बातचीत के दौरान ही माधवजी सोनू को आवाज लगाते और उसके आने पर सबके सामने उसे एक दो रुपये का और एक पांच रुपये का सिक्का दिखला कर कोई एक उठाने को कहते थे ! जिस पर सोनू झट से दोनों सिक्कों में कुछ बड़ा दो रुपये का सिक्का ही उठाता था ! इस बात पर सब हंसने लगते, सोनू की कमअक्ली पर ! पर सोनू पर उनके हंसने या अपने मजाक बनने का कोई असर नहीं होता, वह तो सिक्का उठा, यह जा; वह जा.................!
#हिन्दी_ब्लागिंग
मुहावरे जिंदगी के तजुर्बों पर ही बनते हैं ! इनमें समाज और लोगों के अनुभवों का सार होता है। ऐसा ही एक मुहावरा है, ''येड़ा बन कर पेड़ा खाना !'' वैसे तो यह एक बंबइया मुहावरा है, जिसका मतलब होता है, खुद को बेवकूफ जतला कर अपना अभिलाषित या वांछित पा लेना ! पर आज कल ऐसे येड़े देश भर में अपने पेड़ों की तलाश में विचरते नजर आ रहे हैं ! बस जरा सा फर्क है कि वे दूसरों को येड़ा बना पेड़ा खुद खा रहे हैं ! इसी मंजर पर एक पुरानी बात याद आ गई ! आशा है गुदगुदाएगी जरूर !
जिस दिन मैंने पांच का सिक्का उठा लिया, उसी दिन यह खेल बंद हो जाएगा और मेरी आमदनी भी
रायपुर में मेरी रिहाइश के दौरान मेरे एक पडोसी थे, माधव जी ! मिलनसार, हंसमुख, खुश मिजाज ! अच्छा-खासा परिवार ! उनके स्वभाव के कारण उनके मित्रों की भी अच्छी-खासी जमात थी ! घर में किसी न किसी का आना-जाना लगा ही रहता था। उनके सात और पांच साल के दो लड़के थे ! बड़े को प्यार से सोनू तथा छोटे को छोटू कह कर बुलाया जाता था। अपने मजाकिया स्वभाव के कारण माधव जी अक्सर अपने घर आने वालों को सोनू की 'बुद्धिमंदता' का खेल दिखलाते रहते थे ! होता क्या था कि बातचीत के दौरान ही माधवजी सोनू को आवाज लगाते और उसके आने पर सबके सामने उसे एक दो रुपये का और एक पांच रुपये का सिक्का दिखला कर कोई एक उठाने को कहते थे ! जिस पर सोनू झट से दोनों सिक्कों में कुछ बड़ा दो रुपये का सिक्का ही उठाता था ! इस बात पर सब हंसने लगते, सोनू की कमअक्ली पर ! पर सोनू पर उनके हंसने या अपने मजाक बनने का कोई असर नहीं होता, वह तो सिक्का उठा, यह जा, वह जा।माधवजी भी मजे ले-ले कर बताते कि बचपन से ही सोनू बड़ा सिक्का ही उठाता है, बिना उसकी कीमत जाने ! जबकि छोटू को इसकी समझ है। यह खेल काफी समय से चला आ रहा है, पर सोनू वैसे का वैसा ही है !
पर सोनू की माँ, श्रीमती माधव को यह सब अच्छा नहीं लगता था कि कोई उनके बेटे का मजाक बनाए। पर कई बार कहने, समझाने के बावजूद भी माधवजी अपने इस खेल को बंद नहीं करते थे। एक बार सोनू के मामाजी इनके यहाँ आए। बातों-बातों में बहन ने भाई को इस बारे में भी बताया। मामाजी को भी यह बात खली। उन्होंने अकेले में सोनू को बुलाया और कहा, बेटा तुम बड़े हो गए हो ! स्कूल जाते हो, पढाई में भी ठीक हो, तो तुम्हें क्या यह नहीं पता कि दो रुपये, पांच रुपयों से कम होते हैं ?
पता है, सोनू ने कहा !
तब तुम सदा लोगों के सामने दो रुपये ही क्यों उठाते हो ? लोग तुम्हारा मजाक बनाते हैं ? मामाजी ने आश्चर्य चकित हो पूछा।
33 टिप्पणियां:
कामिनी जी, आपका और चर्चा मंच का हार्दिक आभार 🙏
वाह! बहुत ही रोचक प्रस्तुति
खेल ख़त्म न हो इसलिए ऐड़ा बनने में ही चतुराई है
बहुत ही सारगर्भित कहानी जो आजकल के परिप्रेक्ष्य पर सटीक बैठती है, बहुत ही सराहनीय और रोचक पोस्ट ।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 2 फरवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्
वाह!सर बेहतरीन 👌
सादर
कविता जी
आज के समय में तो पता ही नहीं चलता कि कौन किस को क्या बना रहा है 😊
जिज्ञासा जी
ऐसे लोग हमारे चारों तरफ हैं, उन्हें क्या कहा जाए, गुरु या गुरुघंटाल 🤔
पम्मी जी
पांच लिंकों के पंचामृत में शामिल करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद 🙏🏼
अनीता जी
सदा स्वागत है, आपका 🙏🏼
वाह!बहुत ही रोचक व लाजवाब प्रस्तुति
वाह
मनीषा जी
अनेकानेक धन्यवाद
सुशील जी
सदा स्वागत है आपका, ब्लॉग पर
बहुत बढियां
भारती जी
स्वागत है आपका
वाह
गजब की चतुराई
आज कल सोनू बने रहने में ही लाभ है ।।
बढ़िया किस्सा ।
वाह!!!
ये हुई चतुराई... जिसमें भला हो वही करो
बहुत खूब।
विभा जी
ऐसे "चतुर" लोगों की ही आज बहुतायत हो गई है
संगीता जी
ऐसे लोग ही मजे में हैं
सुधा जी
समय के साथ मान्यताओं भी बदल रही हैं
बड़ी ही रोचक कहानी
सच्चाई यही है। जो येड़ा बनने का नाटक करना सीख गया, वही खाएगा पेड़ा ! ज्यादा समझदारी दिखाओगे तो रास्ते से हटा दिए जाओगे।
व्वाहहहहहह..
सादर..
मनोज जी
हार्दिक धन्यवाद
मीना जी
देखते-देखते गलत भी सही होता चला जा रहा है
यशोदा जी
सदा स्वागत है, आपका
वाह अति ऊत्तम !@ एडा बने रहने में ही भलाई है ।☺️☺️
हर्ष जी
जगत में भांत-भांत के लोग 😄
वाह! गज़ब है येड़ा बन पेड़ा का। और दूसरों को येड़ा बना , शानदार प्रेरक और पेड़ा खाने का गुर सिखाता
सुंदर संस्मरण।
कुसुम जी
आज के समय के माया जाल में पता नहीं कौन, कब, किसको, क्या बना कर अपना उल्लू सीधा कर रहा है,
सोनू ने मुहावरा को सिद्ध किया।
वाह।
समय साक्षी रहना तुम by रेणु बाला
रोहितास जी, स्वागत है आपका
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