आश्चर्य के साथ खेद भी होता है कि हमने अपने ऋषि-मुनियों द्वारा रचित, अपनी इस अनमोल, अति उपयोगी, बहुमूल्य धरोहर का अब तक अपने पाठ्यकर्मों में उपयोग कर अपनी पीढ़ियों को लाभान्वित क्यों नहीं किया ! क्यों अभी भी हम विदेशियों द्वारा थोपे गए पाठ्यक्रमो को ढोए जा रहे हैं ! किनके अहम्, गलत सोच या विचारों ने हमें उत्कृष्टता अपनाने से रोक रखा है ! आज जरुरत है, इस ग्रंथ जैसे अनेक ग्रंथों को अवैज्ञानिक मानने वाले, किसी और विचारधारा से ग्रस्त तथाकथित बुद्धिजीवियों को परे धकेल, उनसे किनारा कर, बिना किसी सोच या गुरेज के अपने सनातन ज्ञान को अपना कर अपने देश के भविष्य को और बेहतर बनाने की............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
यह तो लंबे समय से ज्ञात है कि भारतीय गणित की समृद्धि शून्य की खोज से भी आगे तक फैली हुई है। उसी समृद्ध खजाने की एक कड़ी है वैदिक गणित, एक अद्भुत, चमत्कारी एवं क्रान्तिकारी ग्रन्थ ! जिसमें अथर्ववेद के परिशिष्ट के एक हिस्से में उल्लेखित 16 सूत्र तथा 13 उपसूत्रों के सहारे शीघ्र गणना करने की अद्भुत व नितांत अलग सी विधियां बहुत ही सरल ढंग से सिखाई गई हैं ! इस ग्रंथ की यह विशेषता है कि यह किसी भी व्यक्ति की सरल और जटिल दोनों प्रकार की गणितीय समस्याओं को तेजी से सुलझाने में मदद करता है। यह कठिन अवधारणाओं को याद रखने के बोझ को भी कम करता है।
वैदिक गणित की रचना का श्रेय स्वामी भारती कृष्णतीर्थ को जाता है ! उनका जन्म 14 मार्च 1884 को तिन्निवेलि, तमिलनाडु के एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि कृष्ण तीर्थ ने बी.ए.और एम.ए. की परीक्षाओं में सर्वोच्च अंक प्राप्त किए थे। केवल बीस वर्ष की आयु में सन् 1904 में उन्होंने अमेरिकन कॉलेज ऑफ साइंस रोचेस्टर, न्यूयार्क के बम्बई केन्द्र से इतिहास, संस्कृत, दर्शन, अंग्रेजी, गणित और विज्ञान जैसे विषयों में एक साथ सर्वोच्च अंकों के साथ उत्तीर्ण कर सभी को आश्चर्य में डाल दिया था। अपने प्रिय विषय वैदिक गणित को वे व्यावहारिक विद्या के रूप में प्रस्तुत करते थे। ज्ञान, आयु और अनुभव की प्रौढ़ता प्राप्त कर लेने के बाद 35 वर्ष की आयु में शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी त्रिविक्रम तीर्थ महाराज ने 4 जुलाई सन् 1919 को उन्हें काशी में सन्यास की दीक्षा दी और नाम दिया स्वामी भारतीकृष्ण तीर्थ।
आज का समय तीव्र प्रतिस्पर्द्धा का है ! जिसमें सफल होने के लिए समय एक बहुत बड़ा कारक है ! किसी भी स्पर्द्धा में सफल होने के लिए गति एवं सटीकता की सबसे ज्यादा जरुरत होती है। वैदिक गणित के सूत्रों और नियमों का अभ्यास किसी भी स्पर्धा व परीक्षा में बहुत ही सहायक होता है ! इसका प्रत्यक्ष अनुभव, इस विधा से जुड़े देश-विदेश के विद्वानों को हो रहा है। वैदिक गणित की विधियाँ एक ओर जहाँ गणित शिक्षण को सरल एवं रोचक बनाती हैं, वहीं दूसरी ओर नवीन शोध की ओर प्रेरित भी करती हैं। गणित के क्षेत्र में स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ का अद्वितीय योगदान है। उन्होंने 2 फरवरी 1960 में बम्बई में महासमाधि ले ली थी ! वैदिक गणित ग्रंथ का प्रकाशन, स्वामी जी के देहावसान के पश्चात् 1965 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा किया गया ! जो आज विश्व प्रसिद्ध है।
आश्चर्य के साथ खेद भी होता है कि हमने अपने ऋषि-मुनियों द्वारा रचित, अपनी इस अनमोल, अति उपयोगी, बहुमूल्य धरोहर का अब तक अपने पाठ्यकर्मों में उपयोग कर अपनी पीढ़ियों को लाभान्वित क्यों नहीं किया ! क्यों अभी भी हम विदेशियों द्वारा थोपे गए पाठ्यक्रमो को ढोए जा रहे हैं ! किनके अहम्, गलत सोच या विचारों ने हमें उत्कृष्टता अपनाने से रोक रखा है ! अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है, जरुरत है, स्वामी तीर्थ के आलोचकों और इस ग्रंथ जैसे अनेक ग्रंथों को अवैज्ञानिक मानने वाले, किसी और विचारधारा से ग्रस्त तथाकथित बुद्धिजीवियों को परे धकेल, उनसे किनारा कर, बिना किसी सोच या गुरेज के अपने सनातन ज्ञान को अपना कर अपने देश के भविष्य को और बेहतर बनाने की !
बुजुर्गों से अक्सर पहाड़ों (Tables) के बारे में सुनने को मिलता था कि उनको याद रखने में कितनी मशक्कत करनी पड़ती थी ! सीधे-सादे पहाड़ों की तो बात अलग, उसके पहले ''सवा'' और ''ड़ेढ'' के पहाड़ों को भी रटना पड़ता था ! आज के गैजट्स से सुसज्जित पीढ़ी तो शायद उसकी कल्पना भी नहीं कर सकती ! उस समय देश के कर्णधारों ने यदि वैदिक ग्रंथों की अहमियत समझ ली होती तो शायद हम वर्तमान समय से शायद और भी आगे होते !
ग्रंथ मेंउल्लेखित विधियों की एक झलक -
यदि कोई कहे कि 38 का पहाड़ा सुनाओ तो एक बार तो दिमाग झटका खा ही जाएगा ! तुरंत कैलकुलेटर की खोज शुरू हो जाएगी ! पर इस गणित की सहायता से किन्हीं भी दो अंकों का टेबल तुरंत जाना जा सकता है, उदाहणार्थ :-
"38" का पहाड़ा
इसके लिए पहले 3 का टेबल लिख लें, फिर उसके साथ बगल में 8 का टेबल लिख लें
03 0 8 (3+0) 38
06 1 6 (6+1) 76
09 2 4 (9+2) 114
12 3 2 (12+3) 152
15 4 0 (15+4) 190
18 4 8 (18+4) 228
21 5 6 (21+5) 266
24 6 4 (24+6) 304
27 7 2 (27+7) 342
30 8 0 (30+8) 380
उसी तरह ''87'' का पहाड़ा
08 0 7 (08+0) 87
16 1 4 (16+1) 174
24 2 1 (24+2) 261
32 2 8 (32+2) 348
40 3 5 (40+3) 435
48 4 2 (48+4) 522
56 4 9 (56+4) 609
64 5 6 (64+5) 696
72 6 3 (72+6) 783
80 7 0 (80+7) 870
उतना ही आसान ''92'' का
09 02 (09+0) 92
18 04 (18+0) 184
27 06 (27+0) 276
36 08 (36+0) 368
45 10 (45+1) 460
54 12 (54+1) 552
63 14 (63+1) 644
72 16 (72+1) 736
81 18 (81+1) 828
90 20 (90+2) 920
है ना आसान ! कितनी सहजता से इसी तरह 10 से 99 तक का टेबल आसानी से बनाया जा सकता है ! ऐसी ही विशेष विधियों का संकलन है इस वैदिक गणित में ! यह है हमारा ज्ञान, विज्ञान, हमारी मेधा, हमारा अनुसंधान ! हमारा देश सदा से बहुमुखी प्रतिभा संपन्न रहा है ! सदियों से विद्या के अकल्पनीय खजाने से भरपूर रही है हमारी धरा ! यूं ही विश्व गुरु कहलाने का हक हमें नहीं मिल गया था ! पता नहीं क्यों कुछ लोगों को अपने देश की बड़ाई, उसका गौरव, उसका मान, रास नहीं आता..........!
@साभार वैदिक गणित
8 टिप्पणियां:
गणित के क्षेत्र में स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ का अद्वितीय योगदान है। उन्होंने 2 फरवरी 1960 में बम्बई में महासमाधि ले ली थी ! वैदिक गणित ग्रंथ का प्रकाशन, स्वामी जी के देहावसान के पश्चात् 1965 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा किया गया ! जो आज विश्व प्रसिद्ध है।
ज्ञान वर्धक
आभार
सादर
यशोदा जी
आपका सदा स्वागत है 🙏
बहुत ही अच्छी जानकारी है सर, हमारे समय में तो शिक्षक दूसरे तरीक़े से सिखाते थे वह बहुत ही कठिन होता था ।
मधुलिका जी
आज विषय भले ही कुछ कठिन हो गए हों पर अनेकानेक सहूलियतें भी ईजाद हो गई हैं !
आपका ''कुछ अलग सा'' पर सदा स्वागत है 🙏
रोचक। आपने सही कहा। ऐसी कई चीजें हैं जिन्हें हमने भुला दिया है। उन्हें फिर से याद करे जाने की आवश्यकता है।
सच कहा बड़ा ही अद्भुत है हमारा वैदिक गणित ।
बहुत ही ज्ञानवर्धक लाजवाब लेख ।
विकास जी
हार्दिक आभार आपका🙏
सुधा जी
सदा स्वागत है आपका🙏
एक टिप्पणी भेजें