गुरुवार, 31 जुलाई 2008

मलाणा, यहाँ के लोगों ने कचहरी का मुंह नही देखा है

हमारा देश विचित्रताओं से भरा पड़ा है। अनोखे लोग, अनोखे रीति-रिवाज, अनोखे स्थल। ऐसी ही एक अनोखी जगह है, हिमाचल की पार्वती घाटी या रूपी घाटी मे 2770मी की ऊंचाई पर बसा गावं मलाणा। विद्वानों के अनुसार यह विश्व का लोकतांत्रिक प्रणाली से चलने वाला सबसे पुराना गावं है। यहां पहुंचने के दो रास्ते हैं, पहला कुल्लू जिले के नग्गर इलाके का एक दुर्गम चढ़ाई और तिक्ष्ण उतराई वाला, जिसका बरसातों मे बहुत बुरा हाल हो जाता है, पर्यटकों के लिये तो खास कर ना जाने लायक। दूसरा अपेक्षाकृत सरल, जो जरी नामक स्थान से होकर जाता है। यहां मलाणा हाइडल प्रोजेक्ट बन जाने से जरी से बराज तक सुंदर सडक बन गयी है, जिससे गाडियां बराज तक पहुंचने लग गयीं हैं। यहां से पार्वती नदी के साथ-साथ करीब 2किमी चलने के बाद शुरू होती है 3किमी की सीधी चढ़ाई, पगडंडी के रूप मे। घने जंगल का सुरम्य माहौल थकान महसूस नहीं होने देता पर रास्ता बेहद बीहड तथा दुर्गम है। कहीं-कहीं तो पगडंडी सिर्फ़ दो फ़ुट की रह जाती है सो बहुत संभल के चलना पड़ता है। पहाडों पर रहने वालों के लिए तो ऐसी चढ़ाईयां आम बात है पर मैदानों से जाने वालों को तीखी चढ़ाई और विरल हवा का सामना करते हुए मलाणा तक पहुंचने मे करीब चार घंटे लग जाते हैं। कुछ सालों पहले तक यहां किसी बाहरी व्यक्ती का आना लगभग प्रतिबंधित था। चमडे की बनी बाहर की कोई भी वस्तु को गावं मे लाना सख्त मना था। पर अब कुछ-कुछ जागरण हो रहा है,लोगों की आवाजाही बढ़ी है, पर अभी भी बाहर वालों को दोयम नजर से ही देखा जाता है। यहां करीब डेढ सौ घर हैं तथा कुल आबादी करीब पांच-छह सौ के लगभग है जिसे चार भागों मे बांटा गया है। यहां के अपने रीति-रिवाज हैं जिनका पूरी निष्ठा तथा सख्ती के साथ पालन होता है। अपने किसी भी विवाद को निबटाने के लिये यहां दो सदन हैं, ऊपरी तथा निचला। यही सदन यहां के हर विवाद का फ़ैसला करते हैं। यहां के निवासियों ने कभी भी कचहरी का मुंह नही देखा है।

1 टिप्पणी:

दीपान्शु गोयल ने कहा…

तो आपका मलाणा का सफर शुरु हो गया। सफर की बधाई। आपके साथ हम भी घूम लेगे। कुछ तस्वारे भी लगाये तो और भी अच्छा लगेगा।

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