सफेद घर में काले आदमी के प्रवेश करते (व्हाइट हाउस में ओबामा ) ही हमारे रंग-बिरंगे देश में बिना बात के लोग लाल-पीले होने लग गये हैं।कहीं मुस्लिम प्रधान मंत्री के लिये बहस हो रही है तो कहीं सोनिया जी को लेकर। जबकि बहस या प्रयास होना चाहिये था, सक्षमता को लेकर। आज ऐसे नेतृत्व की जरुरत है जो हर बाहरी- भीतरी दवाब का सीना तान कर सामना करने का माद्दा रखता हो। कुर्सी की बजाए देश को प्रमुखता देता हो। वंशवाद की जगह लायक युवाओं को देश की कमान सौंपने का हौसला रखता हो।
रही सोनिया जी की बात तो मेरा यह साफ मत है कि यदि उनकी पार्टी बहुमत में होती तो वह कभी भी इस पद को स्वीकारने से इंकार नहीं करतीं। वे और उनके सिपहसलारों को पूरी तरह मालुम था कि इस सतरंगी दाल की खिचड़ी ने नाकों चने चबवा देने हैं। सो एक तीर से दो शिकार की तर्ज पर मनमोहन जी को सूली पर चढाया गया और त्याग की वाहवाही भी लूट ली गयी।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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20 टिप्पणियां:
बिल्कुल सटीक लिखा आपने.....................
बिल्कुल सही कह रे हो जी.
रामराम.
सत्यवचन !
हर वाक्य सत्य है
---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम
यदि अपने यहाँ सोनिया बन जातीं तो कहते कि काले घर में सफेद औरत कैसे आई. चित भी मेरी पट भी मेरी. वह भाई मजेदार बात हुई.
सात रंग होते है राइट च्वाइस अपनी अपनी कही काले को सफ़ेद और सफ़ेद को कला रंग पसंद आ सकता है . बात पसंदगी की है .
वाह! कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना।
कोई ये नही देखता की ओबामा ने कभी इस तर्क का ग़लत उपयोग नही किया बल्कि अपनी सक्षमता के दम पर जीत दर्ज की। हमारे देश में तो उल्टा ही निष्कर्ष निकलेगा, यहाँ तर्क उस दिशा में मोड़ दिए जाते हैं जहाँ वोट मिलते हैं.
ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं अपनी योग्यता, सक्षमता और ओजस्वी व्यक्तित्व के कारण न कि किसी आरक्षणवाद, वंशवाद, सहानुभूति या विवशता के कारण । ओबामा का देशप्रेम स्पष्ट और स्वत:स्फूर्त है। यही फर्क अमेरिका को सबसे ताकतवर लोकतंत्र बनाता है और हमें मात्र सबसे बडा लोकतंत्र।
ओबामा को अमरीका के लोगों ने राष्ट्रपति बनाया और जिन लोगों पर आप निशाना साध रहे हैं उन्हें भारत के ही लोगों ने इस हैसियत में पहुंचाया। गुस्सा अपनी जगह। हकीकत अपनी जगह।
विष्णु जी,
नमस्कार।
मेरा इरादा कोई निशाना-विशाना साधने का नहीं था। वैसे भी कोशिश करता हूं कि राजनीति से दूर ही रहूं। पर फिर भी कभी-कभी ताक-झांक हो ही जाती है। दो दिन पहले के लेखों को पढ कर लगा कि एक बेवजह की बहस शुरु हो गयी है तो उस समय मन में जो उमड़ा उसे सामने रख दिया। सब जानते हैं कि अमेरिका सबसे पहले अपना हित देखता है। जहां उसके हित की बात होती है वहीं अपनी टांग अड़ाता है। फिर भी हम जाने क्यी-क्या अपेक्षाएं लिये उसका मुंह ताकते रहते हैं।
mai bhi aapse sahmat hu
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
सटीक
गणतंत्र दिवस के पुनीत पर्व के अवसर पर आपको हार्दिक शुभकामना और बधाई .
महेंद्र मिश्र जबलपुर.
आपके ब्लॉग पर आकर सुखद अनुभूति हुयी.इस गणतंत्र दिवस पर यह हार्दिक शुभकामना और विश्वास कि आपकी सृजनधर्मिता यूँ ही नित आगे बढती रहे. इस पर्व पर "शब्द शिखर'' पर मेरे आलेख "लोक चेतना में स्वाधीनता की लय'' का अवलोकन करें और यदि पसंद आये तो दो शब्दों की अपेक्षा.....!!!
गणतंत्र दिवस की आप सभी को ढेर सारी शुभकामनाएं
http://mohanbaghola.blogspot.com/2009/01/blog-post.html
इस लिंक पर पढें गणतंत्र दिवस पर विशेष मेरे मन की बात नामक पोस्ट और मेरा उत्साहवर्धन करें
गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं।
achanak nikli dil ki sachhi baat
bilkul satya
पिछले दिनो बहुत से लोगो के ब्लांग मेरी फ़ीड मै नही आये पता नही क्यो, एक आप का भी, आज मेने आप का यह लेख पढ, ओर आप ने सही लिखा कि ऒबामा के कारण हमे का दिक्कत, फ़िर कोन से त्याग की मुर्ति ??? बस उस का बस नही चला, ओर भगवान ने हमारी नाक बचा ली...
धन्यवाद
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