|
रंगबाड़ी इलाके में विराजमान हनुमान जी |
चिर-काल से ही हमारे यहां कथा-कहानियों का चलन रहा है। धार्मिक, ऐतिहासिक, सामाजिक, काल्पनिक, यथार्थवादी हर तरह के किस्से चलन में रहे हैं। समय के साथ-साथ परिवेश के अनुसार उनमें थोड़े बहुत फेर-बदल होते रहते हैं, उनमें उपकथाएं, उप-उप कथाएं जुड़ती रहती हैं। कभी-कभी तो इस जोड़-घटाव के कारण मूल कथा का स्वरूप ही बदल जाता था। एकाधिक बार आख्यानों में आध्यात्मिक सत्य को प्रामाणिक सिद्ध करने के लिए काल्पनिक कथाओं का सहारा भी लिया जाता रहा है, जिसे कथा की रोचकता या कथानक पर अटूट आस्था के कारण पाठक अनदेखा कर देता है। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार तो कहानियाँ बनीं ही, धार्मिक और काल्पनिक गल्पों को सच्चाई के करीब लाने के लिए साक्ष्य खोजे और गढ़े गए। ऐसे अनोखे स्मारक देश भर में दिख जाते हैं। पिछले दिनों महाकाव्य रामायण की एक उपकथा से जुड़े अवशेष राजस्थान के कोटा शहर में देखने का मौका मिला। कथा के अनुसार श्री राम के राज्याभिषेक पर भगवान शिव और हनुमान जी की भारत दर्शन की इच्छा को पूरा करने का जिम्मा लंका नरेश विभीषण ने लिया और उन्हें वृहदाकार कांवड़ में बैठा यात्रा शुरू तो कर दी पर शिव जी की शर्त के अनुसार कांवड़ के कहीं भी जमीन से छू जाने से यात्रा समाप्त हो जाएगी, के चलते उन्हें कोटा में अपना प्रयाण खत्म करना पड़ा था।
कांवड़ के जिस हिस्से के धरा को छूने से शिव जी उतरे वह जगह थी चौमा गांव, वहीँ उनके मंदिर का निर्माण हुआ। उसी तरह कांवड़ का दूसरा सिरा जिस पर हनुमान जी बैठे थे वह रंगबाड़ी नामक जगह पर टिका वहीँ उनका मंदिर बना। पिछले दिनों कोटा प्रवास पर यहां बालाजी के दर्शन करने का सुयोग मिला था।
1 टिप्पणी:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " प्रेम से बचा ना कोई " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
एक टिप्पणी भेजें