सोमवार, 12 अगस्त 2019

शिव मंदिर, जटोली का

हिमाचल के सोलन जिले के जटोली इलाके में स्थित है,भगवान शिव का एक अनूठा मंदिर ! यह मान्यता  चली आ रही है कि पौराणिक समय में भगवान शिव यहां आए थे और कुछ समय यहां रह कर उन्होंने विश्राम किया था। उस समय उन्होंने अपनी जटाएं भी खोल रखी थीं जो उन्मुक्त हो लहराती रहती थीं। इसीलिए उन जटाओं पर इस जगह का नाम जटोली के रूप में विख्यात हुआ .............! 
सावन के पावन समय पर विशेष !

#हिन्दी_ब्लागिंग 
हिमालय को सदा देवभूमि माना जाता रहा है। ऐसा अटूट विश्वास है कि यहां कण-कण में भोले भंडारी का वास है। इसीलिए इस क्षेत्र में विश्व विख्यात शिव धाम तो हैं ही उनके साथ-साथ और भी, लोगों की आस्था के प्रतीक, हजारों शिव मंदिर विद्यमान हैं। इनमें से कुछ ऐसे भी हैं, जो अपने आप में विशेष होते हुए भी अभी देश के दूसरे हिस्सों में उतना प्रख्यात नहीं हो पाए हैं ! ऐसा ही एक मंदिर है, हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में स्थित जटोली का दक्षिण-द्रविड़ शैली में निर्मित शिव मंदिर। इसके 111 फीट ऊँचे गुंबद पर अभी हाल ही में 11 फुट लंबा स्वर्ण कलश चढ़ाया गया है। इससे मंदिर की ऊंचाई करीब 122 फुट तक हो गयी है। इसी कारण इसे एशिया का सबसे ऊंचा मंदिर माना जाता है। शिल्प-कला के इस बेजोड़ भवन को बनाने में करीब 39 साल का समय लगा है। अभी भी कुछ ना कुछ निर्माण चल ही रहा है। जल्द ही यहां17 लाख रुपए की लागत के स्फटिक शिवलिंग की स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा की जाने की योजना है।

सोलन-राजगढ़ मार्ग पर सोलन शहर से 7 किलोमीटर की दूरी पर एक स्थान पड़ता है, जटोली ! वहीं से मंदिर तक छोटे वाहनों के आवागमन के लिए सड़क बनी हुई है, जो तक़रीबन समुद्रतल से 1320 मीटर की ऊंचाई पर बने इस शिव मंदिर तक पहुंचाती है। वहां से सौ सीढ़ियां चढ़, मंदिर के मंडप से मुख्यद्वार तक जा, भीतर गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग के दर्शन किये जाते हैं। भीतर स्फटिक मणि शिवलिंग के साथ शिव और पार्वती जी की मूर्तियाँ भी स्थापित की गई है | मंदिर के शिखर पर चार किलो सोने का 11 फुट लम्बा कलश मंदिर के सौदर्य में चार चाँद लगाता  हुआ दिखता है। मंदिर के प्रवेश द्वार के ऊपर गणेश जी तथा शेष नाग की प्रतिमाएं बनी हुई हैं, जिन्हें पीले और हरे रंग के कलशों से सुशोभित किया गया है। मंदिर के प्राँगण में जगह-जगह अन्य देवी-देवताओं की कलात्मक प्रतिमाओं के साथ-साथ कई त्रिशूल भी लगे मिलते हैं। मंदिर के पीछे का भाग अन्य भागों से ऊँचा है। मंदिर के उतरी छोर पर प्राकृतिक जलस्त्रोत है जिसके जल को औषधीय तत्वों से पूर्ण अति निर्मल और पवित्र माना जाता है। इसके बारे में कहा जाता है कि बहुत पहले कहीं से घूमते-घामते एक साधू महाराज यहां आ कर गुफा में रहने लगे। स्थानीय लोग एक बार उनकी परीक्षा लेने के लिए  लिए गुफा के आसपास छिप गये लेकिन थोड़ी देर बाद उन्हें गुफा से एक अजगर कि हुंकार सुनाई दी जिसके कारण वे डर गये और अपनी रक्षा हेतु उनसे अपनी  भूल के लिए क्षमा याचना की।  उस साधू ने कई सालो तक यहाँ तप किया। उस समय जटोली में पानी की बहुत तंगी थी ! कहते हैं उसी साधू ने अपने चिमटे को धरती पर मारकर पानी की यही निर्मल धारा निकाली थी जो कभी सूखती नहीं है। 

 यह मान्यता चली आ रही है कि पौराणिक समय में भगवान शिव यहां आए थे और कुछ समय यहां रह कर उन्होंने विश्राम किया था। उस समय उन्होंने अपनी जटाएं भी खोल रखी थीं जो उन्मुक्त हो लहराती रहती थी। इसीलिए उन जटाओं पर इस जगह का नाम जटोली के रूप में विख्यात हुआ। इस मंदिर के निर्माण और परिकल्पना के पीछे स्वामी कृष्णानंद परमहंस जी का उद्यम है। उनके मार्गदर्शन और दिशा-निर्देश पर ही जटोली शिव मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। जिन्होंने इसका शिलान्यास वर्ष 1974 में किया था, पर जिसका निर्माण कार्य वर्ष 1983 में जाकर आरम्भ हो पाया। जो 39 वर्षो कि लम्बी अवधि के पश्चात 24  जनवरी, 2013 को स्फटिक शिवलिंग स्थापित होने पर पूर्ण हुआ।  मन्दिर निर्माण पर करोडो रूपए व्यय हुए जिनका इंतजाम प्रभु भगतों और आस्थावानों के सहयोग से ही संभव हो सका। मंदिर में, 1983 में ब्रह्मलीन हुए स्वामी कृष्णानंद की गुफा भी स्थित है, जहां बैठ कर वे शिव आराधना किया करते थे।
महाशिव रात्रि के पावन पर्व पर यहां मंदिर कमिटी की ओर से भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, जो सारी-सारी रात चलता है। इसके साथ ही विशाल भंडारा भी होता है। दूर-दूर से श्रद्धालुगण यहां आ पूजा-अर्चना कर अपनी मनोकामना की पूर्ती की प्रार्थना करते हैं। देश के किसी भी कोने से यहां दिल्ली या चंडीगढ़ होते हुए आराम से पहुंचा जा सकता है। 

6 टिप्‍पणियां:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २५०० वीं बुलेटिन ... तो पढ़ना न भूलें ...

ढाई हज़ारवीं ब्लॉग-बुलेटिन बनाम तीन सौ पैंसठ " , में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-08-2019) को "खोया हुआ बसन्त" (चर्चा अंक- 3426) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

2500वां मील का पत्थर लांघने की ढेरों बधाईयाँ ¡ मेरा अहो भाग्य की मैं भी इसका भागीदार बना ¡अब यह 2 वहां से हट कर जब पीछे इकाई के स्थान पर आए उस दिन का इंतजार और कामना है। फिर एक बार ब्लॉग बुलेटिन परिवार को शुभकामनाएं

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

चर्चा मंच का हार्दिक आभार

Alaknanda Singh ने कहा…

गगन जी जटोली, सोलन का ज‍ि़क्र करके आपने पूरा ह‍िमाचल घुमा द‍िया, कांडाघाट से चायल तो कई बार जाना हुआ , परंतु अब जटोली अवश्य जाऊंगी। धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अलकनंदा जी, आपकी मनोकामना जल्द पूरी हो

विशिष्ट पोस्ट

रणछोड़भाई रबारी, One Man Army at the Desert Front

सैम  मानेक शॉ अपने अंतिम दिनों में भी अपने इस ''पागी'' को भूल नहीं पाए थे। 2008 में जब वे तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भ...