मंगलवार, 26 जुलाई 2022

श्रीराम वंशज बृहदबल ने कौरवों का साथ क्यों दिया

आश्चर्यचकित व विस्मित करने वाली बात यह है कि सुप्रसिद्ध इक्ष्वाकु वंश की पीढ़ी में राजा विश्रुतवंत के पुत्र तथा श्रीराम के वंशज और अयोध्या के राजा वृहद्वल ने, अधर्म पक्ष होते हुए भी, कौरवों का साथ क्यों दिया ? जबकि स्वंय प्रभु परमावतार के रूप में पांडवों के साथ थे ! ऐसी क्या मजबूरी या परिस्थिति थी कि युद्ध के सबसे निंदनीय, अनैतिक, अभिमन्यु हत्याकांड का भागीदार भी बनना पड़ा,,,,,,,,,,,!!

#हिन्दी_ब्लागिंग 
हमारे हिन्दू धर्म के मुख्यतम दो महान ग्रंथों में से एक महाभारत ! एक महान, अनुपम, धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक व दार्शनिक काव्य ग्रंथ ! जो विश्व का सबसे लंबा साहित्यिक ग्रंथ है ! जिसे आज भी प्रत्येक भारतीय के लिए एक अनुकरणीय प्रेणना स्रोत माना जाता है ! इसी ग्रंथ में श्रीराम जी के बाद श्रीविष्णु जी के, विश्वप्रसिद्ध, जन-जन में लोकप्रिय, जन-नायक, सर्वगुणसम्पन्न, आठवें परमावतार श्रीकृष्ण जी की कथा भी आती है ! जिन्होंने धर्म की रक्षा हेतु उस समय पांडवों का साथ दिया था ! 
सेनापति भीष्म द्वारा वृहद्वल को एक रथ का यानी रथी का ओहदा दिया गया था ! जो रथियों के ओहदे में अधिरथ और महारथ के बाद तीसरे क्रम का पद था ! जिससे उसकी सामर्थ्य और शक्ति का कुछ आकलन हो जाता है
भारतवर्ष के प्राचीन काल की इस ऐतिहासिक कथा के द्रोणपर्व में कथा के एक महत्वपूर्ण पात्र वीर अभिमन्यु का जिक्र आता है जिन्हें चक्रव्यूह में घेर कर कौरवों द्वारा छल पूर्वक मार डाला गया था ! उस समय युद्ध में कौरव सेना प्रमुख जयद्रथ, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, दुर्योधन, कर्ण, दु:शासनअश्वस्थामा जैसे सात महारथियों के अलावा, दुर्योधन, दू:शासन व शल्य के पुत्र, कर्ण के भाईयों सहित और भी बहुत से योद्धा मौजूद थे ! जिनमें से अधिकतर अभिमन्यु के हाथों मारे गए !

चक्रव्यूह 
उन्हीं कौरव-पक्षीय योद्धाओं में से एक था वृहद्वल या बृहदबल ! जिसको अभिमन्यु के तीक्ष्ण तीरों से वीर गति प्राप्त हुई थी ! आश्चर्यचकित व विस्मित करने वाली बात यह है कि सुप्रसिद्ध इक्ष्वाकु वंश की पीढ़ी में राजा विश्रुतवंत के पुत्र तथा श्रीराम के वंशज और अयोध्या के राजा वृहद्वल ने अधर्म पक्ष होते हुए भी कौरवों का साथ क्यों दिया ? जबकि स्वंय प्रभु परमावतार के रूप में पांडवों के साथ थे ! कोई तो कारण होगा जो विष्णुवतार श्रीराम जैसे मर्यादा पुरषोत्तम, धर्म-रक्षक, न्यायप्रिय, प्रजापालक, आदर्श शासक का वंशज होते हुए भी उसे कौरवों का साथ देना पड़ा ! इतना ही नहीं युद्ध के सबसे निंदनीय अभिमन्यु हत्याकांड का भागीदार भी बनना पड़ा ! उस समय ऐसा होने के लिए क्या परिस्थितियां थीं या क्या मजबूरियां थीं, यह पूर्णतया तो नहीं पता किया जा सकता, पर इतिहास खंगालने पर जो कुछ सामने आता है, उसी को कारण माना जा सकता है !  
महाभारत काल में तक आते-आते कोसल प्रदेश पांच भागों में विभक्त हो चुका था ! उस समय मध्य कोसल पर राम वंशज बृहदबल का शासन था, जिसकी राजधानी अयोध्या थी ! राजसूय यज्ञ की विजय यात्रा में भीम ने उसको पराजित किया था ! इस हार का क्षोभ भी पांडवों के विरुद्ध जाने का कारण हो सकता है ! तिस पर कुछ समय पश्चात कर्ण ने अपनी दिग्विजय प्रयाण के दौरान मध्य कोसल को अपने आधीन कर लिया था ! हो सकता है यह आधीनता भी एक कारण रहा हो, बृहद्बल को मजबूरीवश कौरवों का साथ देने का ! तीसरा कारण, जैसा कि ग्रंथों से पता चलता है कि पौराणिक काल में सेनानायक द्वारा योद्धाओं को उनकी योग्यता के अनुसार ही पद प्रदान किए जाते थे ! सेनापति भीष्म द्वारा वृहद्वल को एक रथ का यानी रथी का ओहदा दिया गया था ! जो रथियों के ओहदे में अधिरथ और महारथ के बाद तीसरे क्रम का पद था ! जिससे उसकी सामर्थ्य और शक्ति का कुछ आकलन हो जाता है ! जो भी हो युद्ध के तेहरवें दिन पद्मव्यूह द्वार पर अभिमन्यु से भीषण युद्ध के दौरान उसको वीर गति प्राप्त हुई थी ! 

8 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-07-2022) को
चर्चा मंच     "दुनिया में परिवार"   (चर्चा अंक-4503)     पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

Jyoti Dehliwal ने कहा…

महाभारत के इस अनजाने पहलू से अवगत कराने के लिए धन्यवाद।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी
सम्मिलित कर मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद 🙏🏻

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ज्योति जी
सदा स्वागत है आपका🙏🏻

अनीता सैनी ने कहा…

हृदय द्रवित हो गया पढ़ते-पढ़ते, सही कहा आपने न जाने क्या मजबूरियाँ रहीं होंगी कोरवो का साथ देने हेतु उस समय का प्रभावी पक्ष भी दिखता था कोरवो का,इस विषय से अवगत करवाने हेतु हार्दिक आभार।
सादर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनीता जी
कई बार हालात, मजबूरियां या परिस्थितियां मजबूर भी कर देती हैं

Kamini Sinha ने कहा…

महाभारत से जुड़ी ये नई जानकारी है साक्षा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपको। वैसे अभी भी कितने ही ऐसे अनसुनी कहानियां होगी महाभारत की।🙏

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कामिनी जी
बिलकुल सही बात है, अभी भी इस महान ग्रंथ की सैंकड़ों कथाऐं उपकथाऐं अनजानी अनसुनी हैं

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