अपने पिता स्वरूप गुरु के देहावसान के समय शबरी अपने भविष्य को ले कर जब चिंतित हो गईं, तब मतंग ऋषि ने उन्हें समझाया और कहा कि तुम चिंता मत करो, प्रभु खुद श्री राम के रूप में आकर तुम्हारा उद्धार करेंगे ! तुम उनका यहीं पर इंतज़ार करना ! वे तुम्हें खुद ही पहचान लेंगे ! किसी के एक कथन पर अखंड विश्वास कर वर्षों टिके रहना कोई सरल या आसान बात नहीं होती ना ही सबके वश का होता है ! पर वह शबरी ही थी, जिसने अपने पितृतुल्य गुरु पर दृढ विश्वास रखते हुए अपना पूरा जीवन प्रभु का इंतजार करते गुजार दिया............!!
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एक बार देवराज इंद्र के एक समारोह में भगवान विष्णु भी आमंत्रित थे। जब वे सभा में पधारे तो उनके अप्रतिम तेजोमय रूप को देख सभा की एक अप्सरा अपना आपा भूल, उनको अपलक निहारती ही रह गई ! हांलाकि अप्सराओं के लिए पारिवारिक जीवन निषेद्ध माना गया है पर उसके मन में भगवान विष्णु को ले कर ममता जाग उठी ! उसकी इस अन्यमनस्कता और अपने काम के प्रति लापरवाही को देख देवराज इंद्र ने क्रोध में आ उसे धरती पर मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया ! कालांतर में वह धरती पर जन्म ले एक राजा की परमहिषी नाम की रानी बनी ! पर पूर्व जन्म के सद्कर्मों के कारण वह प्रभु के प्रति अनुराग नहीं त्याग पाई ! उधर उसका पति सत्संग, भजन-कीर्तन और ऋषि-मुनियों की संगत से बहुत दूर रहता था। चिढ थी उसे इन कर्म-कांडों से ! ऐसे में ही एकबार कुंभ के मेले में राजा-रानी दोनों का जाना हुआ ! वहां रानी ने सत्संगों में होते भजन-कीर्तन को सुन, राजा से वहां जा कर ऋषि-मुनियों के प्रवचन सुनने की इच्छा प्रकट की ! राजा ने यह कहते हुए मना कर दिया कि आप इतने बड़े कुल की रानी हैं, आपका इस तरह आम लोगों में उठाना-बैठना उचित नहीं है ! जब काफी बहस के बाद भी राजा ने इजाजत नहीं दी तो रानी परमहिषी ने दुखी हो, रात में नदी तट पर जा माँ गंगा से प्रार्थना की कि मुझे अगले जन्म में सामान्य और निर्धन ही बनाना जिससे मैं प्रभु की भक्ति कर उनकी कृपा पा सकूँ ! इतना कह उन्होंने जल समाधि ले ली !
शबरी धाम दक्षिण-पश्चिम गुजरात के डांग जिले के आहवा गांव से 33 किलोमीटर और सापुतारा नगर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर सुबीर गांव के पास स्थित है। माना जाता है कि शबरी धाम वही जगह है जहां शबरी और श्री राम की भेंट हुई थी
समय बीतता गया ! अभी रामावतार में कुछ समय शेष था ! तभी रानी परमहिषी का जन्म भील जाति के शबर नामक एक कबीले के मुखिया के घर में हुआ। उनके पिता का नाम अज और माता का नाम इंदुमती था। कन्या का नाम श्रमणा रखा गया। शबर कबीले की होने के कारण उसे शबरी भी कहा जाने लगा। बचपन से ही श्रमणा को पशु-पक्षियों का सानिध्य बहुत भाता था। वह उनसे बहुत प्रेम करती थी। उनकी किसी भी तरह की दुःख-तकलीफ से व्यथित हो जाती थी। उसकी बातों में कभी-कभी वैराग्य की झलक भी मिल जाती थी ! माता-पिता के लिए यह चिंता और भीलों के लिए यह कुछ आश्चर्य की बात थी।
शबरी के बड़े होने पर उसका विवाह एक भील कुमार से तय कर दिया गया। विवाह के इंतजाम के तहत, उस समय की भील प्रथा के अनुसार, राजा अज और भीलरानी इन्दुमति ने विवाह भोज के लिए बहुत सारे पशु-पक्षियों को एकत्र कर एक बाड़े में बंद कर दिया। इतने जानवरों को एक साथ देख शबरी के जिज्ञासावश इसका कारण पूछने पर उसे बताया गया कि सब तुम्हारे विवाह की दावत के लिए हैं ! तुम्हारे विवाह के दिन इनकी बलि दे भोजन तैयार किया जाएगा !
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नवधा भक्ति उपदेश |
शबरी (श्रमणा) को यह बात बिल्कुल ठीक नहीं लगी। उसने निश्चय कर लिया कि यदि मेरे विवाह के लिए इतने जीवों को प्राण त्यागने पड़ेंगे तो मैं विवाह ही नहीं करुंगी ! उसने रात्रि में सभी पशु-पक्षियों को बाड़ा खोल कर आजाद कर दिया। पर उसे ऐसा करते एक रखवाले ने देख लिया ! कहीं वह सबको यह बात बता ना दे इस आशंका से शबरी डर गई और वहां से भाग गई। चलते-चलते वह ऋष्यमूक पर्वत तक जा पहुंची, जहां हजारों ऋषियों का निवास था। शबरी बात खुलने के डर और कुछ संकोच के कारण वहां छुप कर रहने लगी। इसी दौरान वह ऋषियों के आने-जाने वाले मार्ग को कंटक विहीन कर, चुपचाप उनके लिए हवन की सूखी लकड़ियों का भी इंतजाम कर देती। पहले तो ऋषियों को इस परिवर्तन का कोई कारण समझ नहीं आया पर एक दिन उन्होंने शबरी को पकड़ ही लिया ! पर उसकी सरलता, सेवा भावना और दयालुता से प्रभावित हो मतंग ऋषि ने उसे अपनी बेटी स्वरूप मान अपने आश्रम में रहने का स्थान दे दिया।
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शबरी धाम |
समय अपनी चाल चलता रहा ! मतंग ऋषि बूढ़े हो गए और एक दिन उन्होंने अपनी देह छोड़ने की इच्छा जाहिर कर दी ! यह सुनते ही अपने भविष्य को ले शबरी चिंतित और दुखी हो गई ! उसने अपने पितृ स्वरूप ऋषि मतंग से कहा कि आप मुझे छोड़कर चले जाएंगे तो मेरा क्या होगा ! ऋषि ने उसे समझाते हुए कहा कि जो भी प्राणी इस नश्वर संसार में आता है उसे एक ना एक दिन जाना ही पड़ता है ! वैसे तुम किसी भी तरह की चिंता मत करो, तुम्हारा ख्याल प्रभु राम रखेंगे ! तब तक शबरी को श्री राम के बारे में कुछ पता नहीं था ! उसने पूछा श्री राम कौन हैं और मैं उन्हें कहां खोजूंगी ? ऋषि ने उसे सांत्वना दी और कहा, तुम्हें कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है। तुम यहीं रह कर उनकी प्रतीक्षा करो। वे स्वयं तुम्हारे पास चल कर आएंगे ! कब आएंगे यह नहीं बता सकता पर आएंगे जरूर इसका विश्वास रखना !
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शबरीनारायण मंदिर, 36गढ़ |
शबरी को अपने पितातुल्य गुरु पर पूर्ण और अटल विश्वास था ! उसी दिन से वह श्री राम का इंतजार करने लगी ! प्रभु कब आ जाएं इसका पता नहीं था, इसलिए वह रोज ही फल-फूल ले उनके स्वागत के लिए तैयार रहती। पर प्रतीक्षा ख़त्म होने को ही नहीं आती थी ! प्रभु की बाट जोहते-जोहते शबरी बूढी हो गई ! फिर एक दिन अचानक शबरी के वर्षों का इंतजार खत्म हुआ ! सीता जी की खोज में निकले श्री राम और लक्ष्मण दोनों उसकी कुटिया पर पधारे ! शबरी भावविह्वल हो समझ ही नहीं पा रही थी कि उनका स्वागत कैसे करे ! शरीर सिहर-सिहर जा रहा था ! आँखें आसुओं से धुंधली हुए जा रहीं थी ! उस दिन वह प्रभु के भोग के लिए बेर लाई हुई थी ! उसे डर था कि कहीं बेर खट्टे ना हों सो वह उन्हें चख-चख कर दोनों भाइयों को अर्पण किए जा रही थी ! अपने वात्सल्य और सरलता के वशीभूत उसे फलों के जूठा होने का गुमान भी नहीं हो रहा था। प्रभु भी उसके ममतामय मातृभाव प्रेम में भीगते हुए बेर खाते चले जा रहे थे। इस प्रकार सैंकड़ों वर्ष पूर्व कहीं दूर, दूसरे संसार में अपने भक्त के मन में उपजी एक कामना को भक्तवत्सल प्रभु ने इस धरा पर आ पूरा किया ! क्या इसी के लिए तो प्रभु ने मानवातार नहीं लिया था ? क्या रावणवध एक निमित मात्र तो नहीं था शबरी के उद्धार हेतु ? जो भी हो शबरी के वर्षों का इंतजार खत्म हुआ ! वह धन्य हुई ! तत्पश्चात श्री राम को पंपा सरोवर का मार्गदर्शन और हनुमान जी से मिलवाने का कर्तव्य पूर्ण कर योगाग्नि द्वारा अपना शरीर त्याग, प्रभु के चरणों में ही लीन हो गई !
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पंपा सरोवर |
शबरी धाम दक्षिण-पश्चिम गुजरात के डांग जिले के आहवा गांव से 33 किलोमीटर और सापुतारा नगर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर सुबीर गांव के पास स्थित है। माना जाता है कि शबरी धाम वही जगह है जहां शबरी और श्री राम की भेंट हुई थी। शबरी धाम अब एक धार्मिक पर्यटन स्थल का रूप लेता जा रहा है। देश के अन्य भागों में भी शबरी माता के स्मृति चिन्ह उपलब्ध हैं। उनकी याद में फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती के रूप में भक्ति और मोक्ष के प्रतीक का पर्व मानकर बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन माता शबरी को उनकी भक्ति के परिणामस्वरूप मोक्ष मिला था।
19 टिप्पणियां:
मीना जी
मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
तपस्वनी शबरी माता का पूरा जीवन परिचय देने के लिए दिल से आभार गगन जी,सादर नमन आपको
कामिनी जी
सदा स्वागत है आपका
अति सुन्दर शबरी कथा ।
अमृता जी
हार्दिक आभार
बहुत सुंदर, अनसुनी, अलग सी जानकारी
कदम जी
प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
माँ शबरी के जीवन परिचय के साथ पितातुल्य गुरु पर अटूट विश्वास एवं प्रभु श्रीराम की अनन्य भक्ति का बहुत ही हृदयस्पर्शी लेख।
अटूट विश्वास और भक्ति की सुंदर अभिव्यक्ति । बहुत बधाइयाँ ।
शबरी की कथा, बहुत सुंदर
सुधा जी
अनेकानेक धन्यवाद
दीपक जी
ब्लाॅग पर सदा स्वागत है आपका
अनिल जी
हार्दिक स्वागत है आपका
मां शबरी के जन्म का कारण और उनके तीन कालों के रूप का सुंदर विस्तृत जानकारी देती सुंदर पोस्ट ।
सुंदर कथा।
हार्दिक आभार, कुसुम जी
बहुत खूब कभी मेरे ब्लॉग पर भी पधारे और अपना आशिर्वाद दें
हरीश जी
जरूर ! जल्द मिलते हैं
'क्या इसी के लिए तो प्रभु ने मानवातार नहीं लिया था? क्या रावणवध एक निमित मात्र तो नहीं था शबरी के उद्धार हेतु?'... बहुत ही प्यारी व सुन्दर संकल्पना! शबरी के सम्मान में इससे सुन्दर अभिव्यक्ति सम्भवतः नहीं हो सकती थी। इस सुन्दर आलेख के लिए अन्तःस्तल से बधाई आपको!
गजेंद्र जी
हार्दिक आभार ! "कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है आपका
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