बच्चों-किशोरों और युवाओं के लिए फ़िल्मी दुनिया के कर्मकार भगवान बन गए। उनकी नक़ल होने लगी ! उनकी बातें-मूल्य-हरकतें आदर्श बन गईं ! उनका प्रभामंडल कोमल-अर्धविकसित मस्तिष्क पर इतना हावी हो गया कि वे अपने आदर्श के विरुद्ध कुछ भी देखना-सुनना नापसंद करने लगे। यहां तक कि उनकी गलत, आपराधिक या समाज विरोधी हरकतों पर भी उन्हें कोई एतराज नहीं होता था। ख़ासकर बच्चों और किशोरों द्वारा उनका नशा करना अदाकारी, फुटपाथ पर सोए लोगों पर गाडी चढ़ा देना शौर्य या एक से अधिक रिश्ते बनाना उनकी जिंदादिली का प्रतीक माना जाने लगा. ......... !
#हिन्दी_ब्लागिंग
कुछ दिनों पहले एक फ़िल्मी कलाकार की आत्महत्या की तहकीकात की खोज में तफ्तीश की रौशनी एक ऎसी सुरंग में जा पड़ी जहां फिल्म-टीवी से संबंधित नशेड़ियों-गंजेड़ियों की जमात डेरा डाले पड़ी थी ! ये वे लोग थे, जिनकी तरह बनने की चाहत कई युवक-युवतियों के दिलों में पनप रही है। कइयों के आदर्श हैं ये ! पर नशे के उपभोग और उसके व्यापार ने लोगों के सामने इन बड़े नाम वालों के खोटे कर्मों की पोल खोल कर रख दी। पर जैसा हमारे देश का चलन है कि यदि सौ आदमी किसी गलत काम की बुराई करते हैं तो दस उस गलत इंसान के पीछे भी आ खड़े होते हैं ! इन्हीं दस लोगों की शह पर गलत करने वाला अपना काम जारी रखता है; बेहिचक, बेखौफ !
यहां भी ऐसा ही होना था और हुआ ! जब अपनी लियाकत से ज्यादा फूहड़ता और द्विअर्थी संवादों की बदौलत पहचान बनाने वाली एक तथाकथित कॉमेडियन और उसके पति को गांजा रखने के आरोप में जेल भेजा गया तो तरह-तरह की टिप्पणियों से सोशल मीडिया भर उठा ! कोई इसे किल्मों के बाद टीवी पर हस्तक्षेप की बात करने लगा, तो कोई साधू-संतों के गांजा पीने का उदाहरण देने लगा ! पर इस हमाम के किसी भी बिरादर ने खुल कर उनकी हरकत को गलत नहीं ठहराया ! गनीमत तो यह रही किसी ने शिव जी का उदाहरण दे इन्हें पाक-साफ़ कहने की जुर्रत नहीं की।
अभिनेता-अभिनेत्रियों की छोटी-बड़ी खूबियों, अंतरंग रिश्तों, जायज-नाजायज संबंधों, वैभव व विलासितापूर्ण रहन-सहन को बढ़ा-चढ़ा कर अवाम के सामने रखा जाने लगा। कुछ लोगों ने पैसे के बल पर कुछ पत्रकारों को अपना पैरोकार बना उनको अपनी छवि को निखारने-सुधारने का काम सौंप दिया। जिन्होंने उन्हें तरह-तरह के उपनामों और विशेषणों से नवाज उन्हें नायक से महानायक बना प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचा दिया
यह तो सच्चाई है कि आजादी के एक चौथाई शतक के गुजरते-गुजरते देश के किशोर और युवाओं के आदर्श, नेताओं की बनिस्पत फ़िल्मी पर्दे-के नायक-नायिकाएं होने लग गए थे ! जिसमें फिर क्रिकेटर भी अपनी फ़िल्मी दुनिया से नजदीकियों के कारण जुड़ते चले गए ! इस मर्ज को मास-मीडिया और फिर सोशल मीडिया ने खूब पहचाना और इसका फायदा उठाने के लिए उनके लिए जगह बना ज्यादा तवज्जो देनी शुरू कर दी। अपना व्यापार बढ़ने के लिए इनसे जुडी खबरों को सनसनीखेज, चटपटा रूप दे परोसना शुरू कर दिया ! समाज उनकी दिखावटी बातों में आ उन्हीं के अनुरूप चलने की कोशिश करने लगा।
इसी प्रचार के तहत अभिनेता-अभिनेत्रियों की छोटी-बड़ी खूबियों, अंतरंग रिश्तों, जायज-नाजायज संबंधों, वैभव व विलासितापूर्ण रहन-सहन को बढ़ा-चढ़ा कर अवाम के सामने रखा जाने लगा। लोगों की इस सब में गहरी रूचि देख कुछ लोगों ने पैसे के बल पर कुछ पत्रकारों को अपना पैरोकार बना उनको अपनी छवि को निखारने-सुधारने का काम सौंप दिया। जिन्होंने उन्हें तरह-तरह के उपनामों और विशेषणों से नवाज उन्हें नायक से महानायक बना प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचा दिया। उनकी छोटी-बड़ी उपलब्धियों पर पन्ने पर पन्ने रंग डाले ! उनको किसी दूसरी दुनिया का वाशिंदा बना दिया ! भोले-भाले लोग उनकी बातों के जाल में फंसते चले गए ! उनकी गलत आदतों को ही सफलता की सीढ़ी माना जाने लगा !
इन सब बातों का बच्चों-किशोरों और युवाओं पर सबसे ज्यादा और जबरदस्त असर पड़ा ! फ़िल्मी दुनिया के कर्मकार उनके लिए भगवान बन गए। उनकी नक़ल होने लगी ! उनकी बातें-मूल्य-हरकतें आदर्श बनती चली गईं ! उनका प्रभामंडल कोमल-अर्धविकसित मस्तिष्क पर इतना हावी होता चला गया कि वे अपने आदर्श के विरुद्ध कुछ भी देखना-सुनना नापसंद करने लगे। यहां तक कि उनकी गलत, आपराधिक या समाज विरोधी हरकतों पर भी उन्हें कोई एतराज नहीं रहा। ख़ासकर बच्चों और किशोरों द्वारा उनका नशा करना अदाकारी, फुटपाथ पर सोए लोगों पर गाडी चढ़ा देना शौर्य या एक से अधिक रिश्ते बनाना उनकी जिंदादिली का प्रतीक माना जाने लगा ! पर संसार में जो भी चीज शुरू होती है उसका अंत भी तय होता है !
राहत की बात है कि जागरूकता बढ़ रही है ! समाज के अलग-अलग हिस्सों की बहुत सी तरह-तरह की सच्चाइयां अब सामने आने लगी हैं ! कई स्थानों पर पसरा कोहरा छंटने लगा है ! युवाओं का ध्यानअपने भविष्य पर है ! क्या वक्त नहीं आ गया है कि मीडिया विश्लेषण कर खुद को ''संजय'' साबित करे ! क्या वक्त नहीं आ गया है कि आवाज उठे उनके खिलाफ जो मुख्य दोषी हैं ! क्या वक्त नहीं आ गया है कि उन काले कारनामियों के चेहरे से नकाब हटाई जाए जो समाज में जहर घोल रहे हैं ! क्या वक्त नहीं आ गया है कि जड़ पर प्रहार किया जाए ना कि सिर्फ पत्तों को तराश कर निश्चिन्त हो लिया जाए ! क्या वक्त नहीं आ गया है कि नशे के जहर के छोटे-मोटे उपभोक्ताओं को पकड़ने के साथ-साथ उत्पादक को भी लम्बे हाथ लिया जाए ! वह खुला रहा तो उसको शिकार की क्या कमी पड़ेगी ! बिमारी गंभीर है ! लाइलाज हो जाए उससे पहले ही शल्य चिकित्सा की सख्त जरुरत है !