अरसा पहले समय ही कुछ और था। कैसे-कैसे नेता थे। अपने कर्म के प्रति समर्पित, देश के प्रति न्योछावर, आम आदमी से अपनत्व की हद तक जुड़े हुए।
समय बदला। नेता की परिभाषा बदली। मैं ही मैं हूं। बाकि सब कीड़े-मकौड़े। घर भर लो जैसे भी हो। देश, जनता यह सब ढकोसला हम से नहीं होता। जो करेंगें अपनी मर्जी से। हमसे देश है देश से हम नहीं।
फिर ढेर सा पानी बह गया गंगा में। नेताई दृष्टिकोण भी फैशन की तरह बदल गया। खुद कुछ भी करो। तुक्के से सही हो गया तो चमचों से पीठ थपकवालो, बिना शर्म मुंह मियां मिट्ठू बनते रहो। गलत हो जाए तो बिना देर किए दुसरों पर इल्जाम थोपते रहो। खुद पाक-साफ।
एक उदाहरण :
वर्षों पहले एक ट्रेन दुर्घटना हुई थी। तत्कालीन रेल मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने इस्तीफा दे दिया था। सारी जिम्मेदारी खुद लेते हुए। क्या पड़ी थी? ना कोई विरोध हुआ था ना कोई शिकायत। पर अगले की अंतरात्मा ने पद पर बने रहना स्वीकार नहीं किया था।
फिर दुर्घटना घटी। इस बार श्रीमान लालू प्रसाद यादव विराजमान थे रेल मंत्री के पद पर। उन्होंने तो जो कहा सो कहा उनकी धर्मपत्नी उनके आड़े वक्त सामने आ बोलीं, इतना बड़ा देश में इतना ठो गाड़ी चलता है, साहब हर गाड़ी मे थोड़े ही बैठ कर सब कुछ देखेंगे।
समय चलता गया। मौका मिला बंगाल की बहन को जिसने इस पद पर कब्जा जमा इसे अपनी महत्वकांक्षा का जरिया बना ड़ाला। रेल हमारे यहां अभिशप्त है। फिर दुर्घटनाएं घटीं और हर बार सीधी सरल दीदी ने साफ साफ कह दिया कि यह सब विपक्ष करवा रहा है। यानि तुम्हारी आपस की लड़ाई में इंसान की कोई कीमत ही नहीं है। उन्हीं बेवकूफों की जिनके मतों को लेकर तुम इस झगड़े के लायक बने हो।
पता नहीं क्यूं हमारे इतने आस्थावान देश में पापी मरता नहीं खंड़हर ढहता नहीं। आम इंसान रो-धो कर सब भगवान की माया मान क्यों चुप हो जाता है?
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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6 टिप्पणियां:
बहुत ही सार्थक शीर्षक ,दरअसल जब इन्सान पूरी तरह बेशर्म हो जाता है तो उसकी इंसानी सम्बेदनाएं मर जाती है और अंतरात्मा से आवाज आनी बंद हो जाती है ,कुछ ऐसा ही हाल हमारे देश के 99 %मंत्रियों का है ..
zabardast.........
bahut achchhaa likhaa hai ,main isme kuchh fer badal karnaa chaahtaa hun ,
paapi bhi maregaa jab uskaa ghadaa bharegaa,
khandar bhi dhahegaajab bawandar uthegaa,
jab insaan chup nahin rahegaa to bhagwaan bhi aage aage bhagegaa,
अब क्या कहे आज तो नेता भी एक गाली सा लगता है... सभी अगले जन्म मै गंदे नाले के सुयर बनेगे
...शानदार पोस्ट!!!
बढ़िया पोस्ट..विचारणीय
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