सोमवार, 7 जुलाई 2025

कांवड़ यात्रा, सृष्टि रूपी शिव की आराधना

इस पवित्र पर कठिन यात्रा में भाग लेने वाले कांवड़िए अपनी पूरी यात्रा के दौरान नंगे पांव, बिना कावंड को नीचे रखे, अपने आराध्य को खुश करने के लिए सात्विक जीवन शैली अपनाए रखते हैं ! यात्रा में तामसिक भोजन, दुर्व्यवहार, कदाचार पूर्णतया निषेद्ध होता है ! यहां तक कि एक-दूसरे का नाम तक नहीं लेते ! सब ''बोल बम'' हो जाते हैं ! शिवमय हो जाते हैं ! उनके बीच का फर्क मिट जाता है ! आपसी एकता, सहयोग, समानता की भावना मजबूत होती है ! पहचान, जाति, वर्ग सब तिरोहित हो जाते हैं ! हर कांवड़िया एक दूसरे का भाई बन जाता है...........!   

#हिन्दी_ब्लागिंग 

हर साल सावन के पवित्र महीने में शिव भक्त पदयात्रा कर, सुदूर स्थानों से नदियों का जल ला कर अपने निवास के पास के शिव मंदिर में स्थित शिवलिंग का इस माह की चतुर्दशी के दिन जलाभिषेक करते हैं ! कंधे पर जल ला कर भगवान शिव को चढ़ाने की पारम्परिक यात्रा को कांवड़ यात्रा बोला जाता है। कांवड़ का मूल शब्द कांवर है जिसका अर्थ कंधा होता है ! बांस की बनी जिस बंहगी के दोनों सिरों पर जलपात्र लटका कर लाया जाता है उसे कांवड़ तथा जल लाने वाले भक्तों को कांवड़िया कहा जाता है ! इस पूरी यात्रा में कांवड़ को भूमि पर नहीं रखा जाता है ! मुख्यता यह यात्रा हरिद्वार से शुरू होती है ! इस साल यह यात्रा ग्यारह जुलाई से प्रारम्भ हो कर नौ अगस्त तक चलेगी !   

हर की पौड़ी, हरिद्वार 
मारे ग्रंथों में कांवड़ यात्रा का संबंध सागर-मंथन से जोड़ा गया है। उस महा-उपक्रम में जब विष निकला और उसकी ज्वाला से सारी दुनिया में त्राहि-त्राहि मच गई, तब शिव जी ने उस गरल का पान किया लेकिन उसकी गर्मी उन्हें भी परेशान करने लगी, तब उस ज्वाला को शांत करने के लिए उनका गंगा जल से अभिषेक किया गया जिससे विष की दग्धता कम हुई ! तबसे यह परम्परा चली आ रही है ! कहने को तो ये धार्मिक आयोजन भर है, लेकिन इसके सामाजिक सरोकार भी हैं। कांवड के माध्यम से जल की यात्रा का यह पर्व सृष्टि रूपी शिव की आराधना के लिए है।

यात्रा विश्राम 
मारे शास्त्रों के अनुसार जब दोनों पात्रों में जल भर कर उन्हें कांवड़ में श्रद्धा और विधि पूर्वक सजा-संवार तथा पूजित कर स्थापित कर दिया जाता है तो शिव जी कांवड़ में तथा ब्रह्मा तथा विष्णु जी दोनों घटों में समाहित हो जाते हैं ! ऐसे में भक्त कांवड़िए को कांवड़ के माध्यम से ब्रह्मा, विष्णु, महेश, तीनों की कृपा एक साथ प्राप्त हो जाती है ! कांवड़िया, शिवयोगी के समान हो जाता है जो मन, वाणी, कर्म से किसी भी प्राणी का अहित नहीं करता, सब में एकमात्र सदाशिव का ही दर्शन करता है। कांवड़ यात्रा शिव भक्ति का एक रास्ता तो है ही साथ ही व्यक्तिगत विकास में भी सहायक है ! 

हर-हर महादेव 
इस पवित्र पर कठिन यात्रा में भाग लेने वाले कांवड़िए अपनी पूरी यात्रा के दौरान नंगे पांव, बिना कावंड को नीचे रखे, अपने आराध्य को खुश करने के लिए सात्विक जीवन शैली अपनाए रखते हैं ! यात्रा में तामसिक भोजन, दुर्व्यवहार, कदाचार पूर्णतया निषेद्ध होता है ! यहां तक कि एक-दूसरे का नाम तक नहीं लेते ! सब ''बोल बम'' हो जाते हैं ! शिवमय हो जाते हैं ! उनके बीच का फर्क मिट जाता है ! आपसी एकता, सहयोग, समानता की भावना मजबूत होती है ! पहचान, जाति, वर्ग सब तिरोहित हो जाते हैं ! हर कांवड़िया एक दूसरे का भाई बन जाता है !

बम-बम भोले 
इस यात्रा में भाग लेने वाले सभी कांवड़ियों के अपने-अपने संकल्प होते हैं ! उन्हीं में से कुछ ऐसे होते हैं, जो जल भरने के बाद अगले 24 घंटे के अंदर उसे भोलेनाथ पर चढ़ाने का संकल्प लिए दौड़ते हुए शिवालयों तक पहुंच कर शिवलिंगों पर यह जल अर्पित करते हैं, उन्हें 'डाकबम' कहते हैं ! उनके लिए कुछ अलग सुविधाएं और इंतजाम भी किए जाते हैं !

गंतव्य के पहले रुकना नहीं 

ऐसे ही एक शिव भक्त आशीष उपाध्याय का नाम शीर्ष कांवड़ियों में दर्ज है, जिन्होंने 22 जुलाई 2016 को हरिद्वार से जल लेकर 18 दिनों की पैदल यात्रा के पश्चात लगभग 1032 किलोमीटर की यात्रा संपन्न कर बनारस में भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था ! यह आज तक की सबसे लंबी कांवड़ यात्रा में शामिल है !

भक्ति की शक्ति 
प्रतीकात्मक तौर पर कांवड यात्रा का संदेश यही है कि प्रत्येक इंसान जल बचाकर और नदियों के पानी का उपयोग कर अपने खेत खलिहानों की सिंचाई करें और अपने निवास स्थान पर पशु पक्षियों और पर्यावरण को पानी उपलब्ध कराए तो प्रकृति की तरह उदार शिव सहज ही प्रसन्न होंगे। 

@सभी चित्र और संदर्भ अंतर्जाल के सौजन्य से 

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