नहाना.....! उसका तो सोच कर ही नानी-परनानी-लकड़नानी और ना जाने कौन-कौन याद आने लगती है ! उजले तन को क्या साफ़ करना; मन की मैल धोनी जरुरी होती है, जैसे विचार आ-आकर आदमी को दार्शनिक बनाने से नहीं चूकते ! ना नहाने के सौ बहाने गढ़ लिए जाते हैं ! पर कभी-कभी किसी पवित्र पर्व या दिन पर ना नहाने के अनिष्ट के डर से यह क्रिया सम्पन्न करने का अति कठिन संकल्प लेना ही पड़ता है......!
#हिन्दी_ब्लागिंग
इस बार धरती के कुछ स्थानों पर शीत ने प्रचंड प्रकोप दिखा अपना राज्य स्थापित कर लिया ! प्रकृति के सारे रंग बेरंग हो गए, घर-द्वार, महल-झोंपड़ी, जल-थल, जंगल-पहाड़ सब पर सफेदी का आलम छा गया ! चहुं ओर कुहासे की सफेद चादर बिछ गई ! पारा किसी रीढ़विहीन नेता की तरह भूलुंठित होता चला गया ! उधर सूर्यदेव तो पहले ही दक्षिणायन हो निस्तेज से हुए पड़े थे, उस पर यह कहर ! उन्होंने भी अपना यात्रा पथ छोटा कर लिया और अपने रथ को चारों ओर से कोहरे के मोटे लिहाफ से ढक, कंपकपाते हुए मजबूरी में किसी तरह एक चक्कर लगा जल्द अस्ताचल में जा छिपने लगे !
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कोहरा ही कोहरा |
जब देवों का यह हाल था, तो धरा के निर्बल आम इंसानों पर क्या बीत रही होगी ! पर दिनचर्या किसी तरह चलानी-निभानी पड़ती ही है ! भले ही घरों, दफ्तरों, बसों, कारों, ट्रेनों में ऊष्मा-यंत्र लगे हुए हों, पर बाहर तो निकलना पड़ता ही है, पेट जो जुड़ा हुआ है साथ में ! ऐसे में तापमान में बड़े बदलाव के कारण, गर्म-सर्द हो, तबियत बिगड़ने की आशंका भी बनी रहती है ! खासकर बड़ी उम्र के लोगों में ! |
बहुते ठंडी है भई |
हमारे ग्रंथों में स्वस्थ बने रहने के लिए कहा गया है कि सौ काम छोड़ कर भोजन और हजार काम छोड़ कर स्नान करना जरुरी है ! अब इस भीषण ठंड में खाना तो बिना काम छोड़े भी इंसान कर लेता है, वह भी तरह-तरह की ग़िज़ाओं वाला, पर नहाना.....उसका तो सोच कर ही नानी-परनानी-लकड़नानी और ना जाने कौन-कौन याद आने लगती है ! उजले तन को क्या साफ़ करना, मन की मैल धोनी जरुरी होती है, जैसे विचार आ-आकर आदमी को दार्शनिक बनाने से नहीं चूकते ! ना नहाने के सौ बहाने गढ़ लिए जाते हैं ! पर फिर किसी पवित्र पर्व या दिन पर, ना नहाने के अनिष्ट के डर से यह क्रिया सम्पन्न करने का अति कठिन संकल्प लेना ही पड़ता है !
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शुभ्र हिम चहुँ ओर |
ऐसी ही एक घड़ी में और बुजुर्गों की लानत-मलानत के बाद अपुन को भी इस शुद्धिकरण की क्रिया के लिए संकल्पित होना पड़ा ! भाग्य प्रबल था, शायद इसीलिए उस दिन सुबह-सबेरे से ही धूप खिली हुई थी ! शुक्र मनाया और सबसे पहले पानी गर्म किया ! फिर जिनके नाम याद थे उन सारे देवी-देवताओं-उपदेवताओं को स्मरण कर, शरीर को ना छोड़ने वाले प्रेममय लिहाफ को ''उसकी इच्छा'' के विरुद्ध, अकड़े हुए शरीर से अलग किया ! फिर ऊनी टोपी उतारी ! कुछ नहीं होगा जैसी सांत्वना देते हुए सर को सहलाया ! गुलबंद खोला ! शॉल हटाया ! सिहरते हुए स्वेटर उतारा ! दस्ताने खोले ! कमीज को किनारे किया ! फिर धीरे से ऊपर का इनर हटा गंजी तो उतारनी ही थी, उतारी ! पायजामे को मुक्ति दी ! फिर उसके बाद इनर का नंबर आया ! अंत में जब मौजा उतरा तब कहीं जा कर बारह बजे दोपहर को कई दिनों से बिन नहाया शरीर धुल पाया ! कांपते-कंपकपाते फिर अपने उन सारे हितैषियों के समकक्षों को धारण कर, इस भीषण परिक्षण से सही-सलामत उत्तीर्ण करने के लिए प्रभु को धन्यवाद दे, धूप में जा बैठा !
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प्राण दाता भुवन-भास्कर |
एक होता है पराक्रम ! जो कई तरह का होता है जैसे शौर्य, शक्ति, बल, सामर्थ्य इत्यादि ! विकट या विपरीत परिस्थितियों में ही इसका परिक्षण होता है। इसमें उत्तीर्ण हो जाने वाले को पराक्रमी कहा जाता है ! सोच रहा था खुद को, खुद से ही अलंकृत कर लूँ इस उपाधि से ! आप क्या कहते हैं, इसका इन्तजार रहेगा !
हर-हर गंगे !
@गलत फैमिली में ना जाएं, इक्का-दुक्का दिन छोड़, रोज नहाता हूँ भाई------खुद के हित में जारी।
@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से
2 टिप्पणियां:
गलत फैमिली में ना जाएं, इक्का-दुक्का दिन छोड़, रोज नहाता हूँ भाई
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वंदन
दिग्विजय जी,
''कुछ अलग सा'' पर आपका सदा स्वागत है 🙏
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