इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
मंगलवार, 6 जनवरी 2009
बदला
** उसने इंस्पेक्टर को अपनी बाहों में भरा और नीचे छलांग लगा दी ** ___________________________________________________पता नहीं वह कैसे शहर की इस सबसे सुरक्षित समझी जाने वाली इमारत की पांचवीं मंजिल के बाहर खिड़की पर लगे छज्जे पर आ खड़ा हुआ था।सुबह आफिस वगैरह खुलने का समय था, सड़क पर आवाजाही शुरु हो चुकी थी तभी लोगों का ध्यान इस ओर गया। इमारत के नीचे भीड़ जमा होने लगी यातायात अवरुद्ध हो गया। किसी ने पुलिस को खबर कर दी। पुलिस ने इलाके की घेराबंदी कर फायरब्रिगेड वालों को भी बुलवा लिया। उसे हर तरह से समझा बुझा कर देख लिया गया पर वह तो मानो पत्थर के बुत की तरह वहां टंगा रहा। उतारने की हर कोशिश पर लगता कि वह नीचे कूद पड़ेगा। इसी बीच इंस्पेक्टर वर्मा भी वहां पहुंच गया। उसने सारी स्थिति का जायजा लिया, कुछ देर विचार विमग्न रह, अपने साथियों से कुछ कह कर लिफ्ट की ओर बढ गया। पांचवीं मंजिल पर पहुंच उस कमरे की खिड़की के पास गया जिसके बाहर वह खड़ा था। इंस्पेक्टर को देख कर वह खिसक कर खिड़की से कुछ और दूर हट गया। उसे ऐसा करते देख वर्मा बोला कि घबराओ मत मैं कुछ नहीं करुंगा, तुम सिर्फ यह बताओ कि तुम मरना क्यूं चाहते हो? बार-बार पूछने पर भी उस बुत नुमा इंसान ने कुछ नहीं कहा। उसे चुप देख वर्मा ने फिर कहा कि देखो तुम्हारी जो भी शिकायत है उसे दूर करने की पूरी चेष्टा करूंगा। आत्महत्या पाप है। सोचो तुम्हारे इस कदम से तुम्हारे परिवार का क्या होगा। देखो मेरा हाथ पकड़ो और अंदर आ जाओ तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा। पर उस पर किसी भी बात का कोई असर नहीं हो रहा था। जैसे वह कुछ सुन ही ना रहा हो। फिर भी वर्मा ने हिम्मत नहीं हारी उसे समझाते हुए बोला, सोचा है तुमने कि तुम्हारे नहीं रहने से तुम्हारे बच्चों का क्या होगा, कैसे जी पायेंगें वे? इस बार बच्चों का जिक्र सुन उसकी आंखों से पानी बहने लगा। वर्मा का हौंसला बढा, उसने बात का छोर पकड़ कर बात आगे बढाई, पूछा बच्चों को कोई तकलीफ है, बिमार है, क्या हुआ है बताओ मैं क्या सहायता कर सकता हूं? इस पर उसका बांध टूट गया। उसके आंसूओं की धारा तेज हो गयी। यह देख इंस्पेक्टर भी खिड़की के बाहर आ गया, एक हाथ से खिड़की को थाम दूसरा हाथ उसकी ओर बढा बोला कि पूरी बात बताओ क्या हुआ है मैं पूरी तरह तुम्हारा साथ दूंगा। रोते-रोते वह इंस्पेक्टर की तरफ कुछ खिसका और उसकी बांह थाम कर कहना शुरु किया, सरकार तीन दिन पहले की बात है, मंत्री महोदय का काफिला गुजरने वाला था, सड़क पूरी तरह से बंद कर दी गयी थी। मेरा घर सड़क के किनारे ही है, वहीं मेरी छोटी सी दुकान भी है। उसी समय मेरे आठ साल के बच्चे की गेंद उसके हाथों से छूट कर सड़क पर चली गयी, वह अबोध उसे लेने जैसे ही सड़क के किनारे गया वहां तैनात पुलिस कर्मी ने उसे हटाने के लिये अपना डंडा जोर से घुमाया जो बच्चे के सिर पर जा लगा। बच्चा तड़प कर वहीं गिर गया। पर किसी ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। काफिला गुजरने के बाद उसे अस्पताल पहुंचाया जा सका, जहां कल उसने दम तोड़ दिया। मैं और मेरा बेटा इन दो ही जनों का परिवार था मेरा। अब वह नहीं रहा तो मैं भी जी कर क्या करुंगा। इंस्पेक्टर को भी वह घटना याद आ गयी उसीके डंडे की चोट से एक बालक घायल हुआ था। अपने को स्थिरचित्त कर वर्मा ने उससे कहा, जो हो गया सो हो गया तुम उस हादसे को भूल जाओ, चलो नीचे उतरो। इतना कह कर उसे अपनी ओर खींचा। वह भी धीरे से खिड़की की ओर बढा और अचानक इंस्पेक्टर को अपनी बाहों में भर नीचे की ओर छलांग लगा दी !!!
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
ठेका, चाय की दुकान का
यह शै ऐसी है कि इसकी दुकान का नाम दूसरी आम दुकानों की तरह तो रखा नहीं जा सकता, इसलिए बड़े-बड़े अक्षरों में ठेका देसी या अंग्रेजी शराब लिख उसक...
-
कल रात अपने एक राजस्थानी मित्र के चिरंजीव की शादी में जाना हुआ था। बातों ही बातों में पता चला कि राजस्थानी भाषा में पति और पत्नी के लिए अलग...
-
शहद, एक हल्का पीलापन लिये हुए बादामी रंग का गाढ़ा तरल पदार्थ है। वैसे इसका रंग-रूप, इसके छत्ते के लगने वाली जगह और आस-पास के फूलों पर ज्याद...
-
आज हम एक कोहेनूर का जिक्र होते ही भावनाओं में खो जाते हैं। तख्ते ताऊस में तो वैसे सैंकड़ों हीरे जड़े हुए थे। हीरे-जवाहरात तो अपनी जगह, उस ...
-
चलती गाड़ी में अपने शरीर का कोई अंग बाहर न निकालें :) 1, ट्रेन में बैठे श्रीमान जी काफी परेशान थे। बार-बार कसमसा कर पहलू बदल रहे थे। चेहरे...
-
हनुमान जी के चिरंजीवी होने के रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिए पिदुरु के आदिवासियों की हनु पुस्तिका आजकल " सेतु एशिया" नामक...
-
युवक अपने बच्चे को हिंदी वर्णमाला के अक्षरों से परिचित करवा रहा था। आजकल के अंग्रेजियत के समय में यह एक दुर्लभ वार्तालाप था सो मेरा स...
-
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा। हमारे तिरंगे के सम्मान में लिखा गया यह गीत जब भी सुनाई देता है, रोम-रोम पुल्कित हो जाता ...
-
"बिजली का तेल" यह क्या होता है ? मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि बिजली के ट्रांस्फार्मरों में जो तेल डाला जाता है वह लगातार ...
-
कहते हैं कि विधि का लेख मिटाए नहीं मिटता। कितनों ने कितनी तरह की कोशीशें की पर हुआ वही जो निर्धारित था। राजा लायस और उसकी पत्नी जोकास्टा। ...
-
अपनी एक पुरानी डायरी मे यह रोचक प्रसंग मिला, कैसा रहा बताइयेगा :- काफी पुरानी बात है। अंग्रेजों का बोलबाला सारे संसार में क्यूं है? क्य...
8 टिप्पणियां:
ये तो बेताल वाली कहानी हो गयी. लो हमने पढ़ी ही नही. अपना सर क्यों फोड़े
बच्चा तड़प कर वहीं गिर गया। पर किसी ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। काफिला गुजरने के बाद उसे अस्पताल पहुंचाया जा सका, जहां कल उसने दम तोड़ दिया। मैं और मेरा बेटा इन दो ही जनों का परिवार था मेरा।
ओए होए ये बहुत बुरा हुआ काश कोई उसे उठा कर ले जाता तो शायद उसके प्राण बच जाते
बच्चे की वेदना पिता को होती है वह समझी जा सकती है पर बदला लेने का तरीका कदापि उचित नही कहा जा सकता है . क्या यह सत्य घटना/समाचार है .
ओर दुसरा कोई तरीका भी नही था, उस गरीब पिता के पास, अच्छा होता उस इस्पेक्टर को बता कर करता.
हमने पूरी कहानी ईमानदारी से पढ़ी लेकिन डर के मारे कह बैठे की नहीं पढ़ी. क्योंकि जड्ज्मेंट करना पड़ेगा ना? "सर क्यों फोड़े" के बदले "सर क्यों फुडवाएँ" होना चाहिए था. पुनः आभार.
bahut sahi
बुरा हुआ !
koun sahi koun galat,kahana mushkil hai, narayan narayan
एक टिप्पणी भेजें