गुरुवार, 27 अगस्त 2009

स्वर्ग की आत्माओं के क्रैश कोर्स के लिए पृथ्वी का निर्माण हुआ

धीरे-धीरे स्वर्ग में रहनेवाले वहां के "मनटनस" जिंदगी और दिनचर्या से ऊबने लग गये थे। वही रोज की रुटीन, ना काम ना काज, ना थकान ना चुस्ती। समय पर इच्छा करते ही हर चीज उपलब्ध। बस सुबह-शाम भजन-कीर्तन, स्तुति गायन। फिर वही हुआ जो होना था। सुख का आंनद भी तभी महसूस होता है जब कोई दुख: से गुजर चुका होता है।
अब स्वर्ग में निवास करने वाली आत्माएं जो परब्रह्म में लीन रह कर उन्मुक्त विचरण करती रहती थीं, उन्हें क्या पता था कि बिमारी क्या है, दुख: क्या है, क्लेश क्या है, आंसू क्यों बहते हैं, बिछोह क्या होता है, वात्सल्य क्या चीज है ममता क्या है। भगवान भी वहां के वाशिंदों की मन:स्थिति से वाकिफ थे। वैसे भी वहां की बढती भीड़ ने उनके काम-काज में रुकावट डालनी शुरु कर दी थी। सो उन्होंने इन सब ऊबे हुओं को सबक सिखाने के लिये एक "क्रैश कोर्स" की रूपरेखा बनाई। इसके तहत सारी आत्माओं को स्वर्ग से बाहर जा कर तरह-तरह के अनुभव प्राप्त करने थे। इसके लिये एक रंगमंच की आवश्यकता थी सो पृथ्वी का निर्माण किया गया। वहां के वातावरण को रहने लायक तथा मन लगने लायक बनाने के लिये मेहनत की गयी। हर छोटी-बड़ी जरूरत का ध्यान रख उसे अंतिम रूप दे दिया गया। पर आत्माओं पर तो कोई गति नहीं व्यापति इसलिये उन्हें संवेदनशील बनाने के लिये एक माध्यम की जरूरत महसूस हुई इस के लिये शरीर की रचना की गयी जिसमें स्वर्ग के एक क्षणांश की अवधि में रह कर हरेक को तरह-तरह के अनुभव प्राप्त करने थे।
अब हर आत्मा का अपना नाम था, अस्तित्व था, पहचान थी। उसके सामने ढेरों जिम्मेदारियां थीं। समय कम था काम ज्यादा था। पर यहां पहुंच कर भी बहुतों ने अपनी औकात नहीं भूली। वे पहले की तरह ही प्रभू को याद करती रहीं। कुछ इस नयी जगह पर बने पारिवारिक संबंधों में उलझ कर रह गयीं। पर कुछ ऐसी भी निकलीं जो यहां आ अपने आप को ही भगवान समझने लग गयीं।
अब इन सब के कर्मों के अनुसार भगवान ने फल देने थे। तो अपनी औकात ना भूला कर भग्वद भजन करने वालों को तो जन्म चक्र से छुटकारा मिल फिर से स्वर्ग की सीट मिल गयी। गृहस्थी के माया-जाल में फसी आत्माओं को चोला बदल-बदल कर बार-बार इस धरा धाम पर आने का हुक्म हो गया। और उन स्वयंभू भगवानों ने, जिन्होंने पृथ्वी पर तरह-तरह के आतंकों का निर्माण किया था, दूसरों का जीना मुहाल कर दिया था, उनके लिये एक अलग विभाग बनाया गया जिसे नरक का नाम दिया गया।
अब स्वर्ग में भीड़-भाड़ काफी कम हो गयी है। वहां के वाशिंदों को अपने-अपने अनुभव बता-बता कर अपना टाइम पास करने का जरिया मिल गया है।
प्रभू आराम से अपनी निर्माण क्रिया में व्यस्त हैं।

4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

aapke dwara likha gaya lekh bohut hi aacha laga aaj se hi ishwar bhakti k liye 15minute ka time aur badha diye hai taaki uper jaaker hum ishwar k charnon mein sthan prapt kar sake. apka choota

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन!! चलो, प्रभु को आराम का समय मिल गया!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

हमने भी बोरिया-बिस्तरा समेटना शुरू कर दिया है।
बधाई!

राज भाटिय़ा ने कहा…

नरक के लोगो को भी मोका मिलना चाहिये ना..
धन्यवाद बाबा जी

विशिष्ट पोस्ट

रणछोड़भाई रबारी, One Man Army at the Desert Front

सैम  मानेक शॉ अपने अंतिम दिनों में भी अपने इस ''पागी'' को भूल नहीं पाए थे। 2008 में जब वे तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भ...