तभी जैसे कुछ घटा ! अचानक मैंने महसूस किया कि मैं खुद को तनाव रहित पा रहा हूँ ! किसी भी तरह की कोई घबराहट नहीं ! कोई चिंता नहीं ! एक हल्कापन ! इस बदलाव को महसूस कर मैं विस्मित सा रह गया ! ऐसा, कैसे, क्या हुआ, समझ नहीं पा सका ! पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि सारा तनाव, सारी घबराहट कुछ पलों में ही तिरोहित हो गई हो, बिना किसी ख़ास वजह के ! एक कक्ष से दूसरे कक्ष में जाने के दौरान हुआ वह बदलाव आज भी एक पहेली बना हुआ है..........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
किसी काम को टालने के विभिन्न कारण हो सकते हैं, जैसे नकारात्मक परिणाम, असमंजस, आलस, जानकारी-समय-धन-आत्मविश्वास का अभाव ! पर शायद सबसे बड़ी वजह होती है, भय ! डर, किसी अनहोनी का ! जो कहीं मन की गहराइयों में दबा-छिपा बैठा रहता है और वक्त-बेवक्त अपना सर उठाता रहता है ! यह जानने के बावजूद भी कि इस काम को टालने के नकारात्मक या गलत परिणाम भी हो सकते हैं, भय के कारण उस काम को टालते रहा जाया जाता है ! इसको एक तरह की बिमारी भी कह सकते हैं, जो धीरे-धीरे आदत में शुमार होती चली जाती है !
भय |
अभी नहीं, फिर कभी |
आखिर टलते-टलते वह एक दिन आ ही गया जब लगा कि नहीं, अब और देर करना उचित नहीं है ! बढ़ती उम्र में पुनर्लाभ होने में समय भी लगने लगता है ! वैसे भी बच्चों का दवाब भी बढ़ रहा था ! सो कई तरह के अलग-अलग सुझावों, सलाहों, परामर्शों के बावजूद पहुँच गए #I-CREATE त्यागमूर्ति जी के नेत्र चिकित्सालय ! कारण भी था ! उनका सानिध्य एक अतिरिक्त भरोसा देता है ! मरीज सुरक्षा सी महसूस करने लगता है ! उनकी बातों से उनका आत्मविश्वास झलकता है, जो सामने वाले को तनाव मुक्त कर देता है ! उनके हाथ का शिफ़ा सैंकड़ों लोगों को नई रौशनी प्रदान कर चुका है ! लगता ही नहीं कि आँख की इतनी जटिल शल्य चिकित्सा कर रहे हों !
मंगलवार का दिन था, सुबह के दस बज रहे थे ! पहुंचते ही ऑपरेशन पूर्व तैयारी के लिए प्री-ऑप. कक्ष में ले जाया गया ! आँख में दवा डाली गई, इस तैयारी में कम से कम 40-45 मिनट का वक्त लगा और समय मेरे लिए सबसे कठिन था ! हर पल के साथ घबराहट बढ़ती जा रही थी ! उलटे-सीधे विचार तनाव का कारण बन रहे थे ! लाख कोशिशों के बावजूद मन की भटकन रुक नहीं पा रही थी ! अंत में खुद को भगवान शिव के वैद्यनाथ स्वरूप की शरण में डाल दिया !
डॉ. त्यागमूर्ति |
ऑपरेशन सफल रहा ! इसका सबसे बड़ा उदाहरण यही है कि जिस लोअर को मैं अब तक काले रंग का समझ रहा था वह नेवी ब्ल्यू का निकला 😄 भगवान शिव की कृपा ही थी जो डॉ. त्यागमूर्ति जी का साथ मिला ! उस बात को एक पखवाड़े से ऊपर हो गया है, पर उस एक कक्ष से दूसरे कक्ष में जाने के चंद क़दमों के दौरान हुआ बदलाव आज भी पहेली बना हुआ है !
16 टिप्पणियां:
ऑपरेशन सफल हुआ जानकर अच्छा लगा सर। आशा है अब पूर्ण स्वास्थ्यलाभ आपने पा लिया होगा। आपके लेखों की प्रतीक्षा रहती है।आशा है अब आपके लेख फिर से नियमित तौर पर आयेंगे।
आपकी रचना चर्चा मंच ब्लॉग पर रविवार 16 जुलाई 2023 को
'तिनके-तिनके अगर नहीं चुनते तो बना घोंसला नहीं होता (चर्चा अंक 4672)
अंक में शामिल की गई है। चर्चा में सम्मिलित होने के लिए आप भी सादर आमंत्रित हैं, हमारी प्रस्तुति का अवश्य अवलोकन कीजिएगा।
विकास जी
बहुत-बहुत आभार ! स्नेह ऐसे ही बना रहे 🙏
रवींद्र जी
सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार ! स्नेह सदा बना रहे 🙏
बधाई गगन शर्मा जी!
आपने एक बहुत ही जटिल अनुभव को बड़ी रोचकता से प्रस्तुत किया है गगन जी।बढ़ती उम्र के रथ पर हम सभी सवार हैं।एक ना एक दिन ये स्थिति कम या ज्यादा रुप में सबके सामने आने के लिए तैयार है।हमारी आँखें संसार को देखने का अनमोल द्वार हैं,इनका सुरक्षित और स्वस्थ रहना बहुत ही जरुरी है।आँखों की सर्जरी सफल रही ये सन्तोष का विषय है।अपना खूब खयाल रखें।🙏
आ.रेणु जी की टिप्पणी सदैव ही आत्मीयता से परिपूर्ण हुआ करती है। उनका स्नेहिल भाव सभी मित्रों के लिए सहजता से उपलब्ध रहता है।
पहेली कैसी, आपने स्वयं ही लिखा है, भगवान शिव के वैद्यनाथस्वरूप का स्मरण किया, यह परिवर्तन शिव की करुणा का ही प्रभाव था।
गजेंद्र जी
हार्दिक आभार
रेणु जी
बहुत-बहुत आभार ! सदा स्वस्थ-प्रसन्न रहें !
गजेंद्र जी
बिलकुल सही ! यह आत्मीयता ही हम सब को एक साथ जोड़े रख रही है ! स्नेह सदा बना रहे !
अनीता जी
पूरी तरह सहमत हूँ ! वैसे भी अंतिम आसरा उसी का होता है, जो कभी बेआसरा नहीं होने देता 🙏
शुभकामनाएं |
आभार सुशील जी🙏
बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको !
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Hindikunj
हार्दिक आभार आपका🙏
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