गुरुवार, 17 अप्रैल 2025

क्षणिक बैराग्य

हमारे पहले भी वक्त यूँ ही चला करता था, हमारे बाद भी ऐसे ही चलता रहेगा, क्योंकि समय के पास तो अपने लिए भी समय नहीं होता ! हर सौ साल में मनुष्यों की पूरी दुनिया बदल जाने के बावजूद कायनात यूँ ही कायम रहती आई है ! वर्षों के बाद हमारी आगामी पीढ़ी हमारी ही फोटो देख पूछेगी, यह लोग कौन थे ? तब उन्हें हमारे संबंध में बतलाया जाएगा और ऊपर बैठे हम अपने आंसू छिपाए यह सोचेंगे, क्या इन्हीं के लिए हमने अपनी जिंदगी खपाई थी जो हमें पहचानते ही नहीं ! यह भी एक तरह का बैराग्य ही है, जो परिस्थियोंवश कुछ समय के लिए दिलो-दिमाग पर छा जाता है................! 

#हिन्दी_ब्लागिंग 

बै राग्य यानी राग रहित ! वह स्थिति जब किसी विषय-वस्तु से लगाव खत्म हो जाए ! इसके कई प्रकार बताए गए हैं ! जैसे कारण बैराग्य, विवेक बैराग्य, श्मशान बैराग्य, मर्कट बैराग्य इत्यादि ! अधिकतर लोग मर्कट बैराग्य के वशीभूत होते रहते हैं ! जो कुछ समय के लिए ही प्रभावी रहता है ! जैसे ही स्थिति, परिस्थिति, माहौल बदलता है, इसका असर खत्म हो जाता है !  


कुछ दिनों पहले एक समागम में सम्मलित होने का मौका मिला था। उत्तराखंड से कुछ प्रबुद्ध लोगों का आगमन हुआ था, सभी पढ़े-लिखे ज्ञानी जन थे। प्रवचन चल रहे थे ! बीच में नेताओं की, उनके कुकर्मों की बातें आ गईं ! फिर वही सब दोहराया जाने लगा कि सभी यह जानते हैं कि एक दिन सब को जाना ही है और वह भी खाली हाथ, फिर भी संचय की लालसा नहीं मिटा पाता कोई भी ! पाप करने से खुद को रोक नहीं पाता, यही दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य है !

प्र वचन जारी था, "सोचने की बात है कि दिन-रात मेहनत कर हम अपना कमाया हुआ धन शादी-ब्याहों में पानी की तरह बहाते हैं, पर किस को याद रहता है कि पिछली दो शादियों में जिनमें शिरकत की थी, उनमें कितना धन खर्च हुआ था या वहां क्या खाया था ? सब भूल चूका होता है ! अपनी जरुरत से कहीं ज्यादा जमीं-जायदाद खरीद कर हम किसे प्रभावित करना चाहते हैं ? कौन सा सकून पाना चाहते हैं ? जानवरों की तरह मेहनत-मश्शकत कर हम अपनी आने वाली कितनी पीढ़ियों को आर्थिक रूप से सुरक्षित करना चाहते हैं ? क्या हमें अपनी नस्लों की लियाकत के ऊपर भरोसा नहीं है कि वे भी अपने काम में सक्षम होंगे ?'' 
बैरागी 
वा र्तालाप चल रहा था, ''आजकल ज्यादातर घरों में दो या तीन बच्चे होते हैं, किसी-किसी के तो एक ही संतान होती है फिर भी लोग लगे रहते हैं अपनी सेहत को दांव पर लगा कमाने में ! कितना चाहिए एक इंसान को जीवन-यापन करने के लिए ? जिनके लिए हम कमाते हैं वह उनके काम आएगा कि नहीं यह भी पता नहीं ! फिर विडंबना देखिए कि जिनके भविष्य के लिए दिन-रात एक किए हुए होते हैं, वर्तमान में उन्हीं से दो बातें करने के लिए, उनके साथ कुछ समय गुजारने का हमारे पास वक्त नहीं होता ! सारा जीवन यूँ ही और-और सिर्फ और इकट्ठा करने में गुजर जाता है ! 

समागम 
व्या ख्यान में सीख ने स्थान ले लिया, ''धनी होना कोई बुरी बात नहीं है पर धन को अपने ऊपर हावी होने देना ठीक नहीं होता। समय चक्र कभी रुकता नहीं है। जो आज है, वह कल नहीं रहता, जो कल होगा वह भी आगे नहीं रहेगा। एक न एक दिन हम सबको जाना है, एक दूसरे से बिछुड़ना है। हमारे पहले भी वक्त यूँ ही चला करता था, हमारे बाद भी ऐसे ही चलता रहेगा, क्योंकि समय के पास तो अपने लिए भी समय नहीं होता ! हर सौ साल में मनुष्यों की पूरी दुनिया बदल जाने के बावजूद कायनात यूँ ही कायम रहेगी।

वर्षों के बाद हमारी आगामी पीढ़ी हमारी ही फोटो देख पूछेगी, यह लोग कौन थे ? तब उन्हें हमारे संबंध में बतलाया जाएगा और ऊपर बैठे हम अपने आंसू छिपाए यह सोचेंगे, क्या इन्हीं के लिए हमने अपनी जिंदगी खपाई जो हमें पहचानते ही नहीं ! पर हमें यह ख्याल शायद ही आए कि हम अपने पूर्वजों को और उनकी पहचान को कितना याद रख पाए थे !

प्र वचन चल रहा था, लोग दत्तचित्त हो सुन रहे थे। सभी सहमत थे उपरोक्त बातों से ! सभी पर जैसे विरक्ति हावी होती जा रही थी ! यह मर्कट बैराग्य था ! पर इसकी मौजूदगी तभी तक रहनी थी जब तक श्रवण क्रिया चल रही थी ! जैसे कोई सम्मोहन से चुटकी बजते ही होश में आ जाता है वैसे ही इस माहौल से बाहर आते ही सभी ने फिर दो और दो को पांच करने के चक्कर में फंस जाना था ! 

यही तो माया है ! प्रभू की लीला है ! यदि इंसान भूलता नहीं, हर बात को दिल से लगाए रखता या बात-बात पर विरक्त हो जाता, तब तो यह संसार कभी का खत्म हो गया होता ! फिर भी ऐसे समागम हमें कभी-कभी आईना तो दिखा ही जाते हैं। कभी-ना कभी कुछ गंभीरता से सोचने को मजबूर तो कर ही देते हैं !   

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से   

4 टिप्‍पणियां:

Sweta sinha ने कहा…

वैराग्य मन का स्थायी भाव है परंतु इसपर मूढ़ सांसारिकता की मायाजाल की अपारदर्शी चादर पड़ी हुई है जिसे हटाना सहज नहीं है।
अध्यात्म भी एक गूढ़ विषय है जिसपर गहन विचार-विमर्श और चिंतन मनुष्य को.परिष्कृत करती है।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ अप्रैल २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हार्दिक आभार, श्वेता जी

Priyahindivibe | Priyanka Pal ने कहा…

बिल्कुल यही दुनिया है ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आभार आपका 🙏

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