यहां इस संयोग की भी प्रबल संभावना है कि इस बात की ईजाद करने वाले महानुभाव ठंडे प्रदेश में रहते होंगे, जहां घी सदा ठोस रूप में रहता होगा और उसे उंगली टेढ़ी कर ही बर्तन वगैरह से निकाल सकना संभव हो पाता होगा ! पर इसी के साथ यह सवाल भी तो उठता है कि यदि मौसम गर्म हो और उस कारण घी अपनी तरलावस्था में रहता हो, तब तो वह ना सीधी उंगली से निकलेगा ना हीं टेढ़ी से.........फिर ?
#हिन्दी_ब्लागिंग
सीधी उंगली से घी नहीं निकलता ! पता नहीं किसने इस सत्य की खोज की, क्योंकि उसके इस उपक्रम पर कई सवाल उठ खड़े होते हैं ! जैसे वह उंगली से ही घी क्यों निकालना चाहता था ? यदि वह घर में ऐसा कर रहा था तो उसने चम्मच या वैसे ही किसी उपकरण का उपयोग क्यों नहीं किया ? यदि बाहर कहीं उसे ऐसा करने की जरुरत पड़ ही गई तो क्या घी निकालने के पहले उसने हाथ वगैरह साफ किए थे या नहीं ? क्या उंगली के नाखून गंदगी-रहित थे ? ऐसा ना होने पर बाकी के घी के खराब होने का भी खतरा था ! प्रश्न यह भी उठता है कि वह उंगली से घी निकाल कर उसका क्या उपयोग करना चाहता था, क्योंकि जब उसके पास चम्मच ही नहीं था तो कटोरी वगैरह भी कहां होगी ! ऐसे में घी गिर कर बर्बाद भी हो सकता था !
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सिधाई का साथ नहीं |
यहां इस संयोग की भी प्रबल संभावना है कि इस बात की ईजाद करने वाले महानुभाव ठंडे प्रदेश में रहते होंगे, जहां घी सदा ठोस रूप में रहता होगा और उसे उंगली टेढ़ी कर ही बर्तन वगैरह से निकाल सकना संभव हो पाता होगा ! पर इसी के साथ यह सवाल भी तो उठता है कि यदि मौसम गर्म हो और उस कारण घी अपनी तरलावस्था में रहता हो, तब तो वह ना सीधी उंगली से निकलेगा ना हीं टेढ़ी से.........फिर ?
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टेढ़ा तो होना ही पड़ता है |
मेरे अपने व्यक्तिगत शोध तो यही बताते हैं कि शठे शाठ्यम समाचरेत ! अगला नहीं मान रहा, तो उसे ही कुछ ऐसा ''ताप'' दे दिया जाए कि त्राहिमाम-त्राहिमाम करते, पिघल कर खुद ही बाहर आ जाए ! अपनी उंगली टेढ़ी क्यों करनी ! यदि नहीं तो फिर उंगली से कहीं बेहतर है, चम्मच जैसा कोई उपकरण ! इससे घी-तेल सब कुछ आसानी, बेहतर और साफ-सुथरे तरीके से निकाला जा सकता है, बिना उन्हें अशुद्ध, दूषित या अन्य किसी आशंका के ! हालांकि टेढ़ा इसे भी करना पड़ता है ! यह तो नियति है !
वैसे इस घी वाली बात का अभिप्राय भले ही कुछ भी हो पर शाब्दिक अर्थ तो पूरी तरह भ्रामक है ! घी एक बहुत ही पवित्र और बहु-उपयोगी पदार्थ है, उसे पूजा-पाठ तथा अन्य धार्मिक कार्यों के अलावा कभी-कभी दवा के रूप में भी काम में लाया जाता है, ऐसी वस्तु को उंगली से निकालना उसे दुषित करना है, इस बात का उन महानुभाव को ध्यान रखना चाहिए था ! वैसे उनका तेल वगैरह के बारे में क्या विचार था, इसका पता नहीं चल पाया है ! यदि किसी मित्र, सखा, साथी को इस बारे में कुछ भी ज्ञात हो, तो साझा जरूर करें ! धन्यवाद !
@यह एक निर्मल हास्य है, अन्यथा ना लें
@चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से
8 टिप्पणियां:
Very Nice Post.....
Welcome to my blog!
रोचक लेख।
प्रणाम सर
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ८ अप्रैल २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संभावना का तो पता नहीं पर भावना अच्छी होनी चाहिए | गुजरात से भी होने की प्रबल संभावनाएं हैं घी खोदक की :)
दिलचस्प किस्सा
Welcome Good Nivesh 🙏
श्वेता जी,
बहुत-बहुत आभार 🙏
सुशील जी,
बहुत पहले आगमन हुआ था किसी का गुजरात से, जिसके कारण आज देश में घी उपलब्ध है ! नहीं तो कुछेक के सरों पर चुचुहाते चर्बी के तेल ने जीवन मुहाल कर दिया था ! वैसे उस तेल की फुरेरी कानों में लगाए अभी भी कुछ लोग इतराते फिरते हैं :(
प्रियंका जी,
"कुछ अलग सा" पर आपका सदा स्वागत है
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