कल बेंगलूर और आज अहमदाबाद ----- फिर वही वहशत, वही दरिंदगी, वही हैवनियत, वही बेगुनाहों की लाशें, वही मौत का नंगा नाच। जो मरे और जो सैकडों की तादाद मे घायल हुये, क्या कसूर था उनका। किस खता की सजा उन्हें दी गयी। जिन्होने यह सब किया वे तो जो हैं वो तो दुनिया जानती है। पर दुनिया जो शायद नहीं जानती वो यह है कि हम संवेदनहीन हो गये हैं, कोई व्याधि हमं नहीं व्याप्ति। हमारा विरोध सिर्फ़ चैनल बदल-बदल कर और ज्यादा रोमांचक दृश्य देखने तथा मूंह से अफ़सोसजनक शब्द निकालने तक ही रह गया है। इसी का फ़ायदा उठा रहे हैं ये तथाकथित न्यूज वाले। नकल करने के लिये हमारा आदर्श अमेरिका है। पर उसी अमेरिका मे 9/11 को जब दहशत का ज्वालामुखी फटा था तो वहां पूरा देश गम के बादलों के अंधेरे मे एकजुट हो आंसू बहा रहा था। मनोरंजन तो दूर टी वी पर सिर्फ खबरें थीं सिर्फ खबरें। पर हमारे यहां चैनलों के लिये यही वह समय होता है जब विज्ञापन छप्पर फाड कर और दुगनी तिगुनी कीमतों पर हथियाए जाते हैं। मातमी चेहरों का मुखौटा लगाए सारे न्यूज चैनलों के संवाद दाता हर दो मिनट के बाद हमें पांच मिनट के खुशनुमा विज्ञापनों को झेलने के लिये छोड चल देते हैं। हम भी दो मिनट देख अफसोस के दो शब्द बोल, सरकार के सिर जिम्मेदारी मढ किसी और चैनल की तरफ बढ जाते हैं। क्योंकि संवेदना खत्म हो चुकी है हमारे मे।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
शनिवार, 26 जुलाई 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
प्रेम, समर्पण, विडंबना
इस युगल के पास दो ऐसी वस्तुएं थीं, जिन पर दोनों को बहुत गर्व था। एक थी जिम की सोने की घड़ी, जो कभी उसके पिता और दादा के पास भी रह चुकी थी और...
-
कल रात अपने एक राजस्थानी मित्र के चिरंजीव की शादी में जाना हुआ था। बातों ही बातों में पता चला कि राजस्थानी भाषा में पति और पत्नी के लिए अलग...
-
शहद, एक हल्का पीलापन लिये हुए बादामी रंग का गाढ़ा तरल पदार्थ है। वैसे इसका रंग-रूप, इसके छत्ते के लगने वाली जगह और आस-पास के फूलों पर ज्याद...
-
आज हम एक कोहेनूर का जिक्र होते ही भावनाओं में खो जाते हैं। तख्ते ताऊस में तो वैसे सैंकड़ों हीरे जड़े हुए थे। हीरे-जवाहरात तो अपनी जगह, उस ...
-
चलती गाड़ी में अपने शरीर का कोई अंग बाहर न निकालें :) 1, ट्रेन में बैठे श्रीमान जी काफी परेशान थे। बार-बार कसमसा कर पहलू बदल रहे थे। चेहरे...
-
हनुमान जी के चिरंजीवी होने के रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिए पिदुरु के आदिवासियों की हनु पुस्तिका आजकल " सेतु एशिया" नामक...
-
युवक अपने बच्चे को हिंदी वर्णमाला के अक्षरों से परिचित करवा रहा था। आजकल के अंग्रेजियत के समय में यह एक दुर्लभ वार्तालाप था सो मेरा स...
-
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा। हमारे तिरंगे के सम्मान में लिखा गया यह गीत जब भी सुनाई देता है, रोम-रोम पुल्कित हो जाता ...
-
"बिजली का तेल" यह क्या होता है ? मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि बिजली के ट्रांस्फार्मरों में जो तेल डाला जाता है वह लगातार ...
-
कहते हैं कि विधि का लेख मिटाए नहीं मिटता। कितनों ने कितनी तरह की कोशीशें की पर हुआ वही जो निर्धारित था। राजा लायस और उसकी पत्नी जोकास्टा। ...
-
अपनी एक पुरानी डायरी मे यह रोचक प्रसंग मिला, कैसा रहा बताइयेगा :- काफी पुरानी बात है। अंग्रेजों का बोलबाला सारे संसार में क्यूं है? क्य...
1 टिप्पणी:
एक दम सही लिखा।
जरुर पढें दिशाएं पर क्लिक करें ।
एक टिप्पणी भेजें