सोमवार, 23 अगस्त 2021

गोरखधंधा, एक प्रतिबंधित शब्द

किसी जटिल, पेचीदा, बहुत उलझे हुए काम को, जो समझ में ना आए पर पूरा भी हो जाए, गोरखधंधा कहा जाने लगा था। दरअसल गोरखनाथ जी अपने बनाए एक यंत्र का प्रयोग किया करते थे, जिसे धनधारी या धंधाधारी कहा जाता था। यह लोहे या लकड़ी की सलाइयों से बना एक चक्र होता था, जिसके बीचोबीच के छेद में धागे से बंधी एक कौड़ी डाली जाती थी जिसे बिना धागे को उलझाए या किसी अन्य वस्तु को छुए सिर्फ मंत्रों के प्रयोग से ही निकालना होता था ! गोरखपंथियों का मानना था कि जो भी इस कौड़ी को सही तरीके से बाहर निकाल लेता था उस पर गुरु गोरखनाथ की विशेष कृपा होती थी............!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

कभी-कभी किसी शब्द का अर्थ समय के साथ बदल, कैसे विवादित हो जाता है, उसका प्रत्यक्ष प्रमाण है शब्द ''गोरखधंधा'' ! पता नहीं कब और कैसे धीरे-धीरे इस का प्रयोग गलत कार्यों की व्याख्या के लिए होने लग गया। यह शब्द चर्चा में तब आया जब हरियाणा सरकार ने इसके अर्थ को अनुचित मान इस पर प्रतिबंध लगा दिया ! गोरखनाथ संप्रदाय से जुड़े एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से मुलाकात कर आग्रह किया था कि 'गोरखधंधा' शब्द के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दें क्योंकि इस शब्द के नकारात्मक प्रयोग व उसके अर्थ के कारण संत गोरखनाथ के अनुयायियों की भावनाएं आहत होती हैं और उन्हें ठेस पहुंचती है। 

गुरु गोरखनाथ मध्ययुग के एक योग सिद्ध योगी तथा तंत्र के बहुत बड़े ज्ञाता थे। उन्होंने ही सर्वप्रथम हठयोग परंपरा को प्रारंभ किया था। उनके अनुयायियों द्वारा उन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है। उन्होंने धर्म प्रचार हेतु सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया था और अनेकों ग्रन्थों की रचना भी की थी।गोरखनाथ जी का मन्दिर आज भी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर नगर में स्थित है। उन्हीं के नाम पर इस शहर का नाम गोरखपुर पड़ा है। गोरख-धंधा नाथ, योगी, जोगी, धर्म-साधना में प्रयुक्त एक पावन आध्यात्मिक मंत्र योग विद्या है जो नाथ-मतानुयायियों की धार्मिक भावना से जुडी हुए है !

गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर 
गोरखधंधा शब्द गुरु गोरखनाथ जी की चमात्कारिक सिद्धियों के कारण सकारात्मक अर्थ के साथ प्रयोग में आया था। किसी जटिल, पेचीदा, बहुत उलझे हुए काम को, जो समझ में ना आए पर पूरा भी हो जाए, गोरखधंधा कहा जाने लगा था। दरअसल गोरखनाथ जी अपने बनाए एक यंत्र का प्रयोग किया करते थे, जिसे धनधारी या धंधाधारी कहा जाता था। यह लोहे या लकड़ी की सलाइयों से बना एक चक्र होता था, जिसके बीचोबीच के छेद में धागे से बंधी एक कौड़ी डाली जाती थी जिसे बिना धागे को उलझाए या किसी अन्य वस्तु को छुए सिर्फ मंत्रों के प्रयोग से ही निकालना होता था ! गोरखपंथियों का मानना था कि जो भी इस कौड़ी को सही तरीके से बाहर निकाल लेता था उस पर गुरु गोरखनाथ की विशेष कृपा होती थी और वह जीवन भर किसी भी किस्म के जंजाल में नहीं उलझता था।   

                                            
पर धीरे-धीरे संभवत: अंग्रेजों के समय से इस शब्द का प्रयोग भ्रम में डालने वाले नकारात्मक तथा बुरे कार्यों, जैसे मिलावट, धोखा-धड़ी, छल-कपट, चोरी-छिपे भ्रष्ट कामों के लिए होने या करवाया जाने लगा। क्योंकि अंग्रेज अपनी कुटिल निति के तहत भारतीय संस्कृति और सभ्यता को हीन बनाने के लिए उसके साथ छेड़छाड़ कर ही रहे थे साथ ही साधु-संन्यासियों को भी धूर्त और कपटी बता हिन्दू धर्म को भी नीचा दिखाने की पुरजोर कोशिश में लगे हुए थे ! इसमें आम जनता का अल्प ज्ञान बहुत बड़ा करक था, जिसके अनुसार धंधा शब्द का सिर्फ एक ही अर्थ होता था, व्यापार या पेशा ! उसके दूसरे अर्थ, वृत्ति या प्रवृत्ति से वे बिल्कुल अनभिज्ञ थे। यही अनभिज्ञता इस शब्द के पराभव का कारण बनी !

भजन एल्बम 
विद्वान और धार्मिक मामलों के जानकारों के अनुसार गुरु गोरखनाथ जी ने मनुष्य के मानसिक, बौद्धिक और सामाजिक विकास के लिए इतनी सारी विधियां आविष्कृत कीं कि अशिक्षित लोग उलझ कर रह गए और समझ नहीं पाए कि उनमें किस के लिए कौन सी पद्यति ठीक है, कौन सी नहीं ! इसमें कौन सी करें और कौन सी नहीं की उलझन सुलझ नहीं पाई ! शायद इस से भी गोरखधंधा शब्द प्रचलन में आ गया। यानी जो समझा ना जा सके या कोई जटिल काम जिसका निराकरण करना सहज न हो, वो गोरखधंधा !

अब इस शब्द पर प्रतिबंध तो लग गया ! जबकि व्यापक स्तर पर इस शब्द का सही अर्थ बताया जाना चाहिए था ! प्रतिबंध लगने से तो एक तरह से उसके नकारात्मक अर्थ पर मोहर सी ही लग गई ! अब देखना यह है कि वर्षों से कव्वालियों और भजनों में प्रयुक्त होता आया यह शब्द, अपने सकारात्मक अर्थ को कब फिर से पा सकेगा ! क्या लोग इस शब्द के सही अर्थ को समझ इसे फिर से चलन में ला सकेंगे ! गुरु गोरखनाथ जी के ही शब्दों में, कोई बाहरी रोक-टोक तो कर सकता है पर अंदरूनी रोक खुद ही करनी पड़ती है ! अपने अंतस की बात खुद ही सुननी पड़ती है ! 

31 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत खूब| कुछ अलग |

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 23 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हार्दिक आभार, सुशील जी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

यशोदा जी
सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद

kuldeep thakur ने कहा…

जय मां हाटेशवरी.......
आपने लिखा....
हमने पढ़ा......
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें.....
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना.......
दिनांक 25/08/2021 को.....
पांच लिंकों का आनंद पर.....
लिंक की जा रही है......
आप भी इस चर्चा में......
सादर आमंतरित है.....
धन्यवाद।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कुलदीप जी
हार्दिक आभार ! आपने भावविभोर कर रख दिया !

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

रोचक आलेख। शब्द पर प्रतिबंध लगाना बचपना सा लगता है। इससे यह शब्द चलन से बाहर तो जाएगा नहीं। बेहतर यह होता कि इसका सही अर्थ लोगों के समक्ष रखने का प्रयास होता जैसा कि आपका लेख कर रहा है। ऐसा ही एक शब्द किन्नर भी है जो कि किन्नौर के लोगों के लिए इस्तेमाल होता था। बाद में तृतीय लिंग के लिए होने लगा। उसे लेकर भी मुहिम उठी थी लेकिन उसमें प्रतिबंध लगाने की बात नहीं हुई थी शायद। सही अर्थ में इस्तेमाल करने की बात हुई थी।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

विकास जी
पूरी तरह सहमत!उल्टा प्रतिबंध लगने से उसके गलत होने की ही पुष्टि होती है

Jyoti Dehliwal ने कहा…

गगन भाई, बिल्कुल सही बात है कि किसी शब्द पर प्रतिबंध लगाने से कुछ नही होगा। लोगो को उस शब्द का सही मतलब बताया जाना चाहिए। बहुत रोचक प्रस्तुति।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ज्योति जी
भेड़चाल सी हो गई है। कोई कुछ समझने को तैयार नहीं है। अपना विचार ही सभी को सही लगता है।

Kamini Sinha ने कहा…

"कोई बाहरी रोक-टोक तो कर सकता है पर अंदरूनी रोक खुद ही करनी पड़ती है ! अपने अंतस की बात खुद ही सुननी पड़ती है "
बस इतना ही समझ आ जाये तो सब आसान ना हो जाए। शब्दों के अर्थ को अनर्थ साबित करके ही तो हमारी संस्कृति के साथ खिलवाड़ किया गया। आज आपने बहुत ही अच्छी जानकारी दी।बहुत बहुत धन्यवाद आपको

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कामिनी जी
आपका और चर्चा मंच का हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कामिनी जी
पता नहीं इंसान की फितरत ऐसी क्यों है कि उसका रुझान बुराई की तरफ तुरंत हो जाता है

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कई बार अर्थ बताने पर भी लोक नहीं समझते ... खास कर आज का समाज और एक वर्ग भ्रमित करता ही रहता है ... पर हाँ आपकी बात में सत्यता है ...

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

नासवा जी
बिल्कुल सही ! वैसे भी रोज एक ही बात को सुनते-सुनते वह ठीक लगने लगती है भले ही वह गलत हो

मन की वीणा ने कहा…

सचमुच कुछ अलग सा, सुंदर विस्तृत जानकारी दी आपने गुरु गोरखनाथ जी और गौरखधंधा शब्द पर।
कभी सोचा ही नहीं इस ओर बस प्रयोग करते रहें।
पर शब्द के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाना तो कोई हल नहीं है।
कुछ सकारात्मक परिणाम आते संदेह है, इससे अच्छी बात होती शब्द का मायने और विश्लेषण व्यापक रूप में किया जाता।
बहुत सार्थक जानकारी युक्त पोस्ट।

Sudha Devrani ने कहा…

गुरु गोरखनाथ जी के ही शब्दों में, कोई बाहरी रोक-टोक तो कर सकता है पर अंदरूनी रोक खुद ही करनी पड़ती है ! अपने अंतस की बात खुद ही सुननी पड़ती है !
और वही अंतस की बात हमारे देशवासी न सुन पाये और न समझ पाये जबकि विदेशी इसे समझ गये और हमारी ही विशेषता को हमरे ही सामने हमारे मन मे अपभ्रंश कर गये...ये हम हिन्दुस्तानियों की सबसे बड़ी खामी है।
बहुत सुन्दर ज्ञानवर्धक लेख।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

फिर एक बड़ी ख़ामी का सार्थक विश्लेषण किया है, आपने गगन जी, बहुत बधाई आपको।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कुसुम जी
प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुधा जी
सदा से यही विडंबना रही है हमारी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

जिज्ञासा जी
बहुत-बहुत धन्यवाद

Kadam Sharma ने कहा…

बहुत सुंदर जानकारी, आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनेकानेक धन्यवाद, कदम जी

MANOJ KAYAL ने कहा…

बहुत सुंदर रोचक आलेख

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

बहुत-बहुत धन्यवाद, मनोज जी

सधु चन्द्र ने कहा…

वाकई, कुछ अलग सा।
सुंदर।

Amrita Tanmay ने कहा…

शब्दोचित अर्थ का ऐसा क्षरण ... सबों को अब रोकना होगा । संभवतः बुद्ध से ही बुद्धु भी बना है ।

महाकाल स्टेटस ने कहा…

बेहतरीन

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सधु जी
अनेकानेक धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अमृता जी
बिल्कुल! आवाज तो उठनी ही चाहिए

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

महाकाल स्टेटस
हार्दिक आभार

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