सोमवार, 31 जनवरी 2022

येड़ा बन कर पेड़ा खाना

बातचीत के दौरान ही माधवजी सोनू को आवाज लगाते और उसके आने पर सबके सामने उसे एक दो रुपये का और एक पांच रुपये का सिक्का दिखला कर कोई एक उठाने को कहते थे ! जिस पर सोनू झट से दोनों सिक्कों में कुछ बड़ा दो रुपये का सिक्का ही उठाता था ! इस बात पर सब हंसने लगते, सोनू की कमअक्ली पर ! पर सोनू पर उनके हंसने या अपने मजाक बनने का कोई असर नहीं होता, वह तो सिक्का उठा, यह जा; वह जा.................!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

मुहावरे जिंदगी के तजुर्बों पर ही बनते हैं ! इनमें समाज और लोगों के अनुभवों का सार होता है। ऐसा ही एक मुहावरा है, ''येड़ा बन कर पेड़ा खाना !'' वैसे तो यह एक बंबइया मुहावरा है, जिसका मतलब होता है, खुद को बेवकूफ जतला कर अपना अभिलाषित या वांछित पा लेना ! पर आज कल ऐसे येड़े देश भर में अपने पेड़ों की तलाश में विचरते नजर आ रहे हैं ! बस जरा सा फर्क है कि वे दूसरों को येड़ा बना पेड़ा खुद खा रहे हैं ! इसी मंजर पर एक पुरानी बात याद आ गई ! आशा है गुदगुदाएगी जरूर !

जिस दिन मैंने पांच का सिक्का उठा लिया, उसी दिन यह खेल बंद हो जाएगा और मेरी आमदनी भी 

रायपुर में मेरी रिहाइश के दौरान मेरे एक पडोसी थे, माधव जी ! मिलनसार, हंसमुख, खुश मिजाज ! अच्छा-खासा परिवार ! उनके स्वभाव के कारण उनके मित्रों की भी अच्छी-खासी जमात थी ! घर में किसी न किसी का आना-जाना लगा ही रहता था। उनके सात और पांच साल के दो लड़के थे ! बड़े को प्यार से सोनू तथा छोटे को छोटू कह कर बुलाया जाता था। अपने मजाकिया स्वभाव के कारण माधव जी अक्सर अपने घर आने वालों को सोनू की 'बुद्धिमंदता' का खेल दिखलाते रहते थे ! होता क्या था कि बातचीत के दौरान ही माधवजी सोनू को आवाज लगाते और उसके आने पर  सबके सामने उसे एक दो रुपये का और एक पांच रुपये का सिक्का दिखला कर कोई एक उठाने को कहते थे ! जिस पर सोनू झट से दोनों सिक्कों में कुछ बड़ा दो रुपये का सिक्का ही उठाता था ! इस बात पर सब हंसने लगते, सोनू की कमअक्ली पर ! पर सोनू पर उनके हंसने या अपने मजाक बनने का कोई असर नहीं होता, वह तो सिक्का उठा, यह जा, वह जा।माधवजी भी मजे ले-ले कर बताते कि बचपन से ही सोनू बड़ा सिक्का ही उठाता है, बिना उसकी कीमत जाने ! जबकि छोटू को इसकी समझ है। यह खेल काफी समय से चला आ रहा है, पर सोनू वैसे का वैसा ही है !

पर सोनू की माँ, श्रीमती माधव को यह सब अच्छा नहीं लगता था कि कोई उनके बेटे का मजाक बनाए। पर कई बार कहने, समझाने के बावजूद भी माधवजी अपने इस खेल को बंद नहीं करते थे। एक बार सोनू के मामाजी इनके यहाँ आए। बातों-बातों में बहन ने भाई को इस बारे में भी बताया। मामाजी को भी यह बात खली। उन्होंने अकेले में सोनू को बुलाया और कहा, बेटा तुम बड़े हो गए हो ! स्कूल जाते हो, पढाई में भी ठीक हो, तो तुम्हें क्या यह नहीं पता कि दो रुपये, पांच रुपयों से कम होते हैं ?

पता है, सोनू ने कहा !  

तब तुम सदा लोगों के सामने दो रुपये ही क्यों उठाते हो ? लोग तुम्हारा मजाक बनाते हैं ? मामाजी ने आश्चर्य चकित हो पूछा।

मामाजी ! जिस दिन मैंने पांच का सिक्का उठा लिया, उसी दिन यह खेल बंद हो जाएगा और मेरी आमदनी भी ! सोनू ने निर्लिप्त भाव से जवाब दिया !

मामाजी हतप्रभ से अपने चतुर भांजे का मुख देखते ही रह गए ! ठीक वैसे ही जैसे हम आज अपने आस-पास के चतुरों की चतुराई देखते रह जाते हैं ! पता ही नहीं चलता कौन येड़ा है और कौन पेड़ा खा रहा है !

33 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कामिनी जी, आपका और चर्चा मंच का हार्दिक आभार 🙏

कविता रावत ने कहा…

वाह! बहुत ही रोचक प्रस्तुति
खेल ख़त्म न हो इसलिए ऐड़ा बनने में ही चतुराई है

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

बहुत ही सारगर्भित कहानी जो आजकल के परिप्रेक्ष्य पर सटीक बैठती है, बहुत ही सराहनीय और रोचक पोस्ट ।

Pammi singh'tripti' ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 2 फरवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
!

अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्

अनीता सैनी ने कहा…

वाह!सर बेहतरीन 👌
सादर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कविता जी
आज के समय में तो पता ही नहीं चलता कि कौन किस को क्या बना रहा है 😊

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

जिज्ञासा जी
ऐसे लोग हमारे चारों तरफ हैं, उन्हें क्या कहा जाए, गुरु या गुरुघंटाल 🤔

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

पम्मी जी
पांच लिंकों के पंचामृत में शामिल करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद 🙏🏼

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनीता जी
सदा स्वागत है, आपका 🙏🏼

Manisha Goswami ने कहा…

वाह!बहुत ही रोचक व लाजवाब प्रस्तुति

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मनीषा जी
अनेकानेक धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुशील जी
सदा स्वागत है आपका, ब्लॉग पर

Bharti Das ने कहा…

बहुत बढियां

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

भारती जी
स्वागत है आपका

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

वाह
गजब की चतुराई

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आज कल सोनू बने रहने में ही लाभ है ।।
बढ़िया किस्सा ।

Sudha Devrani ने कहा…

वाह!!!
ये हुई चतुराई... जिसमें भला हो वही करो
बहुत खूब।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

विभा जी
ऐसे "चतुर" लोगों की ही आज बहुतायत हो गई है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

संगीता जी
ऐसे लोग ही मजे में हैं

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुधा जी
समय के साथ मान्यताओं भी बदल रही हैं

MANOJ KAYAL ने कहा…

बड़ी ही रोचक कहानी

Meena sharma ने कहा…

सच्चाई यही है। जो येड़ा बनने का नाटक करना सीख गया, वही खाएगा पेड़ा ! ज्यादा समझदारी दिखाओगे तो रास्ते से हटा दिए जाओगे।

yashoda Agrawal ने कहा…

व्वाहहहहहह..
सादर..

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मनोज जी
हार्दिक धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मीना जी
देखते-देखते गलत भी सही होता चला जा रहा है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

यशोदा जी
सदा स्वागत है, आपका

Harash Mahajan ने कहा…

वाह अति ऊत्तम !@ एडा बने रहने में ही भलाई है ।☺️☺️

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हर्ष जी
जगत में भांत-भांत के लोग 😄

मन की वीणा ने कहा…

वाह! गज़ब है येड़ा बन पेड़ा का। और दूसरों को येड़ा बना , शानदार प्रेरक और पेड़ा खाने का गुर सिखाता
सुंदर संस्मरण।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कुसुम जी
आज के समय के माया जाल में पता नहीं कौन, कब, किसको, क्या बना कर अपना उल्लू सीधा कर रहा है,

Rohitas Ghorela ने कहा…

सोनू ने मुहावरा को सिद्ध किया।
वाह।
समय साक्षी रहना तुम by रेणु बाला

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

रोहितास जी, स्वागत है आपका

विशिष्ट पोस्ट

विडंबना या समय का फेर

भइया जी एक अउर गजबे का बात निमाई, जो बंगाली है और आप पाटी में है, ऊ बोल रहा था कि किसी को हराने, अलोकप्रिय करने या अप्रभावी करने का बहुत सा ...