मंगलवार, 25 अगस्त 2009

एक महान संगीतकार की उपेक्षित समाधि

बैजू, जिसके संगीत में पत्थर को भी पिघला देने की क्षमता थी, जिसका गायन सुन लोग जड़वत खड़े रह जाते थे, जिसने अपने समय के महान संगीतकार तानसेन को भी पराजय का मुख देखने को विवश कर दिया था। (कुछ इतिहासकारों के अनुसार दोनों का समय अलग-अलग था) आज उसकी समाधि की खोज-खबर लेने वाला भी कोई नहीं है। उसी ग्वालियर शहर में जहां हर साल तानसेन समारोह बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है वहीं के घोरपोड़े बाड़े में स्थित एक हद तक गुमनाम सी बैजू की समाधि अपनी उपेक्षा का दर्द झेल रही है। यहां तक की बहुतेरे ग्वालियर वासियों को भी इस जगह का पता नहीं है। इस बाड़े में दो समाधियां हैं। आजकल यहां की देख-रेख करने वाले एक धोबी परिवार के अनुसार दूसरी समाधि बैजू की पत्नी की है। समाधि पर होने वाली चूने की पोताई के कारण उस पर लिखे आलेख को अपठनीय बना दिया है।

कहते हैं वर्षों पहले यहां काफी रौनक हुआ करती थी। हर नया गाना सीखने वाला यहां आकर अपनी सफलता की मन्नौति मांगता था। इन्हीं समाधियों के पास एक नीम का पेड़ हुआ करता था, जिसकी दो-तीन पत्तियां खाने से गाने के कारण बैठा हुआ गला बिल्कुल ठीक हो जाता था। पर रोज-रोज की बढती भीड़-भाड़ से तंग आ कर यहां के तत्कालीन मालिक घोरपोड़े ने उस पेड़ को जड़ से ही उखड़वा दिया था।

आज जो धोबी परिवार इन समाधियों की सार-संभार कर रहा है, उसका गीत-संगीत से दूर-दूर का रिश्ता नहीं है पर पूरा परिवार बैजू को अपना कुलदेवता मानता है और जितना बन पड़ता है उतना रख-रखाव कर रहा है।

7 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मार्मिक प्रसंग!
जानकारी देने के आभार।

Creative Manch ने कहा…

बहुत ही बढ़िया पोस्ट अत्यंत दुःख की बात है की अपनी विरासत और स्म्रतियों को संभाल पाने में
हम नाकाम हैं


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राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

इस धोबी भाई और उनके परिवार को प्रणाम....और उपरवाले की और से उनको मेरा आशीष....बैजू बावरा को मेरी भावभीनी श्रद्दांजलि....!!और इस आलेख के माध्यम से इस विवरण को प्रस्तुत करने वाले...इस अलग से भाई को हमारा आभार.....!!

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

सच है.ग्वालियर के तानसेन समारोह में मै भी गई हूं वहां बैजू-बावरा का नाम लेने वाला भी कोई नहीं दिखाई दिया.मैने समारोह से लौट्कर अपनी रिपोर्ट में इस बात का ज़िक्र भी किया था. अच्छी जानकारी.

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

यह हमारा दुर्भाग्य है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

दो सखियां बचपन की

इक तो अपने रूप के कारण गलियों में बिक जाए

दूजे अपने धन के कारण रूपमति कहलाए...


तानसेन राज दरबारी और बैजू सड़कछाप! किस का समारोह मनाया जाएगा। ऐसे प्रश्न के सही उत्तर को थोडे ही पुरस्कार दिया जाता है:)

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

आरक्षण के युग में शायद जब तक बैजू को भी आरक्षण न मिलेगा, पूछेगा कौन............

बहुत सही प्रश्न उठाने का हार्दिक आभार.

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