गुरुवार, 8 अगस्त 2019

एक बोध कथा का एक्सटेंशन


क्या किया जाए कुछ समझ नहीं आ रहा था। रास्ते से गुजरने वाले वाहनों से गाडी को ''टो'' करने की गुजारिश की गयी पर एक तो बैल गाडी, ऊपर से पुरानी, कोई भी साथ ले चलने को राजी नहीं हुआ ! इनको नकारा देख, साथ के संगी-साथी भी एक-एक कर, जिसको जहां, जैसे, जो सुविधा मिली उसे ले, इनको छोड़ आगे बढ़ गए। अब काफिले में वो ही मजबूर लोग रह गए जिनका व्यापारी को छोड़ और कोई ठौर-ठिकाना या उपार्जन का अन्य साधन नहीं था। सूरते हाल यह था कि मालिक खड़े हो, आँखों पर हाथ रखे दूर-दूर तक नजर दौड़ा रहा था कि कोई घोड़ा-गदहा-टट्टू दिख जाए जिससे गाडी आगे रेंग सके..................!

#हिन्दी_ब्लागिंग
एक बार कारोबार में अत्यंत नुक्सान होने की वजह से अपना सब कुछ गंवा बैठे एक बड़े व्यापारी ने, मजबूरी में दूसरे ठाँव, अपने जान-पहचान के लोगों के पास जा कर भाग्य आजमाने निश्चय किया। प्रस्थान वाले दिन अपना बचा-खुचा सामान एक बैल गाडी पर लाद, अपने परिवार, सेवकों और अपने पर आश्रित कुछ लोगों के साथ उसने अपनी यात्रा शुरू की। इनके साथ इनके दो-तीन पालतु कुत्ते भी थे।

रुकते-चलते जब दोपहर सर पर चढ़ आई तो मालिक ने कुत्तों को धूप से बचाने के लिए उन्हें बैल गाडी के नीचे छाया में कर दिया। ा नीचे छाया में चलते हुए कुत्तों को यह लगा कि मालिक ने गाडी की सारी जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी है और अब वे ही गाडी को चला रहे हैं। ऐसा ख्याल आते ही वे फूल कर कुप्पा हो गए ! अचानक मिले इस तथाकथित सम्मान से गर्वित हो उनका सारा शरीर तन गया और वे ऐंठ कर गाडी के नीचे चलने लगे।

शाम के बाद जब अंधियारा घिरने लगा तो काफिले को रोक दिया गया। सब अपनी थकान दूर करने और भोजन=पानी का इंतजाम करने में जुट गए। बैलों को भी गाडी से खोल कुछ दूर बांध, चारा-पानी दे दिया गया। इसी बीच अंगड़ाइयां लेते कुत्ते भी गाडी के नीचे से बाहर आ इधर-उधर घूमने लगे। अचानक उन्होंने कुछ दूरी पर बैलों को चारा-पानी खाते देखा तो इनका पारा चढ़ गया कि सारे रास्ते गाडी हम ढ़ोते आए और मजा ये कर रहे हैं। बस फिर क्या था ! दोनों-तीनों लपक कर बैलों के पास पहुंचे और लगे भौंक-भौंक कर अपना गुस्सा जताने ! पहले तो कुछ देर बैल शांत रहे पर आखिर उनको भी तैश आ गया और उन्होंने फुंफकार कर जोर से अपना सर इनकी तरफ घुमाया, कुत्ते तो खैर बच लिए पर बैलों के जोर के झटके से उनका पगहा टूट गया ! बंधन से आजाद होते ही दोनों बैल ये गए वो गए ! और हमारे वीर श्वान पुत्र अपनी जीत के घमंड में इतराते वापस आ गए।

सुबह हुई। जब नित्य-कर्मों से फारिग हो चलने का समय आया, तो बैल गायब ! सब परेशान ! चारों ओर तलाशा गया पर कहीं कोई सुराग नहीं ! खोज-खाज कर सब जने हार-थक कर बैठ गए ! क्या किया जाए कुछ समझ नहीं आ रहा था। रास्ते से गुजरने वाले वाहनों से गाडी को ''टो'' करने की गुजारिश की गयी पर एक तो बैल गाडी, ऊपर से पुरानी, कोई भी साथ ले चलने को राजी नहीं हुआ। कुत्तों को समझ नहीं आ रहा था कि परेशानी क्या है वे गाडी के नीचे खड़े थे उसे ले चलने के लिए ! मालिक ने जब उन्हें नीचे छिपते देखा तो उसे उनका रात का भौंकना भी याद आ गया ! वह समझ गया कि बैल इनके परेशान करने की वजह से ही भागे हैं ! उसने इनको पकड़ा और उसी चाबुक से, जिससे बैलों को हांका जाता था, वो छितरैल की, वह छितरैल की, कि तीनों की भौं-भौं, क्याऊं-क्याऊं में बदल गयी और तो और अब वे बैठने के लायक भी नहीं रहे !

इधर चलने की कोई सूरत नजर ना आने पर, इनको नकारा देख, साथ के संगी-साथी भी एक-एक कर, जिसको जहां, जैसे, जो सुविधा मिली उसे ले, इनको छोड़ आगे बढ़ गए। अब काफिले में वो ही मजबूर लोग रह गए जिनका व्यापारी को छोड़ और कोई ठौर-ठिकाना या उपार्जन का अन्य साधन नहीं था। सूरते हाल यह था कि मालिक खड़े हो, आँखों पर हाथ रखे दूर-दूर तक नजर दौड़ा रहा था कि कोई घोड़ा-गदहा-टट्टू दिख जाए जिससे गाडी आगे रेंग सके ! साथ के लोग इसलिए खड़े थे क्योंकि मालिक खड़ा था और कुत्ते इसलिए क्योंकि वे तो बैठने से ही मजबूर थे !

12 टिप्‍पणियां:

अनीता सैनी ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" शुक्रवार 09 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (10-08-2019) को "दिया तिरंगा गाड़" (चर्चा अंक- 3423) पर भी होगी।


--

चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है

….

अनीता सैनी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनीता जी, मुखरित मौन का आभारी हूं

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनिता जी, आपका और चर्चा मंच का हार्दिक आभार

Meena Bhardwaj ने कहा…

रोचक कहानी !

Kailash Sharma ने कहा…

रोचक और सटीक व्यंग...

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत सुन्दर कहानी...

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मीना जी, ब्लॉग पर आपका सदा स्वागत है।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कैलाश जी, स्नेह ऐसे ही बना रहे !

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुधा जी, हौसला बढ़ाने का बहुत-बहुत शुक्रिया

Digvijay Agrawal ने कहा…

आज इस युग पर्यावरण की चिंता में
गम्भीर चिंतन...
आभार...
सादर..

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

दिग्विजय जी,
नमस्कार, शुभकामनाएं

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