास घूमते और लोग भी इकठ्ठा हो गये। तभी एक देवदूत ने उस भले आदमी से पूछा कि क्या हो गया? क्यों खफा हो रहे हो? तो वह भला आदमी बोला, अजी इस औरत ने बीस साल पहले मेरी बीड़ी-सिगरेट छुड़वा दी थी, नहीं तो मैं यहां पहले ना आ जाता।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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10 टिप्पणियां:
अजी, हमने तो आज तक बीड़ी का स्वाद ही चखा है बस, वह भी बचपन में,
आपकी पोस्ट को आज भी हमारे पापा पढ़ लें तो डण्डे बरसेंगे हम पर,
भ्रम मत फैलाइये :)
बीडी पीना अच्छी बात नही है.:)
रामराम.
haahaa!! ये भी एक नज़रिया है.
इस दृ्ष्टिकोण से देखा जाये तो बीडी पीना कोई बहुत बुरा भी नहीं है।
पचास पार कर लें,फिर हम भी शुरू करते हैं:)
क्या बीड़ी ही स्वर्ग की सीड़ी है?????:-)
अब क्या कहें ! हमने तो कभी बीडी पी ही नहीं और न ही पीने का कभी इरादा है |
हा हा.. सही है..
बीड़ी आनंद नहीं, एक नशा है पर उसके लिये दुखी होने की जरुरत नहीं। अच्छा किस्सा।
बेचारे दद्दा जी...बडा अत्यचार हुआ उन पर जीते जी तो...
आपको गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनांए.
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