विद्वानों का यह भी मानना है कि हो सकता है कि राक्षस जंगलों के रक्षक रहे हों और मानवों द्वारा वनों को जलाने, अतिक्रमण करने, चरागाह और आश्रम बनाने पर उनका विरोध किया हो और दोनों एक दूसरे के दुश्मन बन गए हों ! क्योंकि उनका मिल-जुल कर रहने का भी उल्लेख मिलता है ! यह भी देखने में आता है कि दैत्य, दानव और राक्षसों के कुल में आपसी विवाह तो होते ही थे, साथ ही इनके कुल की कन्याओं ने मानवों से भी विवाह किया था ...........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
हमारे ग्रंथों में अक्सर चार नाम सामने आते रहते हैं, असुर, राक्षस, दैत्य और दानव ! हम लोग इनको एक दूसरे का एकरूप मानने की भूल कर बैठते हैं और पर्यायवाची की तरह उपयोग में ले आते हैं ! जबकि ये सब अलग-अलग हैं ! वैसे ये व्यक्तियों के नाम ना हो कर जातियों की पहचान बताते हैं ! शायद समय समय पर इन तीनों जातियों के देवताओं से युद्ध करने के कारण इन्हें एक ही समझ, इनकी सामान्य धर्मविरोधी जाति के रूप में छवि बन गई हो ! पर इनमें आपस में काफी अंतर और असमानता है !
ऋषि कश्यप |
राक्षस, असुर, दैत्य और दानव, जिन्हें अंग्रेजी में डीमन शब्द में लपेट दिया गया है ! इन जातियों का हमारे ग्रंथों में विस्तार से विवरण मिलता है ! ये कश्यप ऋषि और उनकी विभिन्न पत्नियों से उत्पन्न संतानें थीं ! दैत्यों की माता दिति, दानवों की माता दनु और राक्षसों की माता सुरसा थीं !
असुर, यह एक तरह से प्रतीकात्मक शब्द है ! वे, जो सुर यानी देवता नहीं थे, इसमें विभिन्न जातियों का समावेश हो सकता है ! इसका एक अर्थ यह भी है कि जो सूर्य के बिना रहते हों यानी धरती के नीचे, पाताल में ! ये स्वर्गवासी देवताओं के शत्रु थे ! इनकी मनुष्यों से कोई दुश्मनी नहीं थी, पर जो भी सुरों का सहायक होता था वह इनका शत्रु माना जाता था ! जहाँ तक 'असुर' शब्द का सवाल है इसका प्रयोग विशेष रूप से दैत्यों के लिए और सामान्य रूप से उक्त तीनों देव विरोधी जातियों के लिए होता है।
रावण |
राक्षस, इन्हें जाति ना कह कर एक पंथ कहा जा सकता है ! कश्यप-सुरसा की वंशावली में रावण ने रक्ष प्रथा या रक्ष पंथ की स्थापना की थी। इस पंथ के अनुयायी, गरीब, कमजोर, विकास के पीछे रह गए लोगों को अपने साथ रखते और अपना विरोध करने वालों का संहार कर देते थे ! रक्ष पंथ को मानने वाले राक्षस कहलाते थे। रामायण और महाभारत ग्रंथों में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के राक्षस योद्धाओं का विवरण है ! वे शक्तिशाली योद्धा, विशेषज्ञ, जादूगर, आकार और रूप प्रवर्तक तथा भ्रम फैलाने की कला के जानकर बताए गए हैं ! महाभारत काल तक आते-आते यह वंश लगभग खत्म हो गया, क्योंकि घटोत्कच के बाद किसी प्रमुख नाम का उल्लेख नहीं मिलता !
प्रह्लाद |
दैत्य :- ये महर्षि कश्यप और दिति की आसुरी प्रवृत्ति की संतानें थीं ! पर इन्हें मान-सम्मान भी बहुत मिला ! इनमें हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष बहुत प्रसिद्ध हुए थे ! इनका अपने सौतेले भाइयों से अक्सर युद्ध होता रहता था ! हिरण्याक्ष का पुत्र कालनेमि था, जिसने द्वापर युग तक श्रीहरि के सभी अवतारों से प्रतिशोध लेने की चेष्टा की और हर बार उनके हाथों मारा गया। बड़े भाई हिरण्यकशिपु के सबसे छोटे पुत्र प्रह्लाद थे, जो महान विष्णु भक्त हुए। उनके पौत्र बलि को सबसे बड़े दानी और प्रतापी राजा के रूप में ख्याति प्राप्त है ! इनके पुत्र बाणासुर की पुत्री उषा का विवाह श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के साथ हुआ था !
राजा बलि |
दानव :- ऋषि कश्यप और दनु के वंशज दानव कहे जाते हैं। ये दैत्यों और आदित्यों के छोटे भाई थे ! ये दैत्य और राक्षसों की भांति उतने सुसंस्कृत नही होते थे। दनु के चौंतीस पुत्रों के नाम महाभारत में गिनाए गए हैं ! जिनमें विप्रचित्ति सबसे बड़ा था। इनमें वृषपर्वा नाम के दानवराज का नाम भी आया है जो ययाति की पत्नी शर्मिष्ठा के पिता थे। महाभारत में इनका नाम प्रमुखता से आता है। मय दानव को तो सभी जानते हैं जो असुरों के शिल्पी थे। इन्ही की पुत्री मंदोदरी रावण की पत्नी थी। इसी कुल में जन्मा विद्युतजिव्ह रावण की बहन शूर्पणखा का पति था !
मयासुर को पांडवों के लिए भवन निर्माण का निर्देश देते श्रीकृष्ण |
इस प्रकार देखा जाए तो यह जातियां भी विश्व का एक अंग ही थीं ! जिन्हें जाने-अनजाने-परस्थितिवश अच्छाई या बुराई मिली ! मानव समेत उनका मिल-जुल कर रहने का भी उल्लेख मिलता है ! जब तक कि अपने अहम् नियम, कायदे या सिद्धांत के कारण आपसी मतभेद ना पैदा हो गए हों ! विद्वानों का यह भी मानना है कि हो सकता है कि राक्षस जंगलों के रक्षक रहे हों और मानवों द्वारा वनों को जलाने, अतिक्रमण करने, चरागाह और आश्रम बनाने पर उनका विरोध किया हो और दोनों एक दूसरे के दुश्मन बन गए हों ! क्योंकि यह भी देखने में आता है कि दैत्य, दानव और राक्षसों के कुल में आपसी विवाह तो होते ही थे, साथ ही इनके कुल की कन्याओं ने मानवों से भी विवाह किया था !
@ चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से, साभार
4 टिप्पणियां:
रोचक जानकारी...
विकास जी
सदा स्वागत है आपका 🙏
बहुत सुंदर जानकारी ��
हार्दिक आभार, सारस्वत जी🙏
एक टिप्पणी भेजें