सीन, एक :- एक लड़की घर से निकल रही है। पीछे से आवाज आती है, बाहर बाल खुले मत छोड़ना। तभी वह बाला अपने सारे बालों को लहरवा देती है।
सीन, दो :- वही कन्या आफिस में प्रवेश करती है। पीछे से हिदायत भरी आवाज सुनाई देती है, आफिस में बाल खुले मत रखना। सुनते ही सर को झटका दे वह अपने सारे बालों को आजाद कर देती है।
सीन, तीन :- मां अपने सामने बैठी अपनी लाड़ली के बालों को निहारते हुए फूली नहीं समाती, अपनी सलाहों पर। उधर लड़की मुस्कुराती है, माँ के भोलेपन और अपनी चतुराई पर।
यह एक शैंपू का विज्ञापन है। पता नहीं आज अपना सामान बेचने के लिये, अपना उत्पाद घर-घर पहुंचाने के लिये ज्यादातर कंपनियां मां-बाप को अज्ञानी, समय से पिछड़ा हुआ दिखाने पर क्यों तुली रहती हैं। ये कैसी सोच है? ऐसा भी तो हो सकता था कि मां कहती, बेटा हम फलाना शैंपू प्रयोग में लाते आ रहे हैं, इससे ना कभी मुझे बालोँ की चिंता करनी पड़ी ना तुम्हें पड़ेगी। पर विज्ञापन बनाने वाले अधकचरे दिमागों में यह बात गहराई तक पैठ गयी है कि अवहेलना, उद्दंड़ता, लापरवाही ही आज सफलता का मापदंड़ हो गयी है।
पर कौन और कैसे कोई समझाये किसी को कि यदि क्रीमों से ही इंसान सुंदर और गोरा-चिट्टा होने लग जाता तो आज अफ़्रीका में कोई काले रंग का ना बचा होता। (-:
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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20 टिप्पणियां:
hmmmmmmmm vigyapan hai ise to bahut soch samjh kar banana chahiye
bahut gahri chaap chorta hai ye man par
सही है !!
गगन जी..इस घोर व्यावसायिक युग में सभी अपनी सामाजिक जिम्मेदारी भुला चुके हैं ....
सही बात है......इस तरह के विज्ञापन गलत संदेश भी फैलाते हैं......लेकिन इन्हें कोई रोकने वाला नही है..
सही कह रहें हैं आप...घोर कलयुग है
सत्य कहा आपने. मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
आप सही कह रहे हैं. परन्तु हम कहेंगे क्यों इन फालतू विज्ञापनों को देख टेंशन लेते है.
बिलकुल सही कहा आपने हर ओर बाज़ारवाद का ही बोलबाला है आभार्
सही कहा आपने
भैया, पैसों के लिए एक पाउच शैंपू के साथ ये अपने मां - बाप को भी आपके हवाले कर सकते हैं. आखिर इनके लिए मां-बाप फालतू जो ठहरे. ज्यादा देर नहीं लगेगी. जो संस्कार ये नई पीढी को दे रहें हैं एक दिन इनके अपने बच्चे जब इनके पिछवाडे पर लात लगाकर इन्हें घर से बाहर फेंक देंगे तब इन्हें अपने कुकर्मों का अहसास होगा.
दिल पे मत ले मेरे यार.....अब नहीं बचेगा प्यार...संस्कार...!!....आप चिंता करते हो बेकार....अब जीवन भी है व्यापार.....!!
इसी तरह सारे विज्ञापन बच्चों को बिगाड़ने पर तुले है....
"पर कौन और कैसे कोई समझाये किसी को कि यदि क्रीमों से ही इंसान सुंदर और गोरा-चिट्टा होने लग जाता तो आज अफ़्रीका में कोई काले रंग का ना बचा होता। "
चमत्कारी पोस्ट के लिए बधाई।
अगर यह भेदभाव न होगा तो चीजें बिकेंगी कैसे. कई भ्रान्तियां तो जानबूझ कर फैलाई जाती हैं.
एक बार भारतीय एम टीवी चला कर देख लिया था, इतनी संस्कारहीनता तो अमरीकी लडके-लडकियों मे भी नहीं होती. सरेआम भारतीय पोषाकों को गंवारों द्वारा पहने जा रहे कपडे करार दिया जा रहा था.
बिल्कुल सही फ़रमाया आपने! बहुत बढ़िया लगा!
विज्ञापन पर आपत्ति है तो टिप्पणी के साथ साथ जहाँ शिकायत दर्ज होती है इन विज्ञापनों के आपत्तिजनक होने की वहाँ पर भी आपत्ति दर्ज करवायें।
बाजारवाद जो न कराये,वो कम है!!
बढिया पोस्ट्!!!
bilkul sahi kaha aapne....tv me bekar ads ki koi kami nahi hai
पता नहीं किस कारण, पर इस पोस्ट और टिप्पणियों के बाद यह विज्ञापन दिखना बंद हो गया है।
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